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Monday, October 13, 2025

24JT News Desk / News Delhi /September 17, 2025

भारत का विमानन क्षेत्र आत्मनिर्भरता की दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहा है। संजय सक्सेना, वरिष्ठ विश्लेषक और विचारक, के अनुसार, खासकर लड़ाकू विमानों के इंजन निर्माण में भारत दशकों से प्रयासरत है। 1986 में शुरू हुआ कावेरी इंजन प्रोजेक्ट इस दिशा में एक बड़ा कदम था, लेकिन तेजस जैसे स्वदेशी विमानों की सफलता और वैश्विक बाजार में उनकी संभावनाओं के लिए इंजन की चुनौती अभी भी बरकरार है।

देश / भारत की जेट इंजन विकास यात्रा: तेजस का इंजन संकट और वैश्विक बाजार की चुनौतियाँ - संजय सक्सेना, वरिष्ठ विश्लेषक और विचारक

कावेरी इंजन: भारत का स्वदेशी सपना:


संजय सक्सेना बताते हैं कि 1986 में रक्षा मंत्रालय और गैस टर्बाइन रिसर्च एस्टेब्लिशमेंट (GTRE) ने तेजस के लिए स्वदेशी कावेरी इंजन विकसित करने की जिम्मेदारी ली। यह प्रोजेक्ट भारत को आत्मनिर्भर बनाने का एक महत्वपूर्ण प्रयास था। लेकिन इंजन के थ्रस्ट और प्रदर्शन में तकनीकी समस्याओं के कारण यह तेजस के लिए उपयुक्त नहीं हो सका। 2000 करोड़ रुपये से अधिक खर्च के बावजूद, कावेरी इंजन अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच पाया।

तेजस का इंजन: वर्तमान स्थिति और चुनौतियाँ:


संजय सक्सेना के विश्लेषण के अनुसार, वर्तमान में तेजस रोल्स-रॉयस के Adour 804 इंजन का उपयोग करता है। यह इंजन तेजस की उड़ान क्षमता को पूरा करता है, लेकिन यह विदेशी है। इस पर निर्भरता भारत के लिए चिंता का विषय है, क्योंकि वैश्विक सुरक्षा या आपूर्ति श्रृंखला में किसी भी रुकावट से दिक्कत हो सकती है। इंजन विकास की प्रमुख चुनौतियों में तकनीकी समस्याएँ, सीमित बजट और संसाधनों की कमी शामिल हैं।

DRDO और GTRE की भूमिका:


संजय सक्सेना के अनुसार, रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) और GTRE ने कावेरी इंजन के प्रोटोटाइप पर काफी काम किया। भले ही यह तेजस के लिए पूरी तरह तैयार न हो सका, लेकिन इसने भारतीय एयरोस्पेस क्षेत्र में तकनीकी अनुभव और डेटा जुटाने में मदद की। GTRE की रिपोर्ट्स के मुताबिक, कावेरी इंजन का हल्का संस्करण ड्रोन और मानवरहित हवाई वाहनों (UAVs) के लिए उपयोगी हो सकता है, लेकिन यह अभी भी लड़ाकू विमानों के लिए पर्याप्त शक्तिशाली नहीं है।

वैश्विक बाजार में तेजस: इंजन की चुनौती:


संजय सक्सेना बताते हैं कि भारत ने तेजस को मलेशिया, श्रीलंका जैसे देशों को निर्यात करने की कोशिश की है और इसे अंतरराष्ट्रीय एयर शो में प्रदर्शित किया है। कई देशों ने तेजस में रुचि दिखाई, लेकिन विदेशी इंजन पर निर्भरता के कारण उनकी हिचकिचाहट बनी रहती है। विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक भारत स्वदेशी इंजन विकसित नहीं करता, तेजस की वैश्विक बिक्री में मुश्किलें रहेंगी। विदेशी इंजन पर निर्भरता से न केवल निर्यात प्रभावित होता है, बल्कि भारतीय वायुसेना के लिए भी रणनीतिक जोखिम बढ़ता है।

कावेरी 2.0: भविष्य की उम्मीद:


संजय सक्सेना के अनुसार, भारत अब कावेरी 2.0 इंजन पर काम कर रहा है, जो तेजस और अन्य स्वदेशी विमानों के लिए अधिक शक्तिशाली थ्रस्ट प्रदान करने का लक्ष्य रखता है। इसका उद्देश्य न केवल रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करना है, बल्कि वैश्विक विमानन बाजार में भारत को एक मजबूत खिलाड़ी बनाना भी है।

नागरिक विमानन में भारत की संभावनाएँ:


संजय सक्सेना का कहना है कि भारत अब न केवल सैन्य, बल्कि नागरिक विमानन के लिए भी इंजन निर्माण की दिशा में कदम उठा रहा है। यह क्षेत्र अभी शुरुआती चरण में है और इसके लिए लंबे समय तक अनुसंधान और विकास की जरूरत है। अगर भारत इस क्षेत्र में सफल होता है, तो वह वैश्विक स्तर पर विमान इंजन का प्रमुख आपूर्तिकर्ता बन सकता है।

संजय सक्सेना, वरिष्ठ विश्लेषक और विचारक - भारत की इंजन विकास यात्रा में कई चुनौतियाँ रही हैं, लेकिन कावेरी 2.0 और अन्य प्रयासों के साथ भविष्य आशाजनक दिखता है। अगर भारत स्वदेशी इंजन विकसित कर लेता है, तो यह न केवल सैन्य शक्ति को बढ़ाएगा, बल्कि वैश्विक विमानन उद्योग में भी भारत की स्थिति को मजबूत करेगा। प्रश्न यह है: क्या भारत इस बार इंजन विकास में सफल होगा? और क्या तेजस वैश्विक बाजार में अपनी जगह बना पाएगा? इसका जवाब आने वाले वर्षों में मिलेगा, जब भारत अपनी आत्मनिर्भरता की दिशा में और मजबूत कदम उठाएगा।

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