हरियाणवी को लोकप्रिय बनाने में कई साहित्यकारों, गायकों और कलाकारों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इनमें हरियाणा साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. धर्मदेव विद्यार्थी का नाम प्रमुख है। डॉ. विद्यार्थी हरियाणवी को भाषा का दर्जा दिलाने के लिए प्रतिबद्ध हैं। वे हर जिले में कवि सम्मेलनों को संबोधित करते हैं और हरियाणवी के संवर्धन के लिए हरसंभव सहायता का आश्वासन देते हैं। उनके प्रयासों से कई साहित्यकारों ने हरियाणवी में रचनाएं शुरू की हैं।
हरियाणवी गीत आज विदेशों में भी धूम मचा रहे हैं। इस बोली को बढ़ावा देने के लिए शॉर्ट फिल्मों का भी सहारा लिया गया है। इनमें डॉ. वी.एम. बेचैन और अभिनेता यशपाल शर्मा की फिल्म दादा लख्मीचंद प्रमुख है। इसके अलावा, हरियाणवी नाटकों में नरेंद्र बल्हारा का योगदान उल्लेखनीय है।
कई साहित्यकारों ने हरियाणवी को समृद्ध करने में योगदान दिया है, जिनमें प्रो. पूर्णचंद शर्मा, डॉ. विश्वबंधु शर्मा, रामफल चहल, जनार्दन शर्मा, लोककवि रघबीर शर्मा, रामधारी खटकड़, श्रीनिवास शर्मा, डॉ. मधुकांत, महेंद्र सिंह बिलोटिया, सत्यवीर सिंह नाहड़िया, विनोद सिल्ला, आनंद कुमार आशोधिया, अनिल खरब, सुशीला जांगड़ा, रामफल खड़क, अशोक कुमार जाखड़, पवन मित्तल, डॉ. राम अवतार कौशिक, डॉ. राजकुमार जमदग्नि, दलबीर फूल, संदीप शर्मा, सतपाल पराशर आनंद, कृष्ण कुमार निर्माण, डॉ. पुष्पा कुमारी, सुदेश कुमारी, डॉ. आरती अरोड़ा, चंद्रावती दीक्षित, सीमा शर्मा, डॉ. तरुणा सचदेवा, नीलम नारंग, भूप सिंह भारती, डॉ. रमाकांता, आशा खत्री लता, शकुंतला काजल, डॉ. नवलपाल प्रभाकर दिनकर और डॉ. चंद्रदत्त शर्मा चंद्रकवि जैसे नाम शामिल हैं।
डॉ. चंद्रदत्त शर्मा, जो हिंदी के प्रमुख साहित्यकार हैं, ने 50 से अधिक पुस्तकों का सृजन किया है। वे शैली साहित्यिक मंच, रोहतक के माध्यम से पिछले 10 वर्षों से साहित्य का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। हरियाणवी को भाषा का दर्जा दिलाने के लिए वे दिन-रात प्रयासरत हैं। उन्होंने गुमनाम हो रहे लोकगीतों को एकत्रित कर *गीत गुमनाम* नामक पुस्तक प्रकाशित की। इसके अलावा, अपने गांव ब्रह्मणवास के 100 से अधिक भजनों को संकलित किया और माटी की महक नाम से हरियाणवी कविताओं का संग्रह तैयार किया। उनकी हरियाणवी लघुकविता संग्रह धतूरा भी काफी लोकप्रिय है।
डॉ. शर्मा ने हरियाणवी में लघुकथाओं और कविताओं को बढ़ावा देने के लिए साहित्यकारों की एक टीम बनाई, जिन्हें प्रशिक्षित कर साझा संग्रह प्रकाशित किए गए। इनमें हरियाणवी जिंदाबाद! (लघु कविताएं) और जय हरियाणवी (लघुकथाएं) शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, उन्होंने हरियाणवी व्याकरण पर म्हारी व्याकरण नामक पुस्तक लिखी, जो हरियाणवी को भाषा का दर्जा दिलाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।
डॉ. चंद्रदत्त शर्मा हरियाणवी के प्रति समर्पित हैं और इसे उसका उचित स्थान दिलाने के लिए अन्य साहित्यकारों के साथ मिलकर निरंतर कार्य कर रहे हैं।