आज से शारदीय नवरात्रि 2025 की पावन शुरुआत हो चुकी है और पूरा देश मां दुर्गा की भक्ति और उत्साह में डूबा हुआ है। नौ दिवसीय यह पर्व शक्ति, भक्ति और आत्मशुद्धि का प्रतीक है, जिसे देशभर में धूमधाम से मनाया जा रहा है।
आज पूरे देश में विश्वकर्मा जयंती हर्षोल्लास के साथ मनाई जा रही है। यह पर्व विशेष रूप से ब्रह्मा के पुत्र और शिल्प, वास्तु व यंत्र निर्माण के देवता भगवान विश्वकर्मा को समर्पित होता है। औद्योगिक क्षेत्रों, फैक्ट्रियों, कारखानों, वर्कशॉप्स और यहां तक कि आईटी सेक्टर में भी यह दिन कर्म और कारीगरी के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।
पितृपक्ष हिंदू धर्म में एक विशेष अवधि है, जिसमें हम अपने दिवंगत पूर्वजों को याद करते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए पूजा, तर्पण, पिंडदान और दान करते हैं। यह 16 दिनों तक चलने वाला पवित्र समय है, जिसमें पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने की कामना की जाती है। आइए जानते हैं कि वर्ष 2025 में पितृपक्ष कब होगा, इसका महत्व क्या है, और इस दौरान क्या करें और क्या न करें।
आईये जानते है साध्वी शालिनीनंद महाराज के इस लेख के जरिये महाभारत लेखन और गणेश विसर्जन की शुरुआत :
हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार, महाभारत को भगवान गणेश ने महर्षि वेदव्यास के अनुरोध पर लिखा था। मान्यता है कि वेदव्यास जी ने गणेश जी को 10 दिनों तक महाभारत की कथा सुनाई, और गणेश जी ने इसे लगातार लिखा। 10वें दिन जब वेदव्यास जी ने गणेश जी को छुआ, तो उनका शरीर बहुत गर्म हो चुका था। तब वेदव्यास जी उन्हें एक कुंड में ले गए और स्नान कराकर उनके शरीर का तापमान शांत किया। तभी से गणेश स्थापना और विसर्जन की परंपरा शुरू हुई। ऐसा माना जाता है कि विसर्जन से भगवान गणेश को शीतलता मिलती है।
हर वर्ष भाद्रपद शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को श्रद्धा और भक्ति से परिपूर्ण पर्व जल-जूलनी एकादशी, जिसे आम बोलचाल में डोल ग्यारस भी कहा जाता है, पूरे भारतवर्ष में विशेष रूप से राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात और उत्तर भारत के कई हिस्सों में धूमधाम से मनाया जाता है। यह दिन भगवान विष्णु के अनंत रूपों की झाँकियों, डोल यात्राओं और जल पूजन के लिए जाना जाता है।
सीए ज्योति तोरानी अपने इस लेख के जरिये बताती है कि गणेश चतुर्थी भारत का ऐसा पर्व है जो सिर्फ पूजा, मिठाइयों और सजावट तक सीमित नहीं है, बल्कि यह बच्चों के लिए ज्ञान, विनम्रता और संस्कार सीखने का भी अवसर है। माता-पिता इस मौके पर भगवान गणेश की कहानियों और परंपराओं के जरिए बच्चों को जीवन के जरूरी मूल्य सिखा सकते हैं। आइए जानते हैं कैसे
आज के भागदौड़ भरे जीवन में, जब तनाव और संकट हर कदम पर इंतजार करते हैं, साध्वी शालिनीनंद महाराज की एक प्रेरक कथा हमें गुरुमंत्र की शक्ति और गुरु कृपा के चमत्कार का अहसास कराती है। यह कहानी एक ऐसी मां की है, जिसने गुरुमंत्र के बल पर असंभव को संभव कर दिखाया।
साध्वी शालिनीनंद महाराज ने श्रीमद् भागवत कथा और अन्य धार्मिक कथाओं के वर्तमान स्वरूप पर गंभीर सवाल उठाते हुए ऐसी कथाओं पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने की माँग की है, जो आध्यात्मिक लाभ प्रदान करने में असमर्थ हैं। उन्होंने कहा कि श्रीमद् भागवत कथा, जो भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं और भगवान नारायण के अवतारों का वर्णन करती है, शास्त्रों में अत्यंत पुण्यदायी मानी गई है। लेकिन आजकल ये कथाएँ आध्यात्मिक उन्नति के बजाय धन, यश और सम्मान अर्जित करने का माध्यम बन गई हैं।
साध्वी शालिनीनंद महाराज ने एक प्रेरक कथा के माध्यम से ब्रह्मचर्य और सन्यास के सच्चे अर्थ को समझाया, जो आज के समय में भी गहन चिंतन का विषय है। यह कथा दो सन्यासियों की यात्रा पर आधारित है ।
भड़लिया नवमी से देवउठनी ग्यारस तक का समय केवल वह नहीं जब "देव सोते हैं," बल्कि यह वह पवित्र काल है जब प्रकृति और आत्मा साधना में लीन हो जाते हैं। सनातन धर्म में चातुर्मास को "आत्मनिरीक्षण और संयम" का अनमोल समय माना जाता है। यह जानकारी साध्वी शालिनीनंद महाराज द्वारा दी गई है, जिनके अनुसार यह वह काल है जब "धर्म मौन हो जाता है, तंत्र जागता है, और जीवन की गति बाहर से रुककर भीतर तेज हो जाती है।"