साध्वी शालिनीनंद महाराज के अनुसार, गौ माता के शरीर पर मेहंदी, रोली और हल्दी के थापे लगाएं। गायों को सुंदर तरीके से सजाएं। सुबह ही धूप, दीप, फूल, अक्षत, रोली, गुड़, जलेबी, वस्त्र और जल से गौ माता की पूजा करें और आरती उतारें।
पूजा के बाद गौ-ग्रास निकालें। फिर गाय की परिक्रमा करें। परिक्रमा के बाद गायों के साथ थोड़ी दूर तक चलें।
श्रीकृष्ण की गौ-चारण लीला की पौराणिक कथा :
जब भगवान श्रीकृष्ण छठे वर्ष में प्रवेश कर चुके थे, एक दिन उन्होंने माता यशोदा से कहा,
"मैया, अब हम बड़े हो गए हैं।"
मैया यशोदा ने मुस्कुराते हुए पूछा,
"अच्छा लल्ला, अब तुम बड़े हो गए हो तो बताओ, अब क्या करना है?"
भगवान ने कहा,
"अब हम बछड़े नहीं चराएंगे, अब गाय चराएंगे।"
मैया ने कहा,
"ठीक है, बाबा से पूछ लो।"
मैया की बात सुनते ही भगवान दौड़कर नंद बाबा के पास पहुंचे।
बाबा ने कहा,
"लाला, अभी तुम बहुत छोटे हो। अभी बछड़े ही चराओ।"
भगवान ने जिद की,
"नहीं बाबा, अब मैं गाय ही चराऊंगा।"
जब भगवान नहीं माने, तो बाबा बोले,
"ठीक है लाल, पंडित जी को बुला लाओ। वे गौ-चारण का मुहूर्त देखकर बताएंगे।"
बाबा की बात सुनकर भगवान तुरंत पंडित जी के पास गए और बोले,
"पंडित जी, बाबा ने आपको बुलाया है। गौ-चारण का मुहूर्त देखना है। आप आज ही का मुहूर्त बता दो, मैं आपको ढेर सारा माखन दूंगा।"
पंडित जी नंद बाबा के पास आए। बार-बार पंचांग देखकर गणना करने लगे। नंद बाबा ने पूछा,
"पंडित जी, क्या बात है? आप बार-बार क्या गिन रहे हैं?"
पंडित जी बोले,
"क्या बताएं नंदबाबा जी, केवल आज का ही मुहूर्त निकल रहा है। इसके बाद पूरे एक साल तक कोई मुहूर्त नहीं है।"
पंडित जी की बात सुनकर नंद बाबा ने भगवान को गौ-चारण की अनुमति दे दी।
साध्वी शालिनीनंद महाराज - भगवान जिस समय कोई कार्य करें, वही शुभ मुहूर्त बन जाता है। उसी दिन भगवान ने गौ-चारण शुरू किया। वह शुभ तिथि थी कार्तिक मास, शुक्ल पक्ष की अष्टमी। भगवान के गौ-चारण शुरू करने के कारण यह तिथि गोपाष्टमी कहलाती है।