क्या है यह योजना?
रिफ्लेक्ट ऑर्बिटल का लक्ष्य है अंतरिक्ष में विशाल दर्पणयुक्त उपग्रह स्थापित करना, जो सूर्य की रोशनी को रिफ्लेक्ट करके (वापस फेंककर) रात के समय भी चुने हुए सोलर फार्म या अन्य स्थानों पर “रोशनी” पहुँचाएं। इस तरह सौर ऊर्जा सोलर फॉर्म्स को सूरज डूबने के बाद भी बिजली उत्पादन जारी रखने में मदद मिलेगी। कुछ मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:
• कंपनी ने 18 मीटर व्यास वाला परीक्षण उपग्रह “Earendil‑1” लॉन्च करने की योजना बनाई है।
• अंततः लगभग 4,000 उपग्रहों का क़ॉन्स्टेल्लेशन बनाने का विचार है, 2030 तक।
• एक उपग्रह लगभग 625 कि.मी. ऊँचाई पर होगा और इसके दर्पण लगभग 54 मीटर चौड़े होंगे।
• प्रत्येक उपग्रह से प्रकाश वितरण का क्षेत्र‑फल बहुत बड़ा होगा—लगभग 7 किमी व्यास का पैच।
• कंपनी का दावा है कि एक क्षितिज‑रूप से नियंत्रित
• रोशनी प्रणाली तैयार होगी, जो संक्षिप्त, पूर्वानुमेय और लक्षित होगी।
यह क्यों आकर्षक है?
• अगर सफल हो जाए, तो यह रात के समय सौर ऊर्जा उत्पादन को एक बड़ा बूस्ट देगा—बैटरियों या जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम होगी।
• उन क्षेत्रों में जहाँ सूर्य जल्दी डूब जाता है या सर्दियों में रोशनी कम होती है, वहाँ इस तकनीक से रोशनी प्रदान करके कृषि, आपात‑प्रतिक्रिया और अन्य रात के संचालन को मदद मिल सकती है।
लेकिन इसके साथ हैं बड़े सवाल और चुनौतियाँ
1. प्रकाश प्रदूषण (Light Pollution)
खगोलशास्त्री खासतौर पर चिंतित हैं कि यह तकनीक रात के आकाश को बदल सकती है। उदाहरण के लिए:
• अनुसंधान बताता है कि कृत्रिम उपग्रहों और अन्तरिक्ष‑मलबे ने रात के आकाश की चमक को 10 % या इससे अधिक बढ़ा दिया है।
• रिफ्लेक्ट ऑर्बिटल की योजना के मुताबिक अकेला 54 मीटर व्यास वाला दर्पण उपग्रह, दोपहर के समय सूर्य से मिलने वाली ऊर्जा (लगभग 1,000 वॉट प्रति वर्ग मीटर) की तुलना में केवल 1/15,000 यानी लगभग 0.067 वॉट प्रति वर्ग मीटर की रोशनी ही पृथ्वी पर पहुँचा पाएगा, लेकिन फिर भी यह पूर्णिमा की रात में चाँद से अधिक चमकदार हो सकता है।
• यदि हजारों उपग्रहों की कड़ी लग जाए, तो रात के आकाश में चमकदार “रेखाएँ” और गड्ढे‑जैसे धब्बे आ सकते हैं, जो खगोल‑दर्शनों (ऑब्जर्वेशन) को बाधित कर देंगे।
2. तकनीकी व आर्थिक स्थिति
• उपग्रहों को उस स्थान पर बहुत सटीक तौर पर रोशनी फेंकनी होगी जहाँ लक्ष्य है, और क्योंकि वे पृथ्वी की कक्षा में गति कर रहे होंगे, एक स्थान पर स्थिर रोशनी बनाए रखना बेहद चुनौतीपूर्ण है। दोपहर के समय जब सूरज सिर के ऊपर होता है, तो पृथ्वी की सतह पर सामान्यतः लगभग 1,000 W/m² (यानी 1,000 वाट प्रति वर्ग मीटर) ऊर्जा सूर्य से पहुँचती है। रिफ्लेक्ट ऑर्बिटल की योजना है कि उनके उपग्रहों से लगभग 200 वाट प्रति वर्ग मीटर की ऊर्जा रात में किसी क्षेत्र पर फेंकी जा सके, जो सूर्य की तीव्रता का लगभग 20% है।
3. पारिस्थितिक एवं मानव स्वास्थ्य प्रभाव
• कृत्रिम प्रकाश रात में प्राकृतिक अंधकार को बदल सकता है, जिससे जंतु जैसे कि चमगादड़, कीट, समुद्री कछुए आदि की प्रवृत्तियाँ प्रभावित हो सकती हैं।
• मानव नींद‑चक्र (सर्केडियन रिदम) भी ऐसे रोशनी के बदलाव से प्रभावित हो सकती है, जिससे स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है।
रिफ्लेक्ट ऑर्बिटल की यह “रात में सूरज” जैसी योजना निस्संदेह क्रांतिकारी हो सकती है—लेकिन उसके साथ खगोलशास्त्रीय आकाश, पृथ्वी‑पर्यावरण और रात के प्राकृतिक चक्रों पर गहरा प्रभाव भी पड़ सकता है। जैसा कि खगोलशास्त्री कहते हैं “अगर सिर्फ एक उपग्रह भी पूर्ण चाँद से अधिक चमकता है, तो एक पूरी कड़ी हमारे आकाश को ही बदल सकती है।”
क्या यह रोशनी आवश्यक है:
क्या इतना सोचना कि रात्रि में भी रोशनी अच्छी है पर्याप्त रहेगा, अथवा यह सोचना कि क्या यह रोशनी जरूरी है और किसके लिए ,भी आवश्यक है?