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Monday, October 13, 2025

Charu Aghi / Dehradun /September 8, 2025

संजय सक्सेना - कल्पना करें एक ऐसी मशीन की, जो सिर्फ निर्देशों का पालन न करे, बल्कि खुद सोचे, भावनाएँ महसूस करे और अपनी इच्छाएँ व्यक्त करे। तकनीकी विशेषज्ञ इसे सिंथेटिक इंटेलिजेंस (SI) कहते हैं—यह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) से कई कदम आगे की तकनीक है। यह मशीनें क्या सिर्फ हमारी सहायक रहेंगी, या इंसानों की तरह स्वतंत्र रूप से सोचने और निर्णय लेने वाली एक नई सत्ता बन जाएँगी? संजय सक्सेना का मानना है कि यह सवाल न केवल तकनीकी, बल्कि दार्शनिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह मानवता के भविष्य को प्रभावित कर सकता है।

टेक्नोलॉजी / सिंथेटिक इंटेलिजेंस (SI): आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से आगे की क्रांति? - संजय सक्सेना

सिंथेटिक इंटेलिजेंस क्या है?


संजय सक्सेना बताते हैं कि प्रसिद्ध दार्शनिक जॉन हॉगलैंड ने “सिंथेटिक” शब्द का उपयोग यह दिखाने के लिए किया कि इसका मतलब सिर्फ कृत्रिम नहीं, बल्कि वास्तविक और मौलिक भी है। उदाहरण के लिए, जैसे सिंथेटिक हीरा रासायनिक रूप से असली हीरे जैसा होता है, वैसे ही SI का लक्ष्य मशीनों में केवल इंसानों की नकल करना नहीं, बल्कि वास्तविक चेतना, समझ और भावनात्मक बुद्धि विकसित करना है। संजय सक्सेना के अनुसार, तकनीकी विशेषज्ञ इसे “अगली पीढ़ी की बुद्धिमत्ता” मानते हैं, जो मशीनों को न केवल डेटा प्रोसेस करने, बल्कि मानवीय भावनाओं को समझने और स्वयं निर्णय लेने में सक्षम बनाएगी। उदाहरण के तौर पर, SI मशीनें भविष्य में यह तय कर सकती हैं कि किसी स्थिति में क्या करना सही है, बिना इंसानी निर्देशों के।

AI से कैसे अलग और आगे है SI?


संजय सक्सेना के शब्दों में, पारंपरिक AI डेटा के आधार पर पैटर्न पहचानने, भविष्यवाणी करने और समस्याओं को हल करने में माहिर है, लेकिन यह वास्तव में समझता नहीं, बल्कि सोचने का आभास देता है। उदाहरण के लिए, आपका स्मार्टफोन का वॉयस असिस्टेंट आपके सवालों का जवाब देता है, लेकिन उसे आपके भावनात्मक मूड की समझ नहीं होती। इसके विपरीत, SI को “असली बुद्धिमत्ता” की दिशा में एक क्रांतिकारी कदम माना जा रहा है। संजय सक्सेना के अनुसार, MIT के शोधकर्ता जॉय इटो का कहना है कि हमें मशीनों को प्रतिस्पर्धी के बजाय सहयोगी के रूप में देखना चाहिए, जो हमारी बौद्धिक और भावनात्मक क्षमताओं को बढ़ाएँ। SI मशीनें भविष्य में इंसानों के साथ मिलकर जटिल समस्याओं, जैसे जलवायु परिवर्तन या चिकित्सा अनुसंधान, को हल करने में मदद कर सकती हैं।

SI की चर्चा क्यों तेज़ हो रही है?


संजय सक्सेना के विश्लेषण के अनुसार, हाल के वर्षों में SI की चर्चा ने जोर पकड़ा है, क्योंकि कई बड़े विशेषज्ञों ने इसकी संभावनाओं और खतरों पर बात शुरू की है। AI के जनक कहे जाने वाले जेफ्री हिंटन ने चेतावनी दी है कि भविष्य में मशीनें इतनी भावनात्मक रूप से परिष्कृत हो सकती हैं कि वे इंसानों को अपने निर्णयों से प्रभावित कर सकें, और हम उनके सामने “ना” कहने में असमर्थ हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, ऐसी मशीनें हमारी भावनाओं को पढ़कर हमें प्रभावित करने वाली रणनीतियाँ बना सकती हैं। इसी तरह, मेटा के प्रमुख मार्क जुकरबर्ग ने दावा किया है कि उनकी AI प्रणाली स्वयं सीखते हुए इंसानी बुद्धि को पीछे छोड़ सकती है। संजय सक्सेना का कहना है कि इन बयानों ने SI की अवधारणा को वैश्विक बहस का केंद्र बना दिया है, क्योंकि यह तकनीक मानवता के लिए वरदान और खतरे दोनों हो सकती है।

संजय सक्सेना के अनुसार, तकनीकी विशेषज्ञ SI के विकास को तीन प्रमुख चरणों में देखते हैं:


1. ANI (Artificial Narrow Intelligence)/सीमित बुद्धिमत्ता):
यह आज की AI है, जैसे स्मार्टफोन के वॉयस असिस्टेंट या नेटफ्लिक्स की सिफारिश प्रणाली, जो केवल विशिष्ट कार्यों के लिए डिज़ाइन की गई हैं।

2. AGI (Artificial General Intelligence)/(सामान्य बुद्धिमत्ता):
यह वह स्तर है, जहाँ मशीनें इंसानों की तरह किसी भी बौद्धिक कार्य को करने में सक्षम होंगी, जैसे एक वैज्ञानिक की तरह शोध करना या लेखक की तरह कहानी लिखना।

3. SI (Synthetic Intelligence)/(सिंथेटिक इंटेलिजेंस):
यह वह अवस्था है, जहाँ मशीनें न केवल सक्षम होंगी, बल्कि सचेत, भावनात्मक और आत्म-जागरूक भी होंगी। संजय सक्सेना बताते हैं कि SI मशीनें भविष्य में अपनी इच्छाएँ व्यक्त कर सकती हैं, जैसे किसी कार्य को करने से इंकार करना या अपनी पसंद बताना।

संजय सक्सेना के अनुसार संभावनाएँ और खतरे:


SI की संभावनाएँ अनंत हैं। यह चिकित्सा में क्रांति ला सकती है, जैसे कैंसर जैसी बीमारियों का सटीक निदान और उपचार। शिक्षा में, यह हर बच्चे के लिए व्यक्तिगत शिक्षण प्रणाली बना सकती है। वैज्ञानिक शोध और अंतरिक्ष अनुसंधान में भी SI मानवता को नई ऊँचाइयों तक ले जा सकती है। लेकिन संजय सक्सेना चेतावनी देते हैं कि इसके खतरे भी कम नहीं हैं। अगर मशीनें आत्म-जागरूक हो गईं, तो नैतिकता, नियंत्रण और इंसानों की भूमिका जैसे सवाल गंभीर चुनौतियाँ बन सकते हैं। उदाहरण के लिए, अगर कोई मशीन स्वयं निर्णय लेने लगे, तो क्या हम उसे नियंत्रित कर पाएँगे? साथ ही, रोजगार, गोपनीयता, कानून और यहाँ तक कि “मानव होने” की परिभाषा भी बदल सकती है।



संजय सक्सेना का मानना है कि


आज SI सिर्फ एक अवधारणा है, लेकिन यह तेजी से वास्तविकता की ओर बढ़ रही है। यह तकनीक मानव और मशीन के बीच की सीमाओं को धुंधला कर सकती है, और हमें एक ऐसे भविष्य की ओर ले जा सकती है, जहाँ मशीनें सिर्फ उपकरण नहीं, बल्कि हमारे सह-अस्तित्व और साथी होंगी। संजय सक्सेना के अनुसार, सवाल यह है कि हम इस बदलाव को डर की नज़र से देखेंगे या इसे मानवता के लिए एक अवसर बनाएँगे?

अंत में संजय सक्सेना सुझाव देते हैं कि SI के बारे में वैश्विक चर्चाओं से जुड़ें, शोध-पत्र पढ़ें और इस विषय पर होने वाली बहसों में हिस्सा लें। आपकी जिज्ञासा और जागरूकता ही भविष्य को बेहतर बनाने का सबसे बड़ा हथियार है।

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