खनिजों ने सभ्यता को दी दिशा: राष्ट्रपति
राष्ट्रपति मुर्मु ने इस अवसर पर अपने संबोधन में कहा कि खनिज मानव सभ्यता के विकास में रीढ़ की हड्डी रहे हैं। उन्होंने पाषाण युग, कांस्य युग और लौह युग का उल्लेख करते हुए बताया कि कैसे खनिजों ने इतिहास की दिशा तय की।
"औद्योगिकीकरण लोहे और कोयले के बिना कल्पना से परे था," राष्ट्रपति ने कहा।
खनन से विकास, पर संतुलन भी ज़रूरी
राष्ट्रपति ने कहा कि खनन जहाँ एक ओर आर्थिक संसाधनों और रोज़गार का स्रोत है, वहीं इसके दुष्परिणाम भी हैं — जैसे वनों की कटाई, जल और वायु प्रदूषण तथा विस्थापन। उन्होंने खनन गतिविधियों में सख्त नियम पालन और स्थायी प्रक्रिया अपनाने की अपील की, ताकि मानवीय व पारिस्थितिक क्षति को रोका जा सके।
समुद्री खनिज संसाधनों में असीम संभावनाएं
भारत की भौगोलिक स्थिति का जिक्र करते हुए राष्ट्रपति ने बताया कि देश तीन ओर से महासागरों से घिरा है, जिनकी गहराइयों में बहुमूल्य खनिज छिपे हैं।
उन्होंने भूवैज्ञानिकों से आह्वान किया कि वे ऐसी तकनीकों का विकास करें जो समुद्री जैव विविधता को न्यूनतम हानि पहुंचाते हुए इन संसाधनों का दोहन कर सकें।
AI और ड्रोन से हो रहा नवाचार
राष्ट्रपति ने खनन क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), मशीन लर्निंग और ड्रोन सर्वेक्षण जैसी अत्याधुनिक तकनीकों के प्रयोग की सराहना की।
उन्होंने कहा कि खनिज संसाधनों के अपव्यय को रोकने और मूल्यवर्धन के लिए प्रौद्योगिकी का प्रयोग आज की आवश्यकता है।
दुर्लभ मृदा तत्वों में आत्मनिर्भरता ज़रूरी
राष्ट्रपति ने Rare Earth Elements (REE) को आधुनिक तकनीक की आधारशिला बताते हुए कहा कि स्मार्टफोन, इलेक्ट्रिक वाहन, रक्षा प्रणालियाँ और स्वच्छ ऊर्जा – सब इन पर निर्भर हैं।
"भारत को इन तत्वों के उत्पादन में आत्मनिर्भर बनना होगा, यह केवल आर्थिक नहीं बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा भी है," उन्होंने जोर देकर कहा।
राष्ट्रपति ने स्वदेशी तकनीक के विकास को राष्ट्रीय हित में महत्वपूर्ण करार दिया।
सम्मान पाने वाले भूवैज्ञानिकों को शुभकामनाएं
राष्ट्रपति ने सभी पुरस्कार विजेताओं को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि उनका कार्य भविष्य की पीढ़ियों को प्रेरणा देगा और भूविज्ञान के क्षेत्र में भारत को वैश्विक नेतृत्व की ओर अग्रसर करेगा।