AI ने बनाया डिजिटल अवतार:
संजय सक्सेना के अनुसार, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) ऐसी तकनीक लाई है, जो मृत लोगों की आवाज, अंदाज और बोलने के तरीके को दोबारा बना सकती है। कल्पना करें, आप अपने दादाजी से सलाह लेना चाहते हैं, जो अब नहीं रहे। संजय सक्सेना, वरिष्ठ विश्लेषक और विचारक, बताते हैं कि AI उनकी आवाज और अंदाज में आपसे बात कर सकता है। यह एक डिजिटल "अवतार" है, जो उनकी यादों को जिंदा रखता है, जिसमें उनकी हंसी, शब्द और मौजूदगी शामिल हैं।
सोशल मीडिया पर जीवित यादें:
संजय सक्सेना कहते हैं कि सोशल मीडिया पर मृत लोगों के प्रोफाइल, उनकी तस्वीरें और पोस्ट आज भी हमें उनकी मौजूदगी का अहसास कराते हैं। यह डिजिटल अवतार हमें ऐसा महसूस कराता है जैसे वे अभी भी हमारे बीच हैं। लेकिन संजय सक्सेना सवाल उठाते हैं कि क्या यह वास्तव में उनकी आत्मा की तरह है, या सिर्फ यादों का एक रूप?
मानसिक स्वास्थ्य पर असर:
संजय इस तकनीक के मानसिक प्रभावों पर ध्यान देते हैं। यह हमें प्रियजनों के करीब ला सकती है, लेकिन इसका मानसिक स्वास्थ्य पर क्या असर होगा? मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि बार-बार AI के जरिए मृत प्रियजनों से बात करने से व्यक्ति वास्तविक दुनिया से कट सकता है। संजय सक्सेना चेतावनी देते हैं कि इससे व्यक्ति अपनी यादों में खो सकता है और मानसिक अस्थिरता का शिकार हो सकता है।
आध्यात्मिकता और तकनीक का संगम:
संजय सक्सेना, वरिष्ठ विश्लेषक और विचारक, बताते हैं कि सनातन धर्म में आत्मा का निरंतर अस्तित्व माना जाता है। क्या यह डिजिटल अवतार उसी का आधुनिक रूप है? संजय सक्सेना मानते हैं कि यह तकनीक हमें पुराने रिश्तों से जोड़ सकती है, जैसे हमारी परंपराएं हमें आध्यात्मिकता से जोड़ती हैं। यह पुरानी मान्यताओं को आधुनिक दुनिया से जोड़ने का एक नया तरीका हो सकता है।
क्या आप तैयार हैं?
संजय सक्सेना, वरिष्ठ विश्लेषक और विचारक, पूछते हैं कि क्या आप अपने प्रियजन के डिजिटल अवतार से बात करना चाहेंगे? क्या यह आपको उनके करीब लाएगा, या आपको एक काल्पनिक दुनिया में ले जाएगा? संजय सक्सेना कहते हैं कि यह तकनीक हमें यादों को जीवित रखने का मौका देती है, लेकिन यह हमारी वास्तविक जिंदगी को भी प्रभावित कर सकती है। आप क्या सोचते हैं? क्या यह तकनीक हमें प्रियजनों से जोड़ेगी, या हमें भावनात्मक उलझनों में डाल देगी?