भारतीय वायुसेना ने हमेशा कठिन परिस्थितियों में भी अपनी श्रेष्ठता साबित की है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या हमारी नीतियाँ, निर्णय प्रक्रियाएँ और रक्षा उत्पादन की गति उतनी तेज़ हैं, जितनी आज के आधुनिक युद्ध की ज़रूरतें मांगती हैं?
क्योंकि आज युद्ध सिर्फ जहाज़ों की संख्या पर नहीं, बल्कि तकनीक, सेंसर, नेटवर्किंग, प्रतिक्रिया-क्षमता और निर्णय की गति पर निर्भर करता है।
भारत और पाकिस्तान: दो अलग मार्ग, दो अलग सैन्य दार्शनिकियाँ
दक्षिण एशिया में हवाई शक्ति का परिदृश्य मुख्यतः दो देशों से बनता है—भारत और पाकिस्तान। दोनों की सैन्य रणनीतियाँ, आर्थिक स्थिति, तकनीकी क्षमता और अंतरराष्ट्रीय साझेदारी एक-दूसरे से बिल्कुल अलग हैं।
• भारत का
ध्यान स्वदेशीकरण, तकनीकी आत्मनिर्भरता और बहुआयामी युद्ध क्षमताओंपर है।
• पाकिस्तान का मॉडल
तेज़ खरीद, विदेशी सहायता पर निर्भरता और सीमित खर्च में प्रभावी विमानों के संयोजन पर आधारित है।
भारत आर्थिक रूप से बड़ी शक्ति है और विविध तकनीकी प्लेटफॉर्म रखता है। दूसरी ओर पाकिस्तान अपनी वायुसेना को अधिक कॉम्पैक्ट, कम खर्चीला और मुख्यतः चीनी समर्थन पर आधारित रखता है।
लड़ाकू विमानों की तुलना: क्षमता बनाम गति
भारत और पाकिस्तान के प्रमुख लड़ाकू विमानों को देखें तो दोनों देशों की रणनीति स्पष्ट झलकती है।
भारत के प्रमुख विमान (2025)
•
सुखोई-30MKI – लंबी दूरी का, शक्तिशाली, भारी लड़ाकू विमान।
•
राफेल – अत्याधुनिक मल्टीरोल प्लेटफॉर्म, यूरोप का सर्वश्रेष्ठ माना जाने वाला विमान।
•
मिराज-2000 – 1999 कारगिल और 2019 बालाकोट में निर्णायक भूमिका।
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मिग-29UPG – समुद्री और एयर-डिफेंस दोनों भूमिकाओं में सक्षम।
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तेजस MK-1/MK-1A – स्वदेशी कार्यक्रम की नींव, 4.5 पीढ़ी की क्षमताओं के साथ।
पाकिस्तान के प्रमुख विमान
• JF-17 Block I/II/III – चीन के साथ संयुक्त उत्पादन, कम लागत पर पर्याप्त क्षमता।
• F-16 Block 52 – अमेरिकी सहायता का प्रतीक, अब सीमित अपग्रेड।
• J-10C – चीन द्वारा दिया गया आधुनिक विमान, पाकिस्तान का सबसे उन्नत प्लेटफॉर्म।
भारतीय विमानों की क्षमता, रेंज, हथियार गुणवत्ता और इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम पाकिस्तान से काफी आगे हैं। वहीं पाकिस्तान की विशेषता यह है कि वह कम समय में नए संस्करणों को तेजी से शामिल करता रहा है, जबकि भारत की निर्णय-प्रक्रिया अक्सर धीमी पड़ जाती है।
तकनीक, रडार और मिसाइलों में कौन आगे?
आधुनिक हवाई युद्ध का आधार है—
रडार + मिसाइल + सेंसर + नेटवर्क।
पाकिस्तान
• JF-17 Block III में AESA रडार और PL-15 मिसाइल
• F-16 में AIM-120C मिसाइल
• चीनी सपोर्ट पर निर्भर इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर
भारत
• राफेल में यूरोप का उन्नत RBE2 AESA और मेटेओर मिसाइल (दुनिया की सर्वश्रेष्ठ BVR)।
• तेजस MK-1A में स्वदेशी
उत्तम AESA रडार
•
अस्त्र मार्क-1/2 — भारत की खुद की BVR मिसाइल प्रणाली
• सुखोई और मिग-29 में इज़रायली और रूसी उन्नत EW सिस्टम
तकनीकी तुलना में भारत स्पष्ट रूप से श्रेष्ठ है।
आधुनिक युद्ध केवल विमान से नहीं, पूरे इकोसिस्टम से जीता जाता है
आज की लड़ाई केवल पायलट और विमान नहीं लड़ते—
लड़ते हैं सेंसर, नेटवर्क, डेटा लिंक, ड्रोन, सैटेलाइट और हवा में उड़ते कमांड सेंटर।
भारत ने पिछले दस वर्षों में इस पूरे इकोसिस्टम को मजबूत किया है।
निगरानी और खुफिया—रुस्तम, TAPAS और हेरॉन
भारतीय सीमाओं पर अब निगरानी का काम केवल मानव संचालित विमान नहीं करते।
रुस्तम और TAPAS जैसे स्वदेशी UAV लंबे समय तक हवा में रहकर दुश्मन गतिविधियों की जानकारी भेजते हैं।
इसके साथ इस्राइली हेरॉन भारत की निगरानी क्षमता को और मजबूत बनाता है—यह हर मौसम में 24 घंटे से अधिक उड़ सकता है और रियल-टाइम इंटेलिजेंस देता है।
लुटरिंग म्यूनिशन—ड्रोन और मिसाइल का संगम
यह नई तकनीक भारत के लिए युद्ध का अगला चरण है।
ये हथियार लक्ष्य खोजते हैं, उसके ऊपर मंडराते हैं और सही अवसर मिलने पर स्वयं टकराकर उसे नष्ट कर देते हैं।
जो काम पहले पायलट को जोखिम लेकर करना पड़ता था, उसे अब लुटरिंग म्यूनिशन कर सकते हैं।
AEW&C और AWACS—हवा में उड़ते कमांड सेंटर
भारत के पास स्वदेशी NETRA AEW&C और इज़रायली फाल्कन AWACS हैं।
ये हवाई रडार सैकड़ों किलोमीटर दूर तक दुश्मन की हर गतिविधि पकड़ लेते हैं और युद्ध को नियंत्रित करने का काम करते हैं।
बिना इनके कोई भी आधुनिक वायुसेना युद्ध में टिक नहीं सकती।
एयर टैंकर—वायुसेना का साइलेंट फोर्स मल्टीप्लायर
IL-78 जैसे टैंकर हवा में उड़ते-उड़ते लड़ाकू विमानों को ईंधन भरते हैं।
इससे राफेल, मिराज या सुखोई दुश्मन के इलाके के भीतर गहराई तक प्रहार कर सकते हैं।
IACCS—आकाश की डिजिटल सुरक्षा दीवार
भारतीय वायुसेना का Integrated Air Command and Control System (IACCS)
देशभर के रडार, ड्रोन, सेंसर और AWACS को जोड़ता है।
यह किसी भी हवाई खतरे का पता सेकंडों में लगाकर जवाब देने की क्षमता देता है।
UCAV—भारत का भविष्य
भारत घातक जैसे स्टील्थ UCAV विकसित कर रहा है, जो बिना पायलट के सटीक प्रहार कर सकता है।
यही भविष्य के युद्ध का केंद्रीय तत्व माना जा रहा है।
भारत का स्वदेशी कार्यक्रम: क्षमता बड़ी, रफ्तार कम
पाकिस्तान की वायुसेना अपने सीमित संसाधनों के बावजूद तेजी से निर्णय लेने और नए संस्करण शामिल करने की क्षमता के कारण लगातार अपने बेड़े को अपडेट करती रही है; उदाहरण के लिए JF 17 Block II, Block III और Block IV को कम समय में विकसित और तैनात किया गया। इसके विपरीत भारत अपने संसाधनों और तकनीकी क्षमता के बावजूद तेज़ निर्णय नहीं ले पाया। तेजस कार्यक्रम का इतिहास इसका स्पष्ट उदाहरण है—1983 में हल्के लड़ाकू विमान (LCA) के रूप में मंजूरी मिलने के बाद पहली उड़ान में 18 साल, प्रारंभिक ऑपरेशनल मंजूरी (IOC) पाने में 12 साल और पूर्ण ऑपरेशनल मंजूरी (FOC) हासिल करने में छह साल लगे। इस लंबी अवधि में विमान तकनीक लगातार बदल गई—AESA रडार, आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम, हाई-स्पीड डेटा लिंक और स्वदेशी हथियार प्रणाली जैसी तकनीकें विकसित हो गईं, जिन्हें अगर तेजस पर समय रहते लागू किया गया होता तो MK 1A की बजाय सीधे MK 2 या AMCA जैसे उन्नत संस्करण ऑपरेशनल हो सकते थे। समय पर अपडेट न होने के कारण भारत की आधुनिक वायुशक्ति का वास्तविक लाभ नहीं मिल सका और पाकिस्तान की तेज़ निर्णय क्षमता ने उसे सामरिक रूप से अधिक लचीला बना दिया।
ज्ञात रहे कि तेजस परिवार का विकास भारत की वायुसेना की भविष्य की क्षमताओं का प्रतिबिंब है। तेजस MK 1A, मौजूदा हल्के लड़ाकू विमान तेजस का उन्नत संस्करण, AESA रडार, आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सिस्टम और बेहतर एवियोनिक्स के साथ ऑपरेशनल है और मल्टीरोल क्षमताओं के लिए तैयार है। इसके अगले चरण में तेजस MK 2 विकसित किया जा रहा है, जिसमें बड़े आकार, उच्च पेलोड क्षमता, लंबी दूरी की उड़ान और उन्नत डिजिटल सुइट जैसी तकनीकें शामिल हैं, जो इसे भारी हथियार और जटिल मिशन के लिए सक्षम बनाती हैं। आगे जाकर AMCA (Advanced Medium Combat Aircraft) भारत का 5वीं पीढ़ी का स्टील्थ मल्टीरोल विमान होगा, जिसमें अत्याधुनिक AESA रडार, स्टील्थ डिजाइन और UCAV जैसी ड्रोन इंटीग्रेशन क्षमता होगी, जो भविष्य में भारत की वायु शक्ति के मुख्य स्तंभ के रूप में कार्य करेगा।
तेजस की कहानी भारत की तकनीकी महत्त्वाकांक्षा का प्रतीक है। परंतु यही कहानी हमें यह भी बताती है कि
• निर्णय प्रक्रिया धीमी,
• उत्पादन क्षमता सीमित,
• और परियोजनाओं में देरी अक्सर हमारी सबसे बड़ी दुश्मन होती है।
तेजस MK-1A की डिलीवरी लंबे समय से टलती रही है।
तेजस MK-2 और AMCA जैसे भविष्य के कार्यक्रम भी समय और संसाधनों की कमी से जूझते रहे हैं।
हमें यह स्वीकार करना होगा कि
पाकिस्तान नया विमान तेजी से जोड़ लेता है, जबकि भारत बेहतर विमान बनाता है किंतु समय बहुत अधिक लगता है.
यही हमारे सामने सबसे बड़ी रणनीतिक चुनौती है।
भविष्य – 2030 तक कौन कहाँ खड़ा होगा?
भारत
• 120+ तेजस MK-1A
• तेजस MK-2 की तैनाती
• AMCA परीक्षण उड़ानें
• राफेल की संख्या में वृद्धि
• अधिक AWACS, ड्रोन और UCAV
• स्वदेशी इंजन कार्यक्रम में प्रगति
पाकिस्तान
• JF-17 Block-IV
• J-10C स्क्वाड्रनों की संभावित वृद्धि
• J-35/J-31 जैसे स्टील्थ विमानों की चीन-निर्भर संभावना
कुल मिलाकर, 2030 तक भारत हवाई शक्ति के लगभग हर पहलू में पाकिस्तान से बहुत आगे होगा—संख्या में भी, गुणवत्ता में भी और रणनीतिक क्षमता में भी।
तेजस दुर्घटना का महत्व – एक चेतावनी, एक प्रेरणा
तेजस एक सुरक्षित और सक्षम विमान है। दुर्घटना को एक संदेश समझ कर
भारत को अब रक्षा उत्पादन और स्वदेशीकरण में ‘धीमी गति’ की नीति छोड़नी होगी। यदि यह घटना हमें आधुनिक व तकनीकी रूप से अधिक सक्षम, तेज़, निर्णायक और परिणाम-केंद्रित बनने की प्रेरणा दे तो यह एक युवा पायलट के बलिदान को सबसे बड़ा सम्मान होगा।
संजय सक्सेना - भारत और पाकिस्तान की हवाई शक्ति में अंतर सिर्फ तकनीक या विमानों का नहीं है—
यह अंतर सोच, दृष्टि और भविष्य की तैयारी का है।
भारत के पास श्रेष्ठ तकनीक, व्यापक नेटवर्क, बेहतर रडार, अधिक प्रशिक्षण और विश्वस्तरीय लड़ाकू विमान हैं।
पाकिस्तान के पास तेज़ निर्णय क्षमता और विदेशी साझेदारी पर आधारित मॉडल।
लेकिन हवाई श्रेष्ठता का वास्तविक भविष्य उस देश के हाथ में होगा जो तकनीक बनाएगा भी, और उसे तेजी से अपनाएगा भी।
भारत उस दिशा में आगे बढ़ चुका है—अब उसे केवल गति चाहिए।