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Monday, October 13, 2025

24JT News Desk / News Delhi /September 26, 2025

क्या होगा अगर हम शरीर के अंदर की क्रियाओं को बिना किसी सर्जरी या आक्रमक तरीके से देख सकें? यह विचार अब सच होने जा रहा है।आइए जानते हैं, संजय सक्सेना, वरिष्ठ विश्लेषक और विचारक, के इस लेख के माध्यम से।

टेक्नोलॉजी / दुनिया का पहला कैमरा जो इंसान के शरीर के अंदर की तस्वीरें ले सकेगा: चिकित्सा जगत में नई क्रांति - संजय सक्सैना

आज के वैज्ञानिक युग में चिकित्सा विज्ञान में हो रहे अद्भुत विकासों ने हमारी सोच और समझ को बिल्कुल नया मोड़ दिया है। हर दिन नई-नई तकनीकें सामने आ रही हैं, जो न केवल इलाज के तरीके को बेहतर बना रही हैं, बल्कि मरीजों की देखभाल में भी सुधार कर रही हैं। अब, एक और रोमांचक आविष्कार ने चिकित्सा क्षेत्र में हलचल मचा दी है – एक कैमरा जो इंसान के शरीर के अंदर की गतिविधियों को कैप्चर करने में सक्षम है। जी हां, वैज्ञानिकों ने ऐसा कैमरा विकसित किया है, जो शरीर के अंदर की हार्ट एक्टिविटी, रक्तचाप और यहां तक कि छिपी हुई बीमारियों को भी देख सकता है। इस कैमरे का नाम है 'क्रिस्टल कैमरा', और यह चिकित्सा क्षेत्र में एक नई क्रांति ला सकता है।

कैमरे की अद्वितीय तकनीक और इसके लाभ


अमेरिका की नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी (Northwestern University) और चीन की सूजौ यूनिवर्सिटी (Soochow University) के वैज्ञानिकों ने मिलकर इस अनोखे कैमरे को विकसित किया है। यह कैमरा पारंपरिक मेडिकल इमेजिंग तकनीकों से अलग है क्योंकि यह पेरोव्स्काइट क्रिस्टल का उपयोग करता है, जो गामा किरणों को बहुत प्रभावी ढंग से कैप्चर करता है। आइए, जानते हैं कि यह कैमरा पुराने तकनीकों से कैसे बेहतर है और क्यों इसकी रेडियेशन क्षमता कम है।

कम रेडियेशन का कारण


पुरानी इमेजिंग तकनीकों, जैसे कि SPECT (Single Photon Emission Computed Tomography) स्कैन में, रेडियोट्रेसर का इस्तेमाल किया जाता है, जो शरीर में गामा किरणें उत्पन्न करता है। इन किरणों को पकड़ने के लिए पुराने डिटेक्टरों में कैडमियम जिंक टेल्यूराइड (CZT) या सोडियम आयोडाइड (NaI) जैसे सामग्री का इस्तेमाल होता है।

हालांकि CZT तकनीक बहुत महंगी होती है और सोडियम आयोडाइड की गुणवत्ता खराब होती है, लेकिन दोनों ही विकल्पों में एक सामान्य समस्या है – अधिक रेडियेशन। पुराने डिटेक्टरों को कम गुणवत्ता वाले गामा किरणों को पकड़ने के लिए उच्च मात्रा में रेडियेशन की जरूरत होती है। इसके कारण मरीजों को ज्यादा रेडियेशन का खतरा होता है।

इसके विपरीत, पेरोव्स्काइट क्रिस्टल आधारित नया कैमरा अधिक संवेदनशील है। यह गामा किरणों की ऊर्जा को बहुत तेजी से और सही तरीके से कैप्चर कर सकता है। इसका मतलब यह है कि इस कैमरे को शरीर के अंदर से निकलने वाली गामा किरणों को पकड़ने के लिए कम रेडियेशन की आवश्यकता होती है। यही कारण है कि मरीजों को इस नई तकनीक से होने वाला रेडियेशन भी पुराने तकनीकों की तुलना में बहुत कम होगा।

तकनीकी लाभ और सटीकता


पेरोव्स्काइट क्रिस्टल का एक और बड़ा फायदा यह है कि यह कमजोर सिग्नल को भी पकड़ सकता है। पुराने डिटेक्टरों में यह समस्या थी कि वे धुंधले या कमजोर गामा किरणों को सही से कैप्चर नहीं कर पाते थे, जिससे इमेजिंग में गड़बड़ी हो सकती थी। हालांकि, पेरोव्स्काइट क्रिस्टल की मदद से यह तकनीक इस कमजोर सिग्नल को भी पकड़ने में सक्षम है, जिससे बेहतर और साफ चित्र प्राप्त किए जा सकते हैं।

इसका परिणाम यह होगा कि डॉक्टरों को अधिक सटीक और तेज़ परिणाम मिलेंगे, जिससे वे जल्दी और सही निर्णय ले पाएंगे। पुराने स्कैनिंग उपकरणों की तुलना में, यह नया कैमरा बेहतर गुणवत्ता वाली 3D इमेज बनाता है, जिससे अंदर की बीमारियों या हार्ट एक्टिविटी को पहले से कहीं अधिक स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

सस्ता और अधिक सुलभ


पेरोव्स्काइट क्रिस्टल का एक और बड़ा लाभ यह है कि यह बहुत सस्ता है। पुराने CZT तकनीक के मुकाबले यह बहुत कम लागत पर बनाया जा सकता है, जिससे इसे बड़े अस्पतालों के अलावा छोटे क्लिनिक्स और प्राइवेट अस्पतालों में भी उपयोग किया जा सकता है। इस तकनीक का सस्ता होना इसे अधिक सुलभ बनाता है, और इससे ज्यादा से ज्यादा मरीजों को अच्छी स्कैनिंग सेवाएं मिल सकेंगी।

जल्द ही बाजार में उपलब्ध


इस नए कैमरे की तकनीक को अब नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी की कंपनी, एक्टिनिया इंक (Actinia Inc) द्वारा बाजार में लाया जाएगा। रिसर्चर्स का मानना है कि इस तकनीक से न्यूक्लियर मेडिसिन में एक बड़ा बदलाव आएगा। न केवल यह स्कैनिंग को और अधिक सटीक बनाएगा, बल्कि छोटे अस्पतालों और क्लिनिक्स में भी इसका उपयोग आसानी से किया जा सकेगा।

कैसे काम करेगा यह कैमरा?


यह नया कैमरा गामा किरणों को पकड़ने के लिए पेरोव्स्काइट क्रिस्टल का इस्तेमाल करता है। पेरोव्स्काइट क्रिस्टल से बने डिटेक्टर बेहद संवेदनशील होते हैं और गामा किरणों को अत्यधिक तेजी से पकड़ने में सक्षम होते हैं। यह तकनीक पारंपरिक गामा डिटेक्टरों से कहीं अधिक सटीक और तेज़ है, और इससे बेहतर 3D इमेजिंग प्राप्त की जा सकती है। इसके अलावा, यह तकनीक पहले से कहीं अधिक कम रेडियेशन के साथ काम करती है, जिससे मरीजों को कम जोखिम का सामना करना पड़ता है।

क्या यह भविष्य का चिकित्सा उपकरण होगा?


यह तकनीक वाकई एक अभूतपूर्व कदम हो सकता है, जो आने वाले समय में चिकित्सा जगत को पूरी तरह से बदलकर रख देगा। जैसे-जैसे यह कैमरा दुनिया भर के अस्पतालों और क्लिनिक में अपनी जगह बनाएगा, अधिक से अधिक लोग इसका लाभ उठा पाएंगे। यह न केवल इलाज के तरीके को आसान और सस्ता बनाएगा, बल्कि मरीजों के लिए एक नई उम्मीद भी पैदा करेगा।

सोचने की बात


इस अद्भुत तकनीक को देखकर हम यह सोच सकते हैं कि आने वाला समय कितना रोचक होगा। क्या तकनीक हमें और अधिक सक्षम बना पाएगी, या फिर यह हमारे लिए कुछ चुनौतियाँ भी लेकर आएगी? एक तरफ यह कैमरा हमारे जीवन को बेहतर बना सकता है, तो दूसरी तरफ क्या इसके साथ कुछ चुनौतियां भी आएंगी? यह तो समय ही बताएगा।

संजय सक्सैना - क्या आप इस नई तकनीक को चिकित्सा जगत में एक महत्वपूर्ण कदम मानते हैं? या फिर आपको लगता है कि इसके साथ कुछ चुनौतियाँ भी जुड़ी हो सकती हैं?

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