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Monday, October 13, 2025

24JT News Desk / News Delhi /September 23, 2025

डॉ. नवलपाल प्रभाकर दिनकर की कविता 'पृथ्वी' प्रकृति के प्रति गहरे प्रेम और कृतज्ञता को व्यक्त करती है। यह कविता पृथ्वी को एक माँ के रूप में चित्रित करती है, जो अपनी संतानों को सूरज की तपती किरणों से बचाती है और उन्हें प्रेम, शीतलता और सौंदर्य प्रदान करती है। सरल और भावपूर्ण शब्दों में लिखी गई यह कविता पाठकों को प्रकृति के महत्व को समझाने के साथ-साथ इसके संरक्षण का संदेश भी देती है।

कला-साहित्य / डॉ. नवलपाल प्रभाकर दिनकर की कविता 'पृथ्वी': प्रकृति के प्रति प्रेम और कृतज्ञता की भावना

डॉ. नवलपाल प्रभाकर दिनकर की कविता | पृथ्वी



सूरज की आहत किरणों से
दी है तुमने राहत मुझे
छम-छम गिराकर मधु धार से
तृप्त तुमने किया है मुझे ।
आँखें मुंदे पागल होकर
करने लगी मैं तांडव नृत्य
बयार चले सुवाषित होकर
पंछी गुंजन लगे हैं करने
फि र भला कैसे रह पाती
सखियां सजाने लगी हैं मुझे।
छम-छम गिराकर मधु धार से
तृप्त तुमने किया है मुझे ।
हर समय तपती किरणों से
आँचल बन बचाया मुझे
खुद पर झेली आग ये सारी
शीतलता दी तुमने मुझे
ओ प्यारो ओ सुन्दर मुघों
हर सुख तुमने दिया है मुझे।

छम-छम गिराकर मधु धार से
तृप्त तुमने किया है मुझे ।
अनायास मेरे मुख से
फु ट पड़ी ठंडी सिसकारी
हाथ उठे ऊपर मेरे
खिलने लगी है फु लवारी ,
छुकर अपने तन से जैसे
दिया है एक नया रूप मुझे
छम-छम गिराकर मधु धार से
तृप्त तुमने किया है मुझे ।

कविता का सार:


इस कविता में पृथ्वी को एक जीवंत और दयालु माँ के रूप में दर्शाया गया है, जो सूरज की गर्मी से बचाती है, बारिश की मधुर धार से जीवन को तृप्त करती है, और हवा, पक्षियों के गीतों और फूलों से प्रकृति को सजाती है। कविता में प्रकृति के प्रति कृतज्ञता और उसके सौंदर्य को संजोने का संदेश छिपा है।

डॉ. दिनकर की यह कविता प्रकृति के प्रति प्रेम और सम्मान को दर्शाती है। यह हमें याद दिलाती है कि पृथ्वी हमारी माँ की तरह है, जिसे संरक्षित करना हमारा कर्तव्य है। यह कविता न केवल साहित्य प्रेमियों बल्कि हर उस व्यक्ति को प्रेरित करती है, जो प्रकृति के साथ अपने रिश्ते को गहरा करना चाहता है।

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