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Wednesday, July 2, 2025

Pawan Kumar / New Delhi /May 2, 2025

आदि_गुरु_शंकराचार्य न केवल एक आध्यात्मिक मनीषी थे, बल्कि हिंदू धर्म के दार्शनिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और संस्थागत पुनर्निर्माणकर्ता भी थे। उनका योगदान बहुआयामी और कालजयी है, जो आज भी हिंदू धर्म की संरचना और आचरण में स्पष्ट रूप से दिखता है। नीचे उनके हिंदू धर्म में योगदान को कुछ प्रमुख बिंदुओं में विस्तृत रूप से प्रस्तुत किया गया है:

धर्म / एक जीवन, एक दर्शन: आदि शंकराचार्य का सनातन पुनर्जागरण: आचार्य अनुज

1. अद्वैत वेदांत (Non-dualism) का पुनरुत्थान
शंकराचार्य ने अद्वैत वेदांत को सूत्रबद्ध कर जनमानस के लिए सुलभ बनाया। उनका मुख्य सिद्धांत था —

"ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या, जीवो ब्रह्मैव नापरः।"
(ब्रह्म ही सत्य है, जगत माया है, और जीव वास्तव में ब्रह्म ही है।)

इस दर्शन ने ईश्वर और आत्मा के एकत्व को प्रतिपादित कर हिंदू धर्म की बौद्धिक रीढ़ को मजबूत किया।

2. प्रमाण-शास्त्र और विवेक आधारित धर्म की स्थापना
शंकराचार्य ने अंधश्रद्धा और कर्मकांड के अत्यधिक विस्तार को संतुलित कर वेदांत को तर्क, शास्त्र और अनुभव के माध्यम से समझाने का प्रयास किया। उन्होंने:
• प्रस्थानत्रयी (उपनिषद, भगवद्गीता और ब्रह्मसूत्र) पर भाष्य रचकर धर्मशास्त्रों को सुव्यवस्थित किया।
• श्रुति, स्मृति और युक्ति — इन तीनों को धर्म का आधार माना।

3. चार धाम और मठ व्यवस्था की स्थापना
धार्मिक और आध्यात्मिक एकता के लिए उन्होंने चार मठ (पीठ) की स्थापना की:
• ज्योतिर्मठ (उत्तर – ऋग्वेद)
• श्रृंगेरी मठ (दक्षिण – यजुर्वेद)
• गोवर्धन मठ (पूर्व – सामवेद)
• द्वारका मठ (पश्चिम – अथर्ववेद)

इससे वेदों की परंपरा को संरक्षित किया गया और धार्मिक नेतृत्व को संगठित किया गया।

4. लोकभाषा में स्तोत्र साहित्य की रचना
उन्होंने संस्कृत में कई सुंदर और भावप्रवण स्तोत्रों की रचना की, जैसे:
• सौंदर्य लहरी
• शिवानंद लहरी
• भज गोविंदम्
• मनोबुद्ध्यहंकार चित्तानि नाहम्

इनसे उन्होंने भक्तिरस और ज्ञान का समन्वय किया — जिससे आम जन भी ईश्वर से जुड़ सके।

5. संपूर्ण भारत का धार्मिक एकीकरण
8 वर्ष की आयु में सन्यास लेकर और 32 वर्ष की अल्पायु में ही पूरे भारत का भ्रमण करके उन्होंने:

• अस्थिर हो रही धार्मिक परंपराओं को एकसूत्र में पिरोया।
• बौद्ध प्रभाव में हो रही क्षीणता को रोका।
• वैदिक परंपरा का पुनर्जीवन किया।
• उनकी यात्रा ने भारत को एक सांस्कृतिक राष्ट्र के रूप में मजबूती दी।

6. धार्मिक शुद्धता और मूर्ति-पूजा की वैदिक वैधता
उन्होंने तर्क और शास्त्रों से यह सिद्ध किया कि:
• मूर्ति-पूजा वेदविरुद्ध नहीं है।
• ईश्वर के साकार और निराकार दोनों रूपों की आराधना वैध है।
• इससे भक्ति और ज्ञान का सामंजस्य स्थापित हुआ।

7. धर्म पर बौद्धिक संवाद (Debates) द्वारा वैदिक धर्म की प्रतिष्ठा
शंकराचार्य ने भारतभर में विभिन्न दर्शनों के साथ शास्त्रार्थ किए, जिनमें मुख्य थे:
• मीमांसा
• सांख्य
• बौद्ध धर्म (विशेषकर शून्यवाद)
• नैयायिक

उनकी शास्त्रार्थ शैली से वैदिक धर्म की दार्शनिक श्रेष्ठता पुनः स्थापित हुई।

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