पिछले सप्ताह ट्रंप प्रशासन ने ऐलान किया था कि स्मार्टफोन, लैपटॉप, मेमोरी कार्ड और सेमीकंडक्टर्स जैसे उत्पादों को चीन से आयात पर लगाए गए 145 फीसदी टैरिफ और अन्य देशों पर 10 फीसदी बेसलाइन टैरिफ से छूट दी जाएगी। इस फैसले से अमेरिकी उपभोक्ताओं को राहत मिली थी, क्योंकि इससे स्मार्टफोन और लैपटॉप जैसी जरूरी वस्तुओं की कीमतों में भारी उछाल की आशंका कम हो गई थी। तकनीकी दिग्गजों जैसे ऐपल, एनवीडिया और सैमसंग ने भी इस छूट का स्वागत किया था, क्योंकि इनका अधिकांश उत्पादन चीन और एशिया के अन्य देशों में होता है।
हालांकि, अब ट्रंप प्रशासन ने नया रुख अपनाते हुए कहा है कि यह छूट केवल अस्थायी है। प्रशासन जल्द ही सेमीकंडक्टर्स और अन्य महत्वपूर्ण तकनीकी उपकरणों पर केंद्रित एक नई टैरिफ नीति लाने की तैयारी कर रहा है। इसके लिए अगले कुछ हफ्तों में एक राष्ट्रीय सुरक्षा जांच शुरू की जा सकती है, जो चिप्स और इलेक्ट्रॉनिक्स के आयात के प्रभाव का आकलन करेगी। इस जांच के आधार पर नई टैरिफ दरें तय की जा सकती हैं, जो स्मार्टफोन और कंप्यूटर की कीमतों को फिर से प्रभावित कर सकती हैं।
ट्रंप ने इस बारे में कहा कि वह सोमवार को और स्पष्ट जानकारी देंगे, लेकिन उन्होंने यह जोर देकर कहा कि यह कदम अमेरिका को तकनीकी क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में उठाया जा रहा है। प्रशासन का दावा है कि ये टैरिफ अमेरिकी विनिर्माण को बढ़ावा देंगे और नौकरियां वापस लाएंगे। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि स्मार्टफोन और लैपटॉप जैसे उत्पादों का उत्पादन अमेरिका में शुरू करना आसान नहीं है, क्योंकि इसके लिए जटिल आपूर्ति श्रृंखला और भारी निवेश की जरूरत होगी।
इस नीति से वैश्विक व्यापार में तनाव और बढ़ सकता है, खासकर चीन के साथ, जिसने पहले ही अमेरिकी सामानों पर 125 फीसदी का जवाबी टैरिफ लगाया है। इस टैरिफ युद्ध का असर पहले ही शेयर बाजारों पर दिख चुका है, जहां तकनीकी कंपनियों के शेयरों में भारी उतार-चढ़ाव देखा गया। उपभोक्ताओं को भी चिंता सता रही है कि नई टैरिफ नीति से स्मार्टफोन और कंप्यूटर की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिसका असर उनकी जेब पर पड़ेगा।
ट्रंप के इस यू-टर्न ने न केवल व्यापारिक हलकों में बहस छेड़ दी है, बल्कि राजनीतिक गलियारों में भी सवाल उठ रहे हैं। कुछ आलोचकों का कहना है कि ट्रंप की नीतियां अनिश्चितता पैदा कर रही हैं, जिससे कंपनियों और निवेशकों का भरोसा डगमगा रहा है। दूसरी ओर, उनके समर्थक इसे अमेरिकी हितों की रक्षा के लिए जरूरी कदम बता रहे हैं।
अब सभी की नजरें इस बात पर टिकी हैं कि ट्रंप प्रशासन की नई टैरिफ नीति कैसी होगी और इसका वैश्विक तकनीकी उद्योग पर क्या असर पड़ेगा। यह कदम न केवल अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध को नई दिशा दे सकता है, बल्कि भारत जैसे देशों को भी अपनी विनिर्माण नीतियों पर पुनर्विचार करने के लिए प्रेरित कर सकता है।