कार्यक्रम का उद्घाटन करते हुए मंत्री श्री पाटिल ने कहा कि “नदियाँ केवल जल की धाराएँ नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति की धारा हैं। उनका संरक्षण केवल सरकारी नहीं, सामूहिक जिम्मेदारी है।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि नदी संरक्षण के लिए सरकार लघु, मध्यम और दीर्घकालिक योजनाओं पर काम कर रही है, जिसमें Water Vision@2047 एक प्रमुख पहल है।
“भारत, नदियों का देश है”
श्री पाटिल ने गंगा को दुनिया की “सबसे सुंदर नदी” बताते हुए कहा कि भारत में बहने वाली नदियाँ हमारे सांस्कृतिक लोकाचार की धुरी रही हैं। उन्होंने कहा, “यह हमारा नैतिक और सामाजिक दायित्व है कि हम नदियों को प्रदूषण से बचाएं और उन्हें पुनर्जीवित करें।”
मंच पर आध्यात्मिक और सांस्कृतिक प्रतिनिधित्व
उद्घाटन सत्र में इस्कॉन के आध्यात्मिक गुरु गौरांग दास, साध्वी विशुद्धानंद भारती ठाकुर, कला केंद्र के अध्यक्ष रामबहादुर राय और सदस्य सचिव डॉ. सच्चिदानंद जोशी उपस्थित रहे। सभी वक्ताओं ने नदियों के प्रति जनजागरण की आवश्यकता और उनकी सांस्कृतिक धरोहर के संरक्षण पर ज़ोर दिया।
“नदी सिर्फ जल नहीं, जीवन की प्रतीक है” — गौरांग दास
गौरांग दास ने गंगा की यात्रा को जीवन की चुनौतियों से जोड़ते हुए कहा, “जिस प्रकार गंगा बाधाओं के बावजूद अपना मार्ग बनाती है, उसी प्रकार हमें भी जीवन की दिशा नहीं खोनी चाहिए।” उन्होंने यमुना की गंभीर स्थिति पर चिंता जताई और इस आयोजन को जन-जागरूकता का सशक्त माध्यम बताया।
साध्वी विशुद्धानंद भारती ने साझा किए अनुभव
साध्वी विशुद्धानंद भारती ने पूर्वोत्तर से कन्याकुमारी तक के नदी अनुभव साझा करते हुए कहा, “नदियों के साथ सार्थक संवाद और उनकी सांस्कृतिक पहचान को पुनर्जीवित करना समय की माँग है।”
“यमुना आज भी संकट में है” — रामबहादुर राय
कला केंद्र के अध्यक्ष श्री रामबहादुर राय ने 1980 के दशक में यमुना यात्रा के अनुभव साझा करते हुए कहा कि उस समय भी यमुना में 26 नाले गिर रहे थे। उन्होंने कहा कि आज की पहलें आशा जरूर जगाती हैं, लेकिन सिर्फ आयोजन नहीं, निरंतर प्रयास ज़रूरी हैं।
“हम नदियों से कटते जा रहे हैं” — डॉ. सच्चिदानंद जोशी
डॉ. सच्चिदानंद जोशी ने कहा कि शहरीकरण और उपभोक्तावाद ने हमें नदियों से दूर कर दिया है। उन्होंने कहा, “नदी उत्सव का उद्देश्य है — श्रद्धा, भक्ति और पुनः जुड़ाव की भावना जगाना।”
राष्ट्रीय संगोष्ठी और फिल्म फेस्टिवल ने बढ़ाया आकर्षण
पहले दिन एक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन हुआ जिसका विषय रहा — “नदी परिदृश्य गतिशीलता: परिवर्तन और निरंतरता”। संगोष्ठी में देशभर से 300 शोध पत्र प्राप्त हुए, जिनमें से 45 को प्रस्तुत किया जा रहा है। आयोजन दिल्ली विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग के सहयोग से हो रहा है।
साथ ही, “माई रिवर स्टोरी” नामक डॉक्यूमेंट्री फिल्म फेस्टिवल की शुरुआत हुई जिसमें “गोताखोर”, “रिवर मैन ऑफ इंडिया”, “अर्थ गंगा”, और “कावेरी – जीवन की नदी” जैसी फिल्मों ने नदियों से जुड़े मानवीय और पारिस्थितिक मुद्दों को उजागर किया।
संगीत और संस्कृति के संगम से समापन
उद्घाटन दिवस का समापन प्रसिद्ध गायिका गुरु सुधा रघुरामन और उनकी टीम की नदी विषयक शास्त्रीय प्रस्तुति से हुआ, जिसने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।
तीन दिवसीय यह नदी महोत्सव 27 सितंबर तक जारी रहेगा, जिसमें प्रदर्शनी, सांस्कृतिक प्रस्तुतियाँ और विमर्श शामिल हैं। आयोजन का मुख्य उद्देश्य यही है कि नदियाँ हमारी संस्कृति, आस्था और पारिस्थितिकी का अभिन्न हिस्सा हैं और हमें उनसे अपने रिश्ते को फिर से गहराई देना होगा।