राष्ट्रपति मुर्मु ने सैन्य प्रमुखों को संबोधित करते हुए कहा कि वे न केवल अपने-अपने देशों की सेनाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं, बल्कि वैश्विक शांति, सह-अस्तित्व और मानवीय मूल्यों के दूत भी हैं। उन्होंने कहा, "आप सभी स्थायी शांति और समृद्धि की दिशा में अपने देशों की प्रतिबद्धता, अनुभव और नैतिक दृष्टिकोण के वाहक हैं।"
राष्ट्रपति ने बताया कि अब तक संयुक्त राष्ट्र के बैनर तले 71 से अधिक शांति अभियानों को अंजाम दिया गया है। इन अभियानों का मुख्य उद्देश्य हिंसा से पीड़ित निर्दोष नागरिकों — विशेषकर महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों — को राहत पहुंचाना है। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र शांति रक्षकों के साहस, करुणा और प्रतिबद्धता की सराहना करते हुए कहा कि "दुनिया के दूरदराज इलाकों में तैनात शांतिरक्षकों ने अद्वितीय वीरता और संवेदनशीलता का परिचय दिया है।"
भारत की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में भारत संयुक्त राष्ट्र चार्टर और बहुपक्षवाद के सिद्धांतों का प्रबल समर्थक रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि भारत को हमेशा से गर्व रहा है कि वह संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में एक अग्रणी सैन्य योगदानकर्ता रहा है।
राष्ट्रपति ने यह भी रेखांकित किया कि भारत ने शांति स्थापना में "लैंगिक समावेशन" को प्राथमिकता दी है। उन्होंने कहा कि महिला शांतिरक्षकों ने जमीनी स्तर पर समुदायों के बीच विश्वास की भावना को प्रबल किया है और सामाजिक सशक्तिकरण में अहम भूमिका निभाई है।
अपने प्रेरणादायी संदेश में राष्ट्रपति ने कहा, "हमें मिलकर ऐसे तंत्र विकसित करने चाहिए जो सैन्य योगदानकर्ता देशों की आवाज़ को मज़बूती दें। स्थानीय हितधारकों से संवाद और साझेदारी के ज़रिए ही हम ऐसी टिकाऊ शांति सुनिश्चित कर सकते हैं, जो थोपी न जाए बल्कि सहभागिता से पनपे।"
अपने वक्तव्य का समापन करते हुए राष्ट्रपति मुर्मु ने विश्वास जताया कि इस प्रकार के सम्मेलन वैश्विक सहयोग, संवाद और दीर्घकालिक मैत्री को और मजबूत करेंगे। उन्होंने कहा,
"एक शांति संरक्षक के रूप में हमारा संकल्प होना चाहिए कि हम ऐसा विश्व बनाएं, जहां हर बच्चा सुरक्षित महसूस करे, हर समाज में सौहार्द का वातावरण हो और जहां संघर्ष केवल इतिहास की पुस्तकों में सीमित रह जाएं।"