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Monday, October 13, 2025

24JT News Desk / Udaipur /September 6, 2025

पितृपक्ष हिंदू धर्म में एक विशेष अवधि है, जिसमें हम अपने दिवंगत पूर्वजों को याद करते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए पूजा, तर्पण, पिंडदान और दान करते हैं। यह 16 दिनों तक चलने वाला पवित्र समय है, जिसमें पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने की कामना की जाती है। आइए जानते हैं कि वर्ष 2025 में पितृपक्ष कब होगा, इसका महत्व क्या है, और इस दौरान क्या करें और क्या न करें।

धर्म / पितृपक्ष 2025: महत्व, नियम और तर्पण की सही विधि - साध्वी शालिनीनंद महाराज

पितृपक्ष 2025: तारीख और समय


हिंदू पंचांग के अनुसार, पितृपक्ष भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरू होता है और आश्विन मास की अमावस्या पर समाप्त होता है। इस वर्ष 2025 में पितृपक्ष की तारीखें जल्द ही पंचांग के आधार पर घोषित की जाएंगी।

पितृपक्ष का महत्व


पितृपक्ष पूरी तरह से हमारे पूर्वजों को समर्पित है। मान्यता है कि इस दौरान तर्पण, पिंडदान और दान करने से पितरों की आत्मा को शांति मिलती है और वे हमें आशीर्वाद देते हैं। विशेष रूप से कौवों को भोजन कराने की परंपरा है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि पितृ कौवों के रूप में भोजन ग्रहण करते हैं। इसलिए, कौवों का सम्मान करना और उन्हें ताजा भोजन देना चाहिए।

पितृपक्ष के नियम


- शुभ कार्यों से बचें: इस अवधि में शादी, गृह प्रवेश, मुंडन जैसे मांगलिक कार्य नहीं किए जाते, क्योंकि इससे पितरों की आत्मा को कष्ट हो सकता है।
- बड़ी खरीदारी न करें: नई वस्तुएँ जैसे घर, गाड़ी आदि खरीदने से बचें।
- पितृदोष निवारण: जिन लोगों की कुंडली में पितृदोष हो, उनके लिए यह समय विशेष उपाय करने का अवसर है। आप ज्योतिषी से संपर्क करके पितृदोष की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
- दान-पुण्य: पितरों के नाम पर यथाशक्ति दान करें, जैसे कपड़े, भोजन या अन्य प्रिय वस्तुएँ।
- ब्राह्मण भोज: कुछ लोग पितरों की तिथि पर ब्राह्मणों को भोजन कराते हैं और दान देते हैं।
- पवित्र स्थानों पर पिंडदान: कई लोग गया या काशी जाकर पितरों का पिंडदान करते हैं।

तर्पण की सही विधि


- रोजाना तर्पण: कुछ लोग 16 दिनों तक रोज तर्पण करते हैं, जबकि कुछ लोग पितरों की पुण्यतिथि पर विशेष पूजा करते हैं।
- ब्राह्मण भोज: श्राद्ध के दिन ब्राह्मणों को घर बुलाकर भोजन कराएँ, दान दें और उनका आशीर्वाद लें।
- ब्रह्मचर्य और शुद्धता: इस दिन प्याज, लहसुन और तामसिक भोजन से बचें। ब्रह्मचर्य का पालन करें।
- अंगूठे से जल क्यों?: महाभारत और अग्नि पुराण के अनुसार, अंगूठे से जल चढ़ाने से पितरों को शांति मिलती है। हथेली का अंगूठे वाला हिस्सा ‘पितृ तीर्थ’ कहलाता है।
- कुशा की अंगूठी: श्राद्ध के दौरान अनामिका उंगली में कुशा घास की अंगूठी पहनें। मान्यता है कि कुशा में ब्रह्मा, विष्णु और शिव का वास होता है, जिससे पूजा पवित्र होती है।

पितृदोष: लक्षण, कारण और निवारण


लक्षण:
- जीवन में बार-बार दुख, धन की कमी या तरक्की में रुकावट।
- पारिवारिक कलह, विवाह में देरी या वैवाहिक जीवन में समस्याएँ।
- माता के पक्ष से रिश्तों में तनाव।
- अदृश्य शक्तियों से परेशानी।

कारण:


- पूर्वजों का अनादर या उनके प्रति गलत कार्य।
- मंदिर की तोड़फोड़, पीपल का पेड़ काटना या पिछले जन्म के पाप।
- गाय, कुत्ते या अन्य निर्दोष प्राणियों को सताना।
- पाप कर्मों में लिप्त होना।

निवारण के उपाय:


- पितृपक्ष में नियमित रूप से श्राद्ध और तर्पण करें।
- सुबह-शाम कपूर जलाएँ और हनुमान चालीसा का पाठ करें।
- घर के ईशान कोण को स्वच्छ और मजबूत रखें।
- कौवों, गायों और कुत्तों को भोजन दें।
- पीपल और बरगद के पेड़ में जल चढ़ाएँ।
- तामसिक भोजन और क्रोध से बचें, सभी का सम्मान करें।
- केसर का तिलक लगाएँ।

महत्वपूर्ण जानकारी: कुतुप काल


श्राद्ध के लिए सबसे शुभ समय ‘कुतुप काल’ है, जो दोपहर 11:36 से 12:24 बजे तक होता है। इस समय धूप, तर्पण और ब्राह्मण भोज करें।

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