रचना का परिचय और संदर्भ;
"सात पेंडिंग केस" एक नाटकीय रचना है, जिसमें डॉ० नवलपाल प्रभाकर दिनकर ने एक नए जज के कोर्ट में सात लंबित मामलों को सुलझाने की प्रक्रिया को दर्शाया है। यह रचना समाज की गहरी समस्याओं को उजागर करते हुए यह दिखाती है कि justice केवल कानून की किताबों तक सीमित नहीं होना चाहिए, बल्कि यह मानवीय संवेदनाओं और सुधार के अवसरों पर आधारित होना चाहिए। जज साहब हर मामले में सजा देने से पहले सुधार का मौका देते हैं, जो इस रचना को एक progressive narrative बनाता है।
रचना का सामाजिक और साहित्यिक महत्व:
"सात पेंडिंग केस" अपने समय से कहीं आगे की रचना है। इसमें जिन मुद्दों को उठाया गया है—जैसे दहेज की मांग, पेड़ों की कटाई, भ्रूण हत्या, शराब की लत, एड्स से जुड़ा stigma, बाल विवाह, और लव जिहाद—ये आज भी भारतीय समाज में प्रासंगिक हैं। रचना की खासियत यह है कि यह हर मामले को एक मानवीय दृष्टिकोण से देखती है और सजा के बजाय सुधार पर जोर देती है।
हिंदी साहित्य के प्रोफेसर डॉ. रमेश चंद्र ने कहा, “डॉ० नवलपाल प्रभाकर दिनकर ने इस रचना में साहित्य को सामाजिक बदलाव का medium बनाया है। यह रचना हमें remind करती है कि justice का असली मतलब अपराधी को सजा देना नहीं, बल्कि उसे सुधारना और समाज को बेहतर बनाना है।”
रचना की संरचना और थीम्स
रचना एक कोर्ट रूम की setting में सेट है, जहाँ एक नया जज सात पेंडिंग cases को सुलझाता है। हर case एक अलग सामाजिक issue को represent करता है:
Dowry (दहेज): रामधारी बनाम रामगोपाल case में दहेज की मांग की समस्या को दिखाया गया है। जज रामगोपाल को दहेज के बिना शादी करने और रामधारी को नुकसान की भरपाई करने का आदेश देते हैं।
Environmental Degradation (पर्यावरण विनाश): सरपंच बनाम मांगे case में पेड़ों की कटाई का मुद्दा उठाया गया। जज मांगे को पेड़ लगाने और उनकी देखभाल करने की सजा देते हैं, साथ ही उसे सरकारी तनख्वाह देते हैं।
Female Foeticide (भ्रूण हत्या): ननके राम बनाम मुंशी case में नवजात बच्ची को मारने की कोशिश का मामला है। जज मुंशी को उसकी बेटी स्वीकार करने और सरकारी योजनाओं का लाभ लेने की सलाह देते हैं।
Alcoholism (शराब की लत): बिमला बनाम नत्थु case में शराब की लत से परिवार की बर्बादी दिखाई गई। जज नत्थु को शराब छोड़ने की शपथ दिलवाते हैं।
AIDS Stigma (एड्स से जुड़ा कलंक): हरिया बनाम कमला case में एड्स के प्रति गलतफहमियों को दूर किया गया। जज कमला को हरिया की देखभाल करने की सलाह देते हैं।
Child Marriage (बाल विवाह): मुखिया बनाम बिरजू case में बाल विवाह की समस्या को उठाया गया। जज बिरजू को समझाते हैं कि लड़कियों की शादी 18 साल बाद ही करनी चाहिए।
Love Jihad (लव जिहाद): रमेश की बेटी का मामला लव जिहाद के नाम पर उठाया गया। जज इसकी गलतफहमी को दूर करते हुए अंतरधार्मिक विवाह को एकता का प्रतीक बताते हैं।
रचना की पूरी प्रस्तुति | सात पेंडिंग केस
आज कोर्ट में एक नया जज आने वाला हैं। सभी लोग कोर्ट में बैठे हुए उस नए जज का इंतजार कर रहे हैं। सुना हैं यह जज तुरन्त ही किसी भी मामले का फैसला सुना देते हैं। वह दलीलों पर फैसला लेने वाले नहीं अपितु केस की तह तक जाने मन की सुनकर फैसला देते हैं। कुछ ही देर में जज कोर्ट में आ गये। सभी लोग बड़े अदब से खड़े हो गये। जज साहब के कुर्सी पर बैठते ही सभी अपनी-2 जगह पर बैठ गये। सभी के बैठते ही जज ने कहा -
जज: हां तो रीडर, आप बतायेंगे कि यहां पर कितने केस पेंडिंग हैं और कौन-2 से हैं क्या इन केसों के जो आदमी हैं अर्थात जिनके खिलाफ ये केस हैं वे सभी आए हुए भी हैं या नहीं।
रीडर: जज साहब, अब तक के जो कि कई सालों से केस पेंडिंग हैं वे केस सात केस हैं।
(1) पहला केस रामधारी ने फाईल कर रखा हैं, उसने यह केस रामगोपाल के खिलाफ फाईल किया हैं। रामधारी ने कहा हैं कि रामगोपाल ने उसकी बेटी राधा से अपने बेटे मोहन की शादी करने के लिए बहुत सारा दहेज मांगा हैं।
(2) दूसरा केस गांव के एक सरपंच ने उसके गांव के ही एक युवक मांगे के खिलाफ दर्ज किया हैं। इस केस में सरपंच ने कहा हैं कि मांगे को कई बार मना करने पर भी वह जबरदस्ती गांव व गांव के आस-पास व गांव से बाहर बणी के सारे वृक्ष काट-2 कर शहर में बेच आता हैं।
(3) तीसरा केस जज साहब ननके राम ने मुंशी के खिलाफ फाईल किया हैं। ननके राम ने बताया हैं कि - मुंशी ने अपनी एक दिन की नवजात बच्ची को गांव से बाहर एक पेड़ के नीचे फेंक आने के लिए फाईल किया हैं। वह बच्ची आज भी ननके राम के पास सही सलामत हैं। यदि वह उसे सही समय पर ना लाता तो वह नहीं रो-2 कर मर जाती या कोई जानवर खा जाता।
(4) चौथा केस बिमला ने दर्ज किया हैं वह बताती हैं कि उसका पति नत्थु बहुत शराब पीता हैं। घर का सारा सामान बेच दिया। बच्चों को पीटता हैं। घर में खाने को कुछ भी नहीं हैं बच्चे को पानी पिलाकर सुलाती हैं। यदि रोते हैं तो नत्थु उन्हें पीटता हैं।
(5) पांचवा केस रामू ड्राइवर ने फाईल किया हैं, उसका कहना हैं कि वह एड्स पीड़ित हैं। मगर लोग उसे इस प्रकार से देखते हैं। जैसे उसे छूत का रोग हैं। उसे सभी घृणा पूर्व दृष्टि से देखते हैं। उसे कोई भी बोलना पसंद नहीं करते हैं। उसके घर वाले ही उसे देखना पसंद नहीं करते हैं।
(6) छटा केस गांव के मुखिया ने फाईल किया हैं। वह कहता हैं कि गांव का बिरजू अपनी '2' साल की लड़की सोनिया की शादी कर रहा था। जब मुखिया ने मना किया तो दोनों में हाथापाई हो गई।
(7) सातवां और अंतिम केस हैं लव जिहाद का, जोकि गांव की लड़कियों में लव जिहाद वाली बिमारी का भंयकर रूप धारण करता जा रहा हैं। यहां पर हमारे गांव में बाहर से आकर रहने वाले मुसलमानों ने यहां की हिन्दू लड़कियों को अपने प्यार के जाल में फंसाकर उनसे शादी कर जबरदस्ती मुसलमान बनाते जा रहे हैं। एक ताजा केस अभी कुछ दिन पहले की रमेश की लड़की का आया हैं। उसने एक मुसलमान लड़के के साथ भागकर शादी कर उसके इस्लाम धर्म को कबूल कर लिया हैं, ना चाहते हुए भी उसे जबरदस्ती इस्लाम धर्म कुबूल करवाया गया हैं। ये सात केस थे जज साहब जो हमारे पास पेंडिंग हैं। इनका फैसला काफी दिनों से उलझा हुआ हैं।
जज: क्या इनमें से कोई आया हुआ हैं तो ठीक हैं नहीं तो सभी को नोटिस देकर कल आने के लिए बोलो। इन सभी केसों का फैसला कल होगा। आज कोर्ट यहीं पर बर्खास्त होती हैं।
दूसरे दिन प्रातः 10 बजे कोर्ट में सभी उपस्थित होकर अपनी-2 जगह आकर बैठ गये। जगह काफी बड़ी थी और कुर्सी लगी हुई थी। सभी आने वालों को ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा। कुछ ही देर में जज साहब भी आ गये। उसके आने पर सभी लोग अदब से खड़े हो गये। जज ने सभी को बैठने का इशारा किया। सभी अपने निश्चित स्थान पर बैठ गए। सभी के बैठ जाने पर जज बोला - हां तो आज की कार्यवाही शुरू की जाए।
रीडर: आज की कार्यवाही शुरू की जाए। मुकद्दमे के सभी गवाह और सभी व्यक्ति जिनके खिलाफ मुकद्दमा दायर किया हैं, वो सभी आए हुए हैं। अब आगे की कार्यवाही शुरू की जाती हैं। पहला मुकद्दमा जोकि रामधारी ने दायर किया था, उसकी कार्यवाही शुरू की जाती हैं। रामधारी को कठघरे में बुलाया जाए। रामधारी कठघरे में आता हैं। उधर से रामगोपाल को भी कठघरे में बुलाया गया। जब दोनों आमने-सामने के कठघरे में आ गये तो रामगोपाल ने जो वकील कर रखा था वह रामधारी के पास आकर कहने लगा -
वकील: हां तो रामधारी आपने रामगोपाल के खिलाफ जो दहेज का जो केस दर्ज किया हैं, वो कहां तक ठीक हैं।
रामधारी: जी वकील साहब, मैंने अपनी बेटी राधा का रिश्ता रामगोपाल के बेटे मोहन के साथ किया था। उस समय इन्होनें कहा था कि मुझे तो अपने बेटे के लिए एक सुन्दर सुशील लड़की की तलाश थी। वो सभी गुण मैंने आपकी लड़की में देखे हैं। मुझे कुछ भी नहीं चाहिए बस आपकी बेटी और रोटी चाहिए। मेरे साथ जितने भी बाराती आएं सभी को अच्छा खाना खिला देना। लेकिन जब ये मेरे घर बारात लेकर आए तो फेरों पर इन्होनें मुझसे दहेज की मांग की और ना देने की सूरत में बारात वापिस ले जाने की धमकी दी। मेरे मना करने पर इन्होनें न तो शादी की और मैने जो खाना तैयार किया था वह भी बेकार गया। मेरा बहुत खर्चा हो गया साहब और इज्जत गई उसका तो कोई मोल ही नहीं।
वकील: जज साहब, मेरा मुवक्कील तो सरासर मना कर रहा हैं। इसका मतलब रामधारी झूठ बोल रहा हैं। आजकल लोगों ने सरकारी कानूनों को तोड़ने का पेशा-सा बना लिया हैं। कुछ भी हो या ना हो, सीधा कोर्ट में केस दायर कर देते हैं।
सरकारी वकील: सॉरी जज साहब, पहले दोनों की बात सुन लेने पर ही कोई निर्णय लेना होगा। यदि आपकी इजाजत हो तो मैं रामगोपाल से कुछ पूछना चाहता हूँ।
जज: इजाजत हैं।
सरकारी वकील: हां तो रामगोपाल आप मेरे कुछ सवालों के जवाब दें।
रामगोपाल: बोलो वकील साहब।
सरकारी वकील: आपके बेटे मोहन का रिश्ता राधा के साथ तय हुआ था।
रामगोपाल: हां हुआ था तो ---
सरकारी वकील: आप इनके घर बारात लेकर गये थे।
रामगोपाल: हां लेकर गया था।
सरकारी वकील: तो वापिस क्यों लौट आया बिना शादी के।
रामगोपाल: वो हम में बात ही कुछ ऐसी हो गई थी।
सरकारी वकील: क्या झगड़ा हुआ था।
रामगोपाल: नही तो --
सरकारी वकील: तो फिर आप शादी से वापिस लौट क्यों आये थे, इसका कोई जवाब भी जवाब रामगोपाल के पास नहीं था वह निरुत्तर खड़ा था।
सरकारी वकील: यदि मेरे दोस्त वकील इनसे और कुछ पूछना चाहते हैं तो वो पूछ सकते हैं बाकी मामला साफ हैं। अब आप इन्हें जो सजा देना चाहें वो दे सकते है।
रामगोपाल: अपने हाथ से मुकद्दमा जाते हुए देख कहने लगा - बस-2 जज साहब, मैं चाहे जितना भी अपना गुनाह छुपाने की कौशिश करुं पर यह मुमकिन नहीं होगा। अब बेहतर यही होगा कि मैं अपना जुर्म कबूल कर लूं। हां मैने इनसे दहेज की मांग की थी, और इनका खाना भी बर्बाद किया हैं। मुझे इसकी जो भी सजा मिलेगी, मै सहर्ष स्वीकार करुंगा।
जज: चलो आपने खुद ही अपना जुर्म कबूल कर लिया। अब आपकी सजा में शायद मैं कुछ रिहायत बरतूंगा। अब जबकि मामला बिल्कुल साफ हो गया हैं तो सजा भी मिलनी चाहिए। दहेज के मामले में यदि कानूनी तौर पर और अन्य धाराओं को लागू किया जाएं तो आपका जुर्म बहुत बड़ा हैं और आपको इसके बदले में जेल जाने की सजा भी हो सकती हैं, परन्तु मैं अपने बलबुते पर आपको एक सुधरने का मौका देना चाहता हूँ। उसके लिए आपको मेरी सजा स्वीकार करनी होगी।
रामगोपाल: मैं आपकी ही सजा भुगतने के लिए तैयार हूँ। आप जो भी सजा मुझे देंगे उसे सहर्ष ही मैं स्वीकार कर लूंगा।
जज: आपकी सजा ये हैं कि आप अपने बेटे मोहन की शादी राधा से ही करेंगे और बदले में कोई भी दहेज का सामान नहीं लेंगे बल्कि आप राधा के बाप रामधारी को पहले वाले खाने का पूरा-2 पैसा ब्याज सहित देंगे। आपके लड़के और रामधारी की लड़की राधा इनकी जोड़ी तो राधा मोहन की जोड़ी के समान ही हैं। इन दोनों की शादी करके तुम्हें पूर्ण होने का आशीर्वाद देना।
रामगोपाल: मैं दहेज के लोभ में अंधा हो गया था, जज साहब। आपने मेरी आंखे खोल दी अब आगे से मैं किसी प्रकार का दुख नहीं होने दूंगा। आओ रामधारी हम दोनों गले मिलकर पिछले गिले-शिकवे यही पर खत्म कर दें। और आज से ही मैं यह प्रण लेता हूँ कि आगे से अपने दूसरे लड़के की शादी में भी ना तो दहेज लूंगा और अपनी बेटी को शादी में भी ना दहेज दूंगा, और जो-2 शर्तें जज साहब ने रखी हैं उन्हें भी पूरा करुंगा। आपके खाने के सारे पैसे भी मैं तुम्हें दूंगा। अब दोबारा बारात बुलाने की तैयारी करो। हम जल्द ही बारात लेकर आयेंगे। और हां जितना भी खाने पर खर्चा होगा वो भी मैं ही दूंगा।
जज: अब तुम दोनों का फैसला की चुका हैं। अब तुम दोनों घर जा सकते हो, और खुशी-2 शादी करो और मेरी तरफ से भी वर-वधु को आशीर्वाद देना। छोटा-सा उपहार उनकी शादी पर मैं भी दूंगा। अतः जब उनकी शादी हो तो मुझे भी बताना। अब दूसरे केस के बारे में बतायें और उससे संबंधित लोगों को सामने कठघरे में बुलाया जायें।
रीडर: सर दूसरा केस गांव के सरपंच ने उसके ही गांव के एक युवक मांगे के खिलाफ दर्ज किया और ये दोनों अर्थात सरपंच और मांगे दोनों ही कठघरे में आपके सामने उपस्थित हो चुके हैं।
सरकारी वकील: सरपंच के पास जाकर - हां तो सरपंच जो आपने मांगे के खिलाफ जो केस दर्ज किया हैं मैं एक बार फिर से दोबारा जानना चाहूँगा।
सरपंच: साहब, मैं गांव का सरपंच हूँ। गांव का सरपंच होने के नाते मैंने इसे कई बार समझाया कि तुम गांव के पेड़ मत काटो। पेड़ से प्रदूषण की रोकथाम होती हैं, हमें शुद्ध वायु मिलती हैं। कई बार कई जगह शिकायत भी की मगर कोई फायदा नहीं हुआ। हर जगह रिश्वत देकर अपने आपको बचा लेता। इस तरह से इसका मनोबल और बढ़ता गया। यह किसी की नहीं मानता सो हारकर मैंने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
जज: क्यों मांगे, सरपंच सही कह रहा हैं।
मांगे: हां साहब, सरपंच सही कह रहा हैं। मैंने बहुत सारे वृक्ष काटे हैं। मेरे परिवार की रोजी-रोटी का काम ही वृक्षों की कटाई से चलता हैं। मैं गरीब हूँ। पढ़ाई भी काफी की हैं। नौकरी के लिए दर-2 भटका नौकरी के लिए मिन्नतें भी की, मगर लोगों ने रिश्वत मांगी। गरीब होने की वजह से खाने को ही लाले पड़े रहते। उन्हें रिश्वत कहां से देता। फिर मैंने पेड़ काटना आरम्भ किया तब गुजारा हुआ, जो भी कोई कुछ कहता उसे रिश्वत दे देता। वह चुप हो जाता और मैं निडर होकर पेड़ काटता। आपके आने से पहले कई जजों को भी मैं रिश्वत दे चुका हूँ इसलिए मेरा केस काफी सालों से चलता आ रहा हैं। एक बात तो मैंने देखी हैं कि पैसे के बूते पर हम कुछ भी कर सकते हैं।
वकील: देखा जज साहब आपने, मांगे ने कैसे निडर होकर अपना जुर्म कबूल कर लिया हैं। अभी सभी के सामने इसने रिश्वत देने वाली बात भी कहीं हैं, सो मेरी आपसे गुजारिस हैं कि इसे कड़ी-2 सजा देने का कष्ट करें।
जज: तो आपने अपना जुर्म कबूल कर लिया हैं। पेड़ काटने और रिश्वत देने का आरोप में आपको कोर्ट से कड़ी सजा दे सकता हूँ लेकिन आप गरीब परिवार से हैं और पढ़े लिखे युवा हो तुम्हारे कंधों पर देश का भार हैं। यदि तुम्हें सजा दी जाएगी तो कैसे काम चलेगा। यह कोर्ट तुम्हें सुधरने का मौका देते हुए यह हिदायत देता हैं कि हर महीने तुम सौ पेड़ लगाओगे और उनकी सेवा करोगे, पानी बीज और खाद का पूरा ध्यान रखोगे। अब तुम्हें पेड़ काटने की आवश्यकता नहीं होगी क्योंकि इसके बदले तुम्हें इसकी तनख्वाह दी जायेगी। अब तुम बेरोजगार नहीं सरकारी खजाने से हर माह तनख्वाह दी जाएगी।
मांगे: जी जज साहब आपकी यह सजा मुझे मंजूर हैं। आज के बाद मैं कभी कोई पेड़ नहीं काटूँगा और आपने महीने के 100 पेड़ कहा हैं लेकिन मैं 200 पेड़ लगाऊँगा, और उनकी सेवा भी करुँगा बस इसके बदले आप मेरे परिवार के भरण-पोषण की सुविधा कर दें।
जज: यह केस भी खत्म हुआ। अगला केस क्या हैं ?
रीडर: अगला केस भ्रूण हत्या का हैं। ये एक ऐसा केस हैं जो आजकल लगभग आम प्रचलन में हैं क्योंकि आज जो जनसंख्या में औरतों की संख्या में गिरावट आई हैं वो इसी का नतीजा हैं। इस केस को दर्ज करवाने वाला ननके राम हैं। उसने मुंशी पर आरोप लगाया हैं कि वह अपनी नवजात लड़की को गांव से बाहर पेड़ के नीचे रख आया था और ननके राम उसे उठा लाया, बाकि आप इनके मुंह से सुनें। ये दोनों ही कठघरे में आमने-सामने आपके सम्मुख उपस्थित हो चुके हैं।
जज: दोनों के बयान लिए जायें।
वकील: ननके राम के सामने जाकर - तो ननके राम जी पहले आप बताये क्या वो लड़की आपके पास हैं ?
ननके राम: हां साहब वो लड़की मेरे पास हैं। मैं उसे कोर्ट में लेकर आया हूँ।
वकील: क्या आपने देखा था कि ये दोनों ही अर्थात मुंशी और उसकी पत्नी अपनी एक दिन की बच्ची को खेतों में पेड़ नीचे फेंक कर आये थे।
ननके: हां हुजूर ये आंखें धोखा नहीं खा सकती वो बच्ची ये दोनों ही पेड़ के नीचे छोड़कर आए थे। मैंने वह बच्ची उठाकर इनको रोकना भी चाहा था, लेकिन ये दोनों वहां से भाग आए थे।
वकील: मुंशी के पास जाकर, मुंशी आप कह रहे हैं कि यह बच्ची आपकी नहीं हैं और ननके राम कह रहा हैं कि ये आपकी हैं। कौनसी बात सत्य हैं ?
मुंशी: जी वकील साहब, आप गांव में भी किसी से पूछ सकते हो कि मेरी पत्नी कभी गर्भवती ही नहीं हुई।
वकील: ये मुकद्दमा साफ हो चुका हैं, जज साहब अब आप फैसला सुना सकते हैं।
सरकारी वकील: ठहरिए जज साहब, मुझे भी मुंशी से कुछ सवाल पूछने हैं।
जज: पूछ सकते हैं।
सरकारी वकील: हां तो मुंशी आप कह रहे हैं कि यह बच्ची आपकी नहीं हैं। क्या बात आपकी सही हैं ?
मुंशी: बिल्कुल सही हैं।
सरकारी वकील: ननके राम के पास जाकर - आप कह रहे हैं कि ये बच्ची मुंशी की ही हैं। आप तो जानते हैं कि कोर्ट दलीलों और सबूतों को मानता हैं न कि आंखों देखी।
ननके: जी वकील साहब, यदि आप इस बच्ची और इसके बाप का अल्ट्रासाउंड करा सकते हैं। मुझे खुशी होगी कि मैं इस पुण्य के काम में भागीदार हो सका। डीएनए का नाम सुनते ही मुंशी चौंक पड़ा क्योंकि उसे पता था कि डीएनए में वह जरुर फंस जायेगा। इसलिए अपनी गलती स्वीकार करने के अलावा उसके पास और कोई चारा था ही नहीं। इसी उधेड़ बुन में लगा और काफी सोच-विचार कर मुंशी कहने लगा ---
मुंशी: जी जज साहब, मुझे माफ कर दो। यह लड़की मेरी ही हैं। मैं अपनी गलती पर शर्मिंदा हूँ। मैं अपनी गलती मानता हूँ और आप जो भी सजा मुझे देना चाहें वह मुझे मंजूर हैं।
जज: फिर आप बार-2 झूठ क्यों बोल रहे थे ?
मुंशी: मैं सोच रहा था कि किसी प्रकार से इस लड़की से मेरी जान छूटे। मगर जब इन्होने डीएनए की बात की तो मुझे लगा कि मेरी चोरी पकड़ी जायेगी और सजा भी ज्यादा होगी इसलिए मैंने सच्चाई को पहले ही स्वीकार कर लिया।
जज: मगर तुम अपनी बच्ची को मारना क्यों चाहते थे ?
मुंशी: जी जज साहब, मैं एक गरीब परिवार से हूँ। मेरा राशन कार्ड भी बीपीएल का हैं। पहले ही चार कन्यायें घर में हैं एक पुत्र की चाह की वजह से ये पांचवी कन्या जन्मी थी। आगे इनको पढ़ाना-लिखाना, शादी करना आदि खर्चा कैसे उठा पाऊँगा। इसीलिए ये इतना तुच्छ विचार मेरे मन में आया। पैसे वाले लोग तो अल्ट्रासाउंड आदि कराके पहले ही गर्भ को गिरा देते हैं। उन्हीं की रीस पीटने चला था मैं गरीब सो फंस गया।
जज: अरे बावले मुंशी भाई। तुझे पता नहीं जो काम आज तुमने किया हैं उसकी सजा जेल से कम नहीं हैं और फिर बेटी भी तो घर को रोशन करती हैं। पहले बेटी बाप पर बोझ होती थी। अब बोझ थोड़े ही हैं। अब तो हमारी सरकार बेटियों के लिए बहुत कुछ कर रही हैं। सरकार ने बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, शगुन योजना आदि बहुत सारी योजनाएं चला रखी हैं। एक से ज्यादा बेटी होने पर सरकार पांच साल तक उन्हें पांच-2 हजार रुपए हर साल देती हैं। उसके स्कूल भेजने पर मुफ्त शिक्षा के साथ-2 हर महीने बेटियों का बैंक खाता खुलवाकर उसमें 400 से 600 तक रुपए भेजती हैं। ताकि उसकी पढ़ाई की सामग्री या कपड़े आदि का खर्चा वहन किया जा सके। इसके बावजूद भी लड़कियों की प्रतिभा के आधार पर उन्हें नकद रुपए और अन्य पुरस्कार आदि समय-2 पर हमारी सरकार देती रहती हैं। इसके बाद आती हैं शादी की बारी तो हमारी सरकार ने एक शगुन योजना को आरम्भ किया हैं। जिसके तहत बेटी की शादी में भी सरकार द्वारा शगुन के तौर पर 51 हजार से 1 लाख रुपए तक की धनराशि नकद दी जाती हैं, तो अब तुम ही बताओ कि हमारी बेटियां हम पर कहां पर बोझ हुई।
मुंशी: यदि ऐसी बात हैं तो जज साहब, बेटियां बिल्कुल भी हम पर बोझ नहीं हैं। मैं अपनी बेटी को सहर्ष स्वीकार करता हूँ। लाओ ननके राम मेरी बेटी मुझे लौटा दो। पर जज साहब एक बात तो बताओ कि ये पैसा मिलेगा कैसे ?
जज: कभी फुर्सत में आ जाना मैं सारी कार्यवाही खुद की करके तुम्हें पैसा दिला दूंगा। अब तुम्हें बाइज्जत बरी किया जाता हैं अपनी इस नाजुक सी बच्ची का ख्याल रखना। अब अगला केस लाया जाए।
रीडर: जज साहब चौथा केस बिमला ने दर्ज किया हैं। बिमला और उसके पति नत्थु को कठघरे में बुलाया गया। नत्थु और बिमला दोनों आमने-सामने के कठघरे में उपस्थित हैं।
वकील: बिमला के पास जाकर कहा - बिमला जी क्या मैं आपसे कुछ पूछ सकता हूँ कि आपने अपने ही पति के खिलाफ केस दर्ज क्यों कराया हैं।
बिमला: जी साहब, मेरे पति शराब पीते हैं।
वकील: शराब तो पूरा देश पीता हैं पर आजतक उनकी पत्नियों ने तो कभी कोई केस नहीं किया।
बिमला: नहीं किया होगा, पर मैं तो शराब को नहीं झेल सकती।
वकील: क्यों ? ऐसी क्या बात हैं ?
बिमला: इन्होने पूरी उम्र निकाल दी शराब में।
वकील: तो पहले केस क्यों नहीं किया।
बिमला: जी पहले तो ये थोड़ी बहुत पीते थे तो मैं काम चला भी लेती थी मगर अब तो इन्होने हद ही कर दी हैं। दिन-रात शराब के नशे में लीन रहते हैं। अब आप ही बतायें कि मैं क्या करुं।
वकील: तो आप इन्हें समझा भी सकती थी।
बिमला: बहुत कोशिश की मगर नही माने। यदि आप समझा सके तो आपका बहुत ऐहसान होगा मुझपर।
वकील: नत्थु के पास जाकर - हां तो नत्थु जी, आप शराब क्यों पीते हैं ?
नत्थु: हां तो -- पीता हूँ तो तेरा क्या जाता हैं।
वकील: तुमने अब भी शराब पी रखी हैं।
नत्थु: पी रखी हैं भाई। तन्नै कौनसी ल्या के दी थी। अपने पैसे की लाया था।
वकील: उल्टा बोलता हैं।
नत्थु: क्यों भाई। ऐसा क्या उल्टा बोल दिया हैं मैंने।
वकील: जज साहब। इसका फैसला आप ही करो, इससे बहस करना बेकार हैं।
जज: जैसा कि पता चला हैं कि - नत्थु शराब बहुत ज्यादा पीता हैं और इसने घर के सारे बर्तन और घर का जरूरी सामान सब कुछ बेच दिया और कमाता भी नहीं। शादी के बाद आदमी का दायित्व बनता हैं कि वह अपना और अपने परिवार का भरण-पोषण करें लेकिन इसने यह काम नहीं किया और अपने बीवी और बच्चों को पीटा। अब इसकी सजा यह हैं कि इसे जेल में डाल दिया जाए। जब तक यह शराब छोड़ने की प्रतीज्ञा ना कर लें तब तक इसे जेल में ही रखा जाए।
नत्थु: बस-2, जज साहब मेरी आंखे खुल गई हैं। आज के बाद में मैं कभी शराब नहीं पीऊँगा, आप मुझे माफ कर दीजिए। मैं आज इस कोर्ट में प्रतीज्ञा करता हूँ कि आज के बाद कभी शराब नहीं पीऊँगा।
जज: चलो ठीक हैं। आपको बरी किया जाता हैं। अब आगे के केस की कार्यवाही की जाए।
रीडर: अगला केस जज साहब। एक ट्रक ड्राइवर का हैं। उसने अपने घर वालों के खिलाफ के केस किया हैं। बाकि की कार्यवाही उसके कठघरे में आने के बाद की जायेगी। ट्रक ड्राइवर को कठघरे में बुलाया गया हैं लो वह कठघरे में आ चुका हैं।
वकील: ट्रक ड्राइवर के पास पहुँच कर - हां तो आपने यह केस अपने परिवार वालों के खिलाफ दर्ज किया हैं। ऐसा क्यों किया आपने ?
ड्राइवर: जी सबसे पहले मैं अपने बारे मैं आपको कुछ बताना चाहता हूँ। मेरा नाम हरिया हैं मैं एक ट्रक चलाता हूँ। आज तक मैंने कभी भी पत्नी के अलावा किसी और औरत के बारे में सोचा तक नहीं हैं फिर यौन संबंधों की बात तो दूर। पर मेरी पत्नी मुझ पर शक करती हैं कि मैं ट्रक चलाने के दौरान बहुत से यौन संबंध बना चुका हूँ , जिस कारण मुझे एड्स नामक रोग हो गया हैं। मेरी डाक्टरी रिपोर्ट आने पर हमारे घर में ऐसा लगा कि जैसे किसी ने एटम बम गिरा दिया हो। सभी मुझसे नाराज हैं। मुझसे कोई भी बात नहीं करता हैं। ना मुझे खाना देते हैं। मेरे लिए एक कमरा अलग से दे रखा हैं। वहीं पर पड़ा रहता हूँ। मेरी उम्र मानता हूँ कि बहुत कम रह गई हैं। पर इस हिसाब से तो यह बची हुई उम्र भी मुझे दुगुनी महसूस होने लगी हैं। अब आप ही बताए, जज साहब मैं क्या करुं ?
वकील: आपकी बीवी आई हुई हैं।
हरिया: हां भाई आई हुई हैं। वो सबसे पीछे बैठी हुई हैं।
वकील: क्या नाम हैं उसका।
हरिया: कमला नाम हैं उसका।
वकील: कमला को कठघरे में बुलाया जाए।
हरिया: लो साहब, वो आ गई।
वकील: कमला के पास जाकर - हां तो कमला जी। आप हमें बतायें कि जो बातें हरिया ने हमें बताई हैं वो सभी सत्य हैं।
कमला: हां साहब, सही हैं।
वकील: पर तुम ऐसा व्यवहार क्यों कर रहे हो।
कमला: यदि हमें भी ये बीमारी हो गई तो, बड़ी खतरनाक बीमारी हैं।
वकील: तुम्हें पता भी हैं कि ये बीमारी कैसे फैलती हैं।
कमला: हमें तो बस इतना पता हैं कि यदि मैं इनके साथ बातें करुंगी या इनके साथ रहंूगी तो ये छूत की बीमारी मुझे भी लग जायेगी।
वकील: फिर तो आप इस बीमारी के बारे में कुछ भी नहीं जानती हैं।
कमला: नही, मुझे जानना भी नही हैं।
वकील: आप कभी टीवी नही देखती हैं क्या ? टीवी पर पूरी जानकारी दी जाती हैं। एड्स की बीमारी किसी से हाथ मिलाने से या साथ खाना खाने से चूमने से या मच्छर के काटने से नहीं फैलता। एड्स फैलता हैं असुरक्षित यौन संबंध से, गलत खून किसी स्वस्थ मरीज को चढ़ाने से इंजेक्शन से एड्स पीड़ित महिला से बच्चे को यदि समय से पहले संभाला ना जाए तो एड्स होने के आसार बनते हैं। यदि समय से पहले संभाल कर ली जाए या बीमारी का पता लग जाए तो भी कुछ हद तक बीमारी का रोका जा सकता हैं।
कमला: हां वकील साहब समझ गई मगर हमारे पति को ये बीमारी जरुर यौन संबंधित कारणों से ही लगी हैं। इसलिए ही तो हमारे घर वाले सब इनसे नाराज हैं।
वकील: मगर अभी-2 आपके सामने ही आपके पति ने शपथ ली हैं कि आपके सिवा और किसी औरत के बारे में उसने सोचा तक नहीं हैं फिर आप उन पर ये लांछन कैसे लगा सकती हैं।
कमला: सभी ट्रक चलाने वाले ऐसे ही होते हैं, मैंने सुना हैं।
वकील: नहीं-2 कमला जी, ये जरूरी नहीं हैं। क्या आप बता सकती हैं कि क्या आपके पति के साथ कोई ऐसा हादसा हुआ था। जिसमें इन्हें खून की जरुरत पड़ी हो।
कमला: हां हुआ था वकील साहब, उस समय इन्हें तीन-चार खून की बोतल लगी थी।
वकील: हो सकता हैं कि उन्हीं से इन्हें ये बीमारी हुई हैं। आपके पति सच कह रहे हैं।
कमला: ये तो मैंने सोचा ही नहीं था। मैंने तो इन पर बस यूंही शक करती रही। अब कमला की आंखों में आंसू आ गये। वह रोते हुए कहने लगी आप मुझे माफ करें बस यूं ही लोगों के बहकावे में आकर आप पर शक करती रही। जज साहब मेरी आंखे खुल गई। अब मैं इन्हें घर ले जाने की अनुमति चाहती हूँ।
जज: हां-2 आप इन्हें ले जाईये और इनकी खूब सेवा करें। इन्हें किसी चीज की कमी ना होने दें। किसी भी तरह से इन्हें उदास ना होने दें।
कमला: साहब मैं इन्हें किसी प्रकार से शिकायत का मौका नहीं दूंगी। अपने पति की तरफ दौड़ पड़ी कमला। उनके पैरों में झुककर माफी मांगने लगी। और उसे लेकर घर चली गई।
जज: अगला केस क्या हैं ?
रीडर: अगला केस बाल-विवाह का हैं जो कि गांव के मुखिया ने बिरजू के खिलाफ दर्ज किया हैं।
जज: ठीक हैं दोनों पक्षों को सामने पेश किया जाए। दोनों पक्ष वाले कठघरे में आ गये।
वकील: पहले गांव के मुखिया के पास जाकर बोला - हां तो आपने केस दर्ज किया हैं कि आपके गांव का बिरजू अपनी 12 वर्षीय लड़की की शादी करना चाहता हैं।
मुखिया: हां जी हां। बिरजू तो शादी कर ही देता ये मैं मौके पर वहां पहुँच गया और शादी रुकवा दी। इसे समझाने की कोशिश भी कि बाल-विवाह कानूनन जुर्म हैं। शादी तो किसी प्रकार से रुक गई मगर इन्होनें मेरे साथ में हाथापाई की। इसलिए मुझे यह केस दर्ज करना पड़ा। अब वकील बिरजू के पास गया और कहने लगा ---
वकील: हां तो बिरजू जी क्या ये मुखिया जी जो बात कह रहे हैं वो सभी सत्य हैं।
बिरजू: हां जी, ये जो बात कह हैं वो एक दम सही हैं। मगर इन्होनें जो शादी रुकवाई हैं तो बस उसी सिलसिले में हमारा झगड़ा हो गया। उसके लिए मैंने बाद में इनसे माफी मांग ली थी।
वकील: मगर आपको ये तो पता हैं कि हमारे समाज में लड़की 18 साल की होने पर शादी के लायक होती हैं अभी आप 12 साल की होने पर ही जुर्म हैं। इसके लिए आपको जेल भी हो सकती हैं।
बिरजू: मुझे माफ करना वकील साहब, पर मेरी भी मजबूरी थी शादी करने की।
वकील: क्या मजबूरी थी ? आप बतायेंगे अदालत को सुनना चाहती हैं।
बिरजू: जी मैं एक गरीब मजदूर आदमी हूँ। बड़ी मुश्किल से दिनभर मेहनत करके दो वक्त की रोटी का प्रबंध अपने परिवार के लिए कर पाता हूँ। अच्छा घर-वर पाना आज के समय में बड़ा ही मुश्किल हैं। बड़ी मुश्किल से एक वर मिला था घर भी अच्छा खासा था और ना ही उनकी दहेज की इच्छा थी। बस उन्हें लड़की चाहिए थी। वो हमारी लड़की से शादी कर भी लेते मगर मुखिया की वजह से सारा काम बिगड़ गया।
वकील: अभी आपने कहा कि - अच्छे घर-वर वालों को दहेज चाहिए। तो इस वर में ऐसी क्या कमी थी जो इन्होनें दहेज नहीं मांगा और केवल लड़की को इन्होनें सब कुछ माना।
बिरजू: वो वकील साहब, लड़के वाले सही आदमी थे उनका व्यवहार सही था। शादी से पहले ही उन्होंने कोई भी बात हमसे नहीं छिपाई सारी बातें सच-2 हमें बता दी। बस इसी कारण से मैंने ये रिश्ता तय कर दिया।
वकील: क्या आप उन बातों को हमारे सामने बयान करेंगे। क्या बातें थी वो ?
बिरजू: अब आप पूछ ही रहे हैं तो मुझे बताने में क्या हर्ज हैं। लड़के वालो ने बताया कि उनका लड़का पहले भी शादीशुदा हैं मगर उसी दिन से वह शराब भी पीने लगा जुआ खेलने लगा और अय्यासी करने लगा। पर आपकी लड़की से शादी करने के बाद हम आपको यकीन दिलाते हैं कि ये सब छोड़ देगा। लड़के की उम्र लड़की से थोड़ी ज्यादा हैं, करीब चालीस के आस-पास। बस जज साहब उनके इसी सच्चाई वाले व्यवहार ने मेरा दिल जीत लिया और मैं ये रिश्ता जोड़ने को तैयार हो गया।
वकील: ये क्या बात हुई। आज उसके पास रुपया पैसा हैं जवान हैं मगर यूंही जुआ खेलता रहा तो वह उस धन को जुए में उड़ा देगा और शराब से उसका शरीर खराब हो जायेगा। अब बताओ उसके पास क्या बचा।
बिरजू: बस-2 वकील साहब, मैं आपकी बात समझ गया।
वकील: मैं जज साहब से गुजारिस करुंगा कि वह अपना फैसला सुनाए।
जज: जैसा कि मैंने दोनों पक्षों की दलीले सुनी दोनों तरफ की दलीले ठोस मुद्दे पर ठोस पाई गई हैं, इस मामले में देखा जाए तो बिरजू को बाल-विवाह के जुर्म में कई धाराएं लग सकती हैं। यदि ऐसा किया तो इन्हें सुधरने का मौका नहीं मिलेगा। इसलिए इन्हें भी सुधरने का एक मौका दिया जाए ताकि समाज में बुराई को मिटाने का एक नया संदेश लोगों को मिले और बुराई का अंत हो। एक बात और बिरजू जिस प्रकार एक कुम्हार घड़े को बनाता हैं सुखाता हैं फिर पकाता हैं। पकाने के बाद उसमें पानी डाला जाता हैं। वह पानी शांति, शुकुन और प्यास बुझाता हैं, यदि कच्चे मटके में ही पानी डाला जाए तो वह मिट्ठी गलकर घड़ा फूट जाता हैं। उसी प्रकार से लड़कियां भी हैं यदि उन्हें बाली उम्र में ही ब्याह दिया जाए तो बचपन में ही मां बनने से उनकी सारी इच्छाएं मर जाती हैं। बचपन में मां बनने से उनके सामने अनेक कठिनाईयां आती हैं कई बार तो मां बनते वक्त परिपक्व ना होने के कारण बच्चियों की मौत भी हो जाती हैं। अठारह साल की होने पर ये मां बनने के लायक हो जाती हैं। इसीलिए लड़की की शादी अठारह वर्ष की होने के बाद और लड़के की शादी इक्कीस वर्ष की होने पर करनी चाहिए।
बिरजू: हाथ जोड़ते हुए, समझ गया मालिक अबकी बार आप मुझे माफ करें अब मैं अपनी बेटी को अठारह वर्ष के बाद ही शादी करुँगा। आज मेरी आंखे खुल गई।
जज: जाईये आपको माफ किया। अपनी बेटी को अब खूब पढ़ाओ और अठारह वर्ष की होने पर शादी करना। अगला केस क्या हैं उसे भी अदालत के सामने लाया जाये।
रीडर: ये कोई केस नहीं हैं जज साहब, मगर कुछ लोगों ने मिलकर ये जानना चाहा हैं कि लव जिहाद आखिर हैं क्या। और ये मुसलमान जबरदस्ती हिन्दुओं को कैसे इस्लाम कबूल करवाते हैं। उदाहरण के तौर पर रमेश को बताया गया हैं कि भारत में आने वाले लड़के किस प्रकार से लड़कियों से शादी करते हैं और उन्हें धर्म परिवर्तित करने के लिए विवश करते हैं।
जज: लव-जिहाद का मतलब जैसा अक्षरों से ही पता चला हैं कि प्यार करके इस्लाम कबूल करवाना। जवान मुस्लिम लड़कों द्वारा अन्य धर्म की लड़कियों को प्यार के जाल में फंसाकर उनका धर्म-परिवर्तन करना पूरे देश में लव जिहाद या रोमियो जिहाद के रूप में देखा जा रहा है। हालात ये हैं कि प्रेम संबंधों को एक बड़े अंतरराष्ट्रीय षडयंत्र का नतीजा माना जा रहा है और उन्हें आपराधिक कृत्य की श्रेणी में डाल दिया गया है। संकीर्ण मानसिकता वालों को अंतर-धार्मिक प्रेम विवाह ‘लव जिहाद’ या ‘प्रेम युद्ध’दिखाई देता है। कुछ संगठनों की ओर से तो अंतर धार्मिक शादियाँ करने वाली लड़कियों की ‘घर वापसी’के प्रयास शुरू करने की बातें भी कही जा रही हैं। उनका कहना है कि प्रेम के चक्कर में फंसकर अपना धर्म परिवर्तन कर शादी करने वाली लड़कियों को वापस अपने धर्म में लाना जरूरी है। लव जिहाद चारों तरफ चर्चा का विषय बना हुआ है।
मुसलमानों द्वारा भारत के इस्लामीकरण की सुनियोजित साजिश रच दी गई है। लेकिन, क्या आम आदमी को यह भी बताया जाएगा कि अकबर के शासनकाल से लेकर औरंगजेब के जमाने तक और फिर पिछले दो सौ सालों में कितनी हिन्दू लड़कियां इस लव जिहाद का शिकार हुई हैं! और अगर आप ऐसा कोई आंकड़ा ढूंढ भी निकाल लेते हैं तो यह भी बताने का कष्ट करें कि इस दौरान कितने हिन्दू लड़कों ने मुस्लिम लड़कियों से शादी रचाई हैं। और लगे हांथों यह भी पता लग सके कि ऐसी दोनों ही शादियों के बाद उन माता-पिता के बच्चे आज मंदिर जाते हैं या मस्जिद!
यह भी स्वागतयोग्य होगा जिनकी अंतरधार्मिक या अंतरजातीय शादियाँ हुईं, इस पक्ष पर सार्वजनिक रूप से अपनी बात रखेंगे। वैसे तमाम परिवारों की ओर से भी विचार आमंत्रित हैं जिनमें हिंदू हैं, मुसलमान भी, सिख हैं और पारसी भी, बिहारी हैं और कन्नडिगा भी, तमिल हैं और मराठी भी। क्या आज वे सब सामने आएंगे और समाज से कुछ बात करेंगे? यह लव जिहाद का भूत किसी बड़े तूफान को लाने की सुनियोजित साजिश है!
इस्लाम में जिहाद की गुंजाईश है मगर कब, कहाँ और कैसे! जब किसी मुसलमान को या किसी व्यक्ति को इस्लाम के नियमों को मानने से जबरदस्ती रोका जाए तो जिहाद वाजिब हो जाता है। जिहाद का शाब्दिक अर्थ कोशिश है। व्यापक रूप में जिहाद स्वयं बुराइयों से रुक जाने, खुद को रोक लेने, अत्याचारियों, आतताइयों के अत्याचार को रोक देने का बोध करता है। यदि कोई व्यक्ति, कोई संगठन अपना नाम मुसलमान रखकर इस्लाम की आड़ में अनैतिक कार्यों को करता है जिससे उसके देश या दुनिया को नुकसान पहुंचता है तो उसकी इजाजत इस्लाम नहीं देता। जिहाद के नाम पर बूढ़े, बच्चे, महिलाओं और आम आदमी का खून भी सरासर इस्लाम के नियमों के विरुद्ध है।
ऐसी परिस्थिति में यदि कोई भी इस तरह की जलील हरकतों को इस्लाम के साथ जोड़ता है तो यह उसकी नासमझी ही कही जाएगी। लव जिहाद पर कलम उठाने, बोलने या प्रदर्शन करने अथवा इसे इस्लाम के साथ जोड़ने के पूर्व यह जानना चाहिए कि इस्लाम में पराई स्त्रियों एवं पुरुषों के सम्बन्ध में क्या कायदा कानून है। इस्लाम में किसी भी सूरत में किसी गैर मुस्लिम से निकाह का हुक्म नहीं है और किसी को जबरन मुसलमान बनाने पर तो सख्ती से रोक है। यदि कोई हिन्दू दूसरी शादी करने के लिए इस्लाम कबूल करता है अथवा कोई मुसलमान किसी गैर मुस्लिम महिला से शादी करने के लिए हिन्दू हो जाता है तो इन दोनों ही सूरत में वह मुसलमान नहीं है। उनकी इश्क, मोहब्बत या शादी का इस्लाम से कुछ लेना देना नहीं है।
इस तरह की शादियों पर लव जिहाद कह कर इस्लाम से जोड़ने और मुसलमानों के विरुद्ध नफरत का ज्वालामुखी भड़काने को नासमझी ही कहेंगे। यदि देश को खुशहाली के रास्ते शिखर तक पहुँचाना है तो व्यक्तिगत, जातिगत स्वार्थ से ऊपर उठकर हालात को नियंत्रण में लाने का प्रयास करना होगा।
इस पूरे प्रकरण में न लव है न जिहाद। अगर कोई मोहब्बत करके धोखा देता है तो इस बात का जिहाद से कोई सम्बन्ध नहीं है। इस देश के बड़े हिन्दू या मुसलमान जब अंतरधार्मिक शादियाँ करते हैं तो फक्र से बैठते हैं लेकिन यही काम जब आम लोग करते हैं तो मुल्क के गरीब मुसलमानों पर इसका गाज गिरा देते हैं। इन शादियों का इस्लाम से कोई मतलब नहीं है। विधायिका और न्यायपालिका को इस दिशा में ठोस कार्रवाई करनी चाहिए ताकि मुल्क की अखंडता पर कोई आंच न आये, और ऐसे मौके पर मुसलमानों को सब्र और शुक्र से काम लेना चाहिए।
इस प्रकार से जज ने वहां बैठे सभी लोगों को लव जिहाद का मतलब समझाया। और कहा कि जो रमेश की लड़की ने एक मुसलमान के साथ भाग कर शादी की है वह उसने बिल्कुल भी गलत नहीं किया है बल्कि उसने तो अच्छा ही किया है। वह दो धर्मों को आपस में एक करना चाहती है। मैं सरकार से दरख्वास्त करूंगा कि वह उन दोनों को आशीर्वाद के तौर पर कुछ रकम भी उपहार संहित भेंट देने का कष्ट करें ताकि उन दोनों का कुछ समय के लिए गुजारा हो सके। तब तक उनमें उस युवक को भी नौकरी का प्रावधान हमारी सरकार करेगी।
यह कहकर जज साहब चुप हो गये। वहां बैठे जितने भी आदमी और औरत बैठे थे। सभी ने तालियां बजाई। पूरा कोर्ट तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। आज तक जो फैसले नहीं हुए थे और जिन्हें कोर्ट ने रिश्वत ले-ले कर लंबा चलाया था। उनका फैसला जज साहब ने तुरंत सुना दिया और सभी को उनका फैसला मान्य भी था।
निष्कर्ष: एक प्रेरणादायक रचना:
"सात पेंडिंग केस" एक ऐसी रचना है, जो समाज की समस्याओं को न केवल उजागर करती है, बल्कि उनके समाधान भी सुझाती है। डॉ० नवलपाल प्रभाकर दिनकर ने इस रचना के माध्यम से यह साबित किया है कि साहित्य समाज का दर्पण होने के साथ-साथ उसका मार्गदर्शक भी हो सकता है। यह रचना हमें यह सिखाती है कि हर व्यक्ति को सुधार का मौका देना चाहिए और हमें सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए।