सालबेग कौन थे?
सालबेग (Salabeg) 17वीं शताब्दी के एक प्रसिद्ध भक्त थे, जिनकी माता हिंदू और पिता मुस्लिम थे। उनका जन्म ढाका (वर्तमान बांग्लादेश) में हुआ था, और उनके पिता लालबेग एक मुगल सैन्य कमांडर थे। किंवदंती के अनुसार, सालबेग ने युवावस्था में मुगल सेना में सेवा की, लेकिन एक युद्ध में उनके माथे पर गंभीर चोट लगी, जो किसी भी वैद्य या हकीम से ठीक नहीं हुई। निराश और असहाय अवस्था में, उनकी माता ने उन्हें भगवान जगन्नाथ की भक्ति करने की सलाह दी।
सालबेग ने अपनी माता की सलाह मानी और भगवान जगन्नाथ की भक्ति में लीन हो गए। एक रात सपने में भगवान जगन्नाथ ने उन्हें दर्शन दिए और विभूति प्रदान की। जब सालबेग ने यह विभूति अपने सिर पर लगाई, तो उनकी चोट चमत्कारिक रूप से ठीक हो गई। इस घटना ने उन्हें भगवान जगन्नाथ का अनन्य भक्त बना दिया। उन्होंने उड़िया भाषा में भगवान जगन्नाथ के लिए कई भक्ति भजन लिखे, जो आज भी ओडिशा में लोकप्रिय हैं। उनके सबसे प्रसिद्ध भजन, जैसे “आहे नीला शैला” (हे नीले पर्वत के स्वामी), आज भी पुरी में गाए जाते हैं।
मंदिर में प्रवेश पर प्रतिबंध और भक्ति की जीत
उस समय की सामाजिक परंपराओं के अनुसार, सालबेग को उनके मुस्लिम होने के कारण पुरी के जगन्नाथ मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं थी। इससे दुखी होकर, वे मंदिर के बाहर बैठकर भगवान की भक्ति में भजन गाते और उनकी प्रतीक्षा करते थे। उनकी अनन्य भक्ति ने भगवान जगन्नाथ को इतना प्रभावित किया कि एक बार रथ यात्रा के दौरान एक चमत्कार हुआ।
कहा जाता है कि एक बार सालबेग रथ यात्रा में शामिल होने के लिए पुरी की ओर आ रहे थे, लेकिन रास्ते में गंभीर रूप से बीमार पड़ गए। उन्हें लगा कि वे समय पर भगवान के दर्शन नहीं कर पाएंगे। उन्होंने भगवान जगन्नाथ से प्रार्थना की कि वे उनके दर्शन के लिए रुकें। उसी समय, पुरी में रथ यात्रा शुरू हुई, और भगवान जगन्नाथ का रथ उनकी मज़ार के सामने अचानक रुक गया। लाख कोशिशों के बावजूद रथ एक इंच भी आगे नहीं बढ़ा। जब सालबेग पुरी पहुंचे और भगवान के दर्शन किए, तभी रथ फिर से चलना शुरू हुआ।
इस चमत्कार ने सभी को आश्चर्यचकित कर दिया। लोगों ने इसे भगवान की कृपा और सालबेग की सच्ची भक्ति का प्रमाण माना। सालबेग की मृत्यु के बाद, उनकी मज़ार पुरी में जगन्नाथ मंदिर और गुंडीचा मंदिर के बीच के रास्ते में बनाई गई। तब से यह परंपरा चली आ रही है कि हर साल रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, बलभद्र, और सुभद्रा के रथ सालबेग की मज़ार पर कुछ देर के लिए रुकते हैं, उनकी भक्ति को सम्मान देते हुए।
परंपरा का महत्व
जगन्नाथ रथ यात्रा में सालबेग की मज़ार पर रथ का रुकना केवल एक परंपरा ही नहीं, बल्कि धार्मिक सद्भाव और एकता का प्रतीक है। यह दर्शाता है कि भगवान जगन्नाथ की कृपा सभी भक्तों पर बराबर बरसती है, चाहे वे किसी भी धर्म या समुदाय से हों। यह परंपरा उस समय की सामाजिक बाधाओं को तोड़ने का एक उदाहरण है, जब सालबेग को मंदिर में प्रवेश नहीं मिला, लेकिन भगवान स्वयं उनके पास पहुंच गए।
पुरी के गजपति महाराज और श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन इस परंपरा को आज भी पूरी श्रद्धा के साथ निभाते हैं। रथ यात्रा के दौरान, जब रथ सालबेग की मज़ार के पास पहुंचते हैं, तो कुछ समय के लिए रुकते हैं, और भक्त “सालबेग जय जय” के जयघोष के साथ उनकी भक्ति को याद करते हैं। यह क्षण न केवल सालबेग के प्रति सम्मान का प्रतीक है, बल्कि यह भी सिखाता है कि सच्ची भक्ति के सामने कोई धार्मिक या सामाजिक भेदभाव नहीं टिकता।
आधुनिक संदर्भ में सालबेग की प्रासंगिकता
सालबेग की कहानी आज के समय में भी प्रासंगिक है, क्योंकि यह धार्मिक सहिष्णुता और एकता का संदेश देती है। हाल के वर्षों में, पुरी में गैर-हिंदुओं के मंदिर प्रवेश को लेकर कुछ विवाद भी सामने आए हैं। उदाहरण के लिए, 2018 में एक हिंदू वकील मृणालिनी पाधी ने गैर-हिंदुओं के मंदिर प्रवेश पर प्रतिबंध को लेकर याचिका दायर की थी, जिसने चर्चा को जन्म दिया था। ऐसे में सालबेग की कहानी हमें याद दिलाती है कि भगवान जगन्नाथ का आशीर्वाद सभी के लिए समान है।
इसके अलावा, 2020 में एक मुस्लिम युवक आफताब हुसैन ने सुप्रीम कोर्ट में रथ यात्रा पर लगी रोक के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने इस परंपरा की महत्ता पर जोर दिया था। आफताब, जो नयागढ़ ऑटोनॉमस कॉलेज के छात्र हैं, आठ साल से अपने क्षेत्र में रथ यात्रा का आयोजन करते रहे हैं और पुरी की रथ यात्रा में भी भाग ले चुके हैं।
हाल की घटनाओं का प्रभाव
इस वर्ष (2025) की रथ यात्रा, जो 27 जून से शुरू हुई, एक दुखद भगदड़ की घटना से प्रभावित हुई, जिसमें तीन श्रद्धालुओं की मृत्यु हो गई और 50 से अधिक घायल हुए। इस घटना ने प्रशासन की भीड़ प्रबंधन की तैयारियों पर सवाल उठाए। हालांकि, सालबेग की मज़ार पर रथ का रुकना इस बार भी परंपरा के अनुसार हुआ, जो भक्तों के लिए एक भावनात्मक और आध्यात्मिक क्षण रहा।
सालबेग की मज़ार पर भगवान जगन्नाथ के रथ का रुकना एक ऐसी परंपरा है जो भक्ति, विश्वास, और धार्मिक सद्भाव की मिसाल पेश करती है। यह कहानी हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति किसी भी धर्म या समुदाय की सीमाओं से बंधी नहीं होती। पुरी की जगन्नाथ रथ यात्रा, जो विश्व भर में अपनी भव्यता और आध्यात्मिकता के लिए जानी जाती है, इस परंपरा के माध्यम से एकता और समावेशिता का संदेश देती है। भगवान जगन्नाथ का यह संदेश कि “सब मनिसा मोर परजा” (सभी मनुष्य मेरी प्रजा हैं) आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना सदियों पहले था।