राष्ट्रपति ने विश्वविद्यालय की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह संस्थान न केवल उच्च शिक्षा के मानकों को बनाए हुए है, बल्कि एक ऐसा शैक्षणिक माहौल भी तैयार कर रहा है जो बौद्धिक जिज्ञासा और आलोचनात्मक चिंतन को प्रोत्साहित करता है। उन्होंने विश्वविद्यालय की विस्तार शिक्षा योजनाओं की भी सराहना की, जो समाज के बड़े वर्ग तक शिक्षा को पहुंचाने का प्रयास कर रही हैं।
हाशिए पर खड़े वर्गों के लिए विशेष योगदान
राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि विश्वविद्यालय, सामुदायिक महाविद्यालयों और डॉ. अंबेडकर उत्कृष्टता केंद्र जैसी पहलों के ज़रिए समाज के वंचित और हाशिए पर खड़े वर्गों के समग्र विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। उन्होंने कहा कि “व्यक्तिगत विकास तभी सार्थक होता है जब वह सामाजिक विकास से जुड़ा हो। शिक्षा का उद्देश्य समाज की सेवा होना चाहिए।”
गांधीजी का दिया उदाहरण
छात्रों को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने आजीवन सीखने के महत्व को रेखांकित किया और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का उदाहरण देते हुए कहा, “गांधीजी जीवनभर विद्यार्थी बने रहे। उन्होंने तमिल और बांग्ला जैसी भाषाएं सीखी, धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन किया और साथ ही चप्पल बनाना और चरखा चलाना जैसे व्यावहारिक कौशल भी सीखे। वे अंतिम समय तक सजग और सक्रिय बने रहे।”
उन्होंने छात्रों को ‘जिज्ञासा’ और ‘आश्चर्य’ की भावना को बनाए रखने की सलाह दी, ताकि वे निरंतर सीखते रहें और समय के साथ प्रासंगिक बने रहें।
तकनीक और नैतिकता दोनों जरूरी
राष्ट्रपति ने आगे कहा कि बीते कुछ वर्षों में इंटरनेट क्रांति ने पूरी दुनिया को बदल कर रख दिया है। उन्होंने कहा कि "आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और औद्योगिक क्रांति 4.0 भविष्य की कार्य संस्कृति को और बदल देंगे। ऐसे समय में वही लोग सफल होंगे जो लगातार नए कौशल सीखते रहेंगे और समय के साथ खुद को ढाल पाएंगे।"
इसके साथ ही उन्होंने विश्वविद्यालय के मिशन— "मजबूत चरित्र निर्माण और मूल्य-आधारित पारदर्शी कार्य नैतिकता" की सराहना की। उन्होंने विश्वास जताया कि विश्वविद्यालय के छात्र इस नैतिकता को अपने जीवन में अपनाएंगे और एक संवेदनशील नागरिक बनकर समाज में सकारात्मक भूमिका निभाएंगे।