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Monday, October 13, 2025

Pawan Kumar / Hyderabad /September 2, 2025

क्या है टैरिफ युद्ध और क्यों हुआ? आईये जानते है संजय सक्सेना के इस लेख के जरिये -
2025 के आस-पास अमेरिका और भारत के बीच टैरिफ युद्ध की संभावना बढ़ रही है, और इसके पीछे कई जटिल कारण हैं। ट्रेड वॉर्स आमतौर पर तब शुरू होते हैं जब देशों के बीच व्यापार असंतुलन, नौकरी सृजन की नीतियाँ, और आर्थिक दबाव बढ़ते हैं।

अन्तर्राष्ट्रीय / अमेरिका और भारत के बीच टैरिफ युद्ध: प्रभाव पर विश्लेषण - संजय सक्सैना

संजय सक्सेना बताते है कि भारत और अमेरिका के मामले में, यह युद्ध कई पहलुओं पर आधारित हो सकता है। अमेरिका के लिए, भारत का रूस से सस्ता तेल आयात एक बड़ी चिंता का कारण बन चुका है, क्योंकि इससे यूक्रेन युद्ध के दौरान रूस को आर्थिक सहारा मिलता है। अमेरिका ने पहले ही भारत को रूस से तेल आयात करने पर चेतावनी दी है। इसके अलावा, भारत के व्यापार असंतुलन, उच्च आयात शुल्क और बौद्धिक संपदा अधिकार से जुड़े विवाद भी अमेरिका के लिए असंतोष का कारण बन सकते हैं।
अमेरिका के लिए यह टैरिफ युद्ध, अपने व्यापार घाटे को कम करने, आधुनिक तकनीकी उत्पादों पर बढ़े हुए शुल्क लगाने और रूस से भारत के तेल आयात पर दबाव बनाने का एक तरीका हो सकता है। वहीं, भारत के लिए यह आर्थिक दबाव और राजनीतिक चुनौती के रूप में उभर सकता है, खासकर जब अमेरिका के साथ उसके कई प्रमुख उद्योगों जैसे वस्त्र उद्योग, आईटी सेवाएँ, और फार्मास्युटिकल्स गहरे व्यापारिक संबंध रखते हैं। भारत के इन उद्योगों पर टैरिफ युद्ध का प्रभाव गंभीर हो सकता है, जिससे इसकी अर्थव्यवस्था को खासा नुकसान हो सकता है।

क्या अमेरिका और भारत के बीच टैरिफ युद्ध शुरू हो चुका है?


संजय सक्सेना आगे बताते है कि सितंबर 2025 तक, अमेरिका और भारत के बीच पूर्ण पैमाने पर टैरिफ युद्ध अभी तक आधिकारिक रूप से शुरू नहीं हुआ है, लेकिन व्यापार नीतियों, शुल्क और आर्थिक प्रथाओं को लेकर दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है। हालांकि, विभिन्न संकेत मिल रहे हैं कि यह टैरिफ युद्ध नजदीकी भविष्य में पूरी तरह से उभर सकता है।

प्रमुख घटनाक्रम जो बढ़ा रहे हैं तनाव:

विशिष्ट वस्तुओं पर टैरिफ वृद्धि:
o भारत का जवाब : भारत ने 2019 में अमेरिका से सामान्यीकृत प्रणाली (GSP) को हटाए जाने के बाद, कई अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ बढ़ा दिए। GSP के तहत भारत को कुछ उत्पादों को बिना शुल्क के अमेरिका में निर्यात करने की छूट मिलती थी, लेकिन इसके हटने से भारतीय निर्यातकों को बड़ा झटका लगा। इसके जवाब में, भारत ने कृषि उत्पादों, चिकित्सा उपकरणों और इलेक्ट्रॉनिक्स पर अमेरिकी उत्पादों पर शुल्क बढ़ा दिए।
o अमेरिका का जवाब : अमेरिका ने भी पहले ही भारतीय वस्त्र, इस्पात, और एल्यूमिनियम पर टैरिफ बढ़ा दिए थे, खासकर 2018 में इस्पात और एल्यूमिनियम पर 25% और 10% के शुल्क के साथ। यह कदम अमेरिकी व्यापार घाटे को घटाने के प्रयासों का हिस्सा था।
o इस्पात और एल्यूमिनियम पर अमेरिकी टैरिफ : 2018 में, अमेरिका ने इस्पात पर 25% और एल्यूमिनियम पर 10% टैरिफ लागू कर दिए, जिसका प्रभाव भारत पर पड़ा। भारत, जो विश्व का सबसे बड़ा इस्पात निर्यातक है, इस कदम से प्रभावित हुआ और भारत ने भी अमेरिका के खिलाफ प्रतिरोधी शुल्क लगाए।
o तकनीकी और डिजिटल सेवाएं : भारत का आईटी क्षेत्र हमेशा अमेरिका के लिए प्रमुख निर्यातक रहा है, लेकिन डाटा स्थानिकता (data localization) और नए डिजिटल सेवाओं के नियम जैसे विवादों ने अमेरिकी कंपनियों को भारत से जुड़े व्यापार में असुविधा दी। इसके कारण, अमेरिका ने भारतीय कंपनियों के खिलाफ नई टैरिफ नीतियाँ लागू करने की संभावना व्यक्त की है।
o कृषि टैरिफ : कृषि उत्पादों जैसे सेब, दालें, और गेहूं पर टैरिफ को लेकर भी विवाद चल रहा है। भारत ने अमेरिका से आयातित कृषि उत्पादों पर टैरिफ बढ़ा दिए हैं, जबकि अमेरिका ने भी भारत से आयातित कृषि वस्तुओं पर शुल्क लगाने की कोशिश की है।
o द्विपक्षीय व्यापार वार्ता : दोनों देशों के बीच कई बार व्यापार वार्ताएं हुई हैं, लेकिन अब तक कोई सार्थक समझौता नहीं हुआ है जो दोनों देशों के बीच शुल्क को कम कर सके। अमेरिका ने भारत से अमेरिकी व्यवसायों के लिए बाजार को अधिक सुलभ बनाने की मांग की है, खासकर फार्मास्युटिकल्स, कृषि, और चिकित्सा उपकरणों में। वहीं, भारत ने भारत के घरेलू उद्योगों की सुरक्षा के लिए जवाबी कदम उठाए हैं।

क्या टैरिफ युद्ध की संभावना है?


भविष्य में टैरिफ वृद्धि के संकेत:
•भारत का संभावित जवाब: अगर अमेरिका भारत से आयातित उत्पादों पर शुल्क बढ़ाता है, तो भारत अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ बढ़ा सकता है। यह ऑटोमोबाइल, मशीनरी, और चिकित्सा उपकरणों पर लागू हो सकता है। भारत के कदम इस बात पर निर्भर करेंगे कि अमेरिका अपनी नीतियों को और कड़ा करता है या नहीं।
•अमेरिका के कदम : अमेरिका भी भारत के उत्पादों पर शुल्क बढ़ा सकता है, जो व्यापारिक असंतुलन को ठीक करने की उसकी रणनीति का हिस्सा हो सकता है।
क्यों यह महत्वपूर्ण है?
अमेरिका और भारत के बीच टैरिफ युद्ध का असर न केवल दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ेगा, बल्कि वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पर भी इसका गहरा प्रभाव होगा, खासकर फार्मास्युटिकल्स, तकनीकी उत्पादों, और कृषि उत्पादों के मामले में। इसके अलावा, महंगाई या उपभोक्ता लागत में वृद्धि हो सकती है, जो व्यापारों, नौकरियों, और उपभोक्ताओं को प्रभावित कर सकती है।

संजय सक्सैना - अभी तक टैरिफ युद्ध पूर्ण रूप से विस्तृत नहीं हुआ है, लेकिन अमेरिका और भारत के बीच व्यापारिक तनाव और टैरिफ बढ़ाने की दिशा में जो कदम उठाए गए हैं, वह भविष्य में पूर्ण व्यापार युद्ध की ओर इशारा कर सकते हैं। अमेरिका और भारत के बीच व्यापार की स्थिति को देखना अब जरूरी है क्योंकि दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों की जटिलता और निरंतर तनाव को देखते हुए आने वाले समय में स्थिति और बिगड़ सकती है।

भारत और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंध बहुत महत्वपूर्ण हैं। 2023 में, अमेरिका भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार था, और दोनों देशों के बीच कुल व्यापार 150 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया था। इसमें भारत का निर्यात लगभग 80 बिलियन डॉलर है, जिसमें मुख्यतः वस्त्र, औषधियाँ, इंजीनियरिंग उत्पाद और आईटी सेवाएँ शामिल हैं। वहीं, अमेरिका से आयात लगभग 45-50 बिलियन डॉलर का है, जिसमें मुख्यत: क्रूड ऑयल, मशीनरी, और उच्च तकनीकी उत्पाद आते हैं।

भारत और अमेरिका के बीच व्यापार घाटा भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत अमेरिका से ज्यादा सामान आयात करता है जितना कि वह निर्यात करता है। यह असंतुलन कई बार तनाव का कारण बनता है, और यदि अमेरिका ने भारत पर आयात शुल्क बढ़ा दिया, तो यह भारत के लिए गंभीर आर्थिक संकट उत्पन्न कर सकता है। इसके अलावा, रूस से सस्ता तेल आयात भी अमेरिका के लिए एक बड़ा मुद्दा बन चुका है, क्योंकि इससे रूस को आर्थिक सहायता मिल रही है, जो अमेरिका की यूक्रेन नीति के खिलाफ जाता है। अमेरिका के लिए यह एक बड़ा रणनीतिक मसला बन सकता है, और वह इसे व्यापारिक दबाव के रूप में इस्तेमाल कर सकता है।

भारत पर टैरिफ युद्ध का प्रभाव :


• निर्यात में गिरावट : अमेरिका के साथ भारत का निर्यात मुख्यत: वस्त्र, फार्मास्युटिकल्स, इंजीनियरिंग उत्पाद, और आईटी सेवाओं से जुड़ा हुआ है। अगर अमेरिका भारत से आने वाले उत्पादों पर 10%-25% टैरिफ लगा देता है, तो भारतीय कंपनियों को इसका गंभीर नुकसान होगा।
• वस्त्र और गारमेंट्स : भारत अमेरिका को वस्त्रों का एक बड़ा निर्यातक है। अमेरिका में टैरिफ बढ़ने से इन उत्पादों की मांग घट सकती है।
• फार्मास्युटिकल्स : भारत अमेरिका को जेनेरिक दवाएँ और स्वास्थ्य उत्पादों का प्रमुख निर्यातक है। यहां टैरिफ वृद्धि से दवाओं की मांग कम हो सकती है।
• महंगाई और आपूर्ति श्रृंखला में विघटन : अमेरिका से आयात होने वाले उत्पादों पर टैरिफ वृद्धि से भारत में महंगाई हो सकती है। उदाहरण के तौर पर, क्रूड ऑयल, मशीनरी, और उच्च तकनीकी उत्पाद महंगे हो सकते हैं, जिससे भारतीय उपभोक्ताओं और उद्योगों पर वित्तीय दबाव पड़ेगा। इसके अलावा, आपूर्ति श्रृंखला में विघटन होगा, जो विभिन्न उद्योगों को प्रभावित कर सकता है, जैसे ऑटोमोटिव और तकनीकी उत्पाद।
• निवेश में कमी : अमेरिका से आने वाले निवेश पर भी असर पड़ सकता है। अगर व्यापार युद्ध बढ़ता है, तो विदेशी निवेशक भारत के बाजारों में निवेश करने में अनिच्छुक हो सकते हैं, क्योंकि व्यापारिक अनिश्चितता का स्तर बढ़ जाएगा। हालांकि, भारत अपनी नीतियों को सुधारने और निवेश को आकर्षित करने के लिए अन्य कदम भी उठा सकता है।

संभावित अवसर :


अमेरिका-भारत टैरिफ युद्ध भारत के लिए अपने व्यापारिक दृष्टिकोण को न केवल सुधारने, बल्कि वैश्विक बाजारों में खुद को स्थापित करने का भी एक अवसर प्रस्तुत करता है। जब अमेरिका भारतीय उत्पादों पर अधिक शुल्क लगाएगा और घरेलू उत्पादन की ओर बढ़ेगा, तो भारतीय कंपनियों के लिए यह एक विशाल अवसर बन सकता है कि वे सिर्फ अमेरिकी बाजार पर निर्भर रहने के बजाय दूसरे देशों से व्यापार बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करें। विशेष रूप से भारत के आईटी और फार्मास्युटिकल्स क्षेत्र में, जहां उच्च गुणवत्ता और किफायती सेवा की मांग दुनियाभर में बढ़ रही है, भारत न केवल अमेरिका के प्रतिस्थापन के रूप में उभर सकता है, बल्कि विकसित देशों और नई अर्थव्यवस्थाओं में भी अपनी स्थिति मजबूत कर सकता है।

भारत का सेवा क्षेत्र और विशेषकर आईटी और फार्मास्युटिकल्स क्षेत्र स्वतंत्रता प्राप्त करने की क्षमता रखता है। अगर भारत अमेरिका के साथ व्यापार में संतुलन स्थापित करता है, तो वह नई वैश्विक साझेदारियों को बढ़ावा देने में सक्षम होगा, जैसे कि यूरोप, मध्य पूर्व, और एशिया के अन्य देशों से, जिनके साथ भारत का व्यापारिक संबंध पहले से मजबूत हैं। इसके अतिरिक्त, भारत को अपने स्थानीय बाजार में उत्पादन बढ़ाने और नई निर्यात नीतियों के माध्यम से ग्लोबल सर्विस हब के रूप में अपनी पहचान बनानी होगी, ताकि यह विकसित देशों से कम निर्भर हो सके। इस बदलाव के परिणामस्वरूप भारत को आंतरिक बाजारों से सशक्त व्यापार और निवेश मिल सकता है, जिससे भारतीय कंपनियाँ दुनिया भर के नई और बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में अवसर पा सकती हैं।

संजय सक्सैना आगे की चुनौतियों के बारे में बताते है कि


यह भारत के लिए यह संभावित अवसर चुनौतीपूर्ण हो सकता है। अगर भारत को अमेरिकी बाजार से निर्भरता कम करने और अन्य देशों के साथ व्यापारिक संबंध मजबूत करने की आवश्यकता पड़ती है, तो इसे कई पहलुओं में चुनौती का सामना करना पड़ेगा।
• नए बाजारों में प्रवेश :अमेरिका भारत का एक महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार है, विशेष रूप से आईटी सेवाओं, फार्मास्युटिकल्स, और वस्त्र उद्योग के संदर्भ में। इन क्षेत्रों में अमेरिकी बाजार से बाहर निकलने का मतलब नए बाजारों में प्रवेश करना होगा, जहां प्रतिस्पर्धा अधिक हो सकती है। इसके लिए भारत को इन देशों के व्यापारिक नियमों और उपभोक्ता जरूरतों को समझना होगा, जो एक लंबा और चुनौतीपूर्ण प्रोसेस हो सकता है।
• बाजार का अनुकूलन : हर देश का अपना आर्थिक और सांस्कृतिक संदर्भ होता है, जिससे व्यापारिक रणनीतियों को अनुकूलित करना मुश्किल हो सकता है। उदाहरण के लिए, भारत की आईटी सेवाओं के लिए यूरोप या अफ्रीका में समान स्तर की मांग नहीं हो सकती, जितनी अमेरिका में होती है। इस स्थिति में भारत को अन्य देशों के लिए अपनी सेवाओं और उत्पादों को अनुकूलित करना होगा।
• लॉजिस्टिक और सप्लाई चेन : अन्य देशों के साथ व्यापार बढ़ाने के लिए भारत को अपनी लॉजिस्टिक और सप्लाई चेन को मजबूत करना होगा। अमेरिका से बाहर जाने पर परिवहन, वितरण और कस्टम नियमों को समझना और सुलझाना भी एक बड़ी चुनौती हो सकती है।
• मूल्य प्रतिस्पर्धा : कुछ देशों में भारत के सामानों और सेवाओं के लिए पहले से ही स्थापित प्रतिस्पर्धा हो सकती है। ऐसे में, भारत को अपनी उत्पादकता और गुणवत्ता को बनाए रखते हुए मूल्य प्रतिस्पर्धा में भी टिकना होगा।
• विदेशी निवेश और साझेदारी : अन्य देशों से व्यापार बढ़ाने के लिए भारत को नए विदेशी निवेशकों और साझेदारों को आकर्षित करना होगा। यह एक समय-संवेदनशील प्रक्रिया हो सकती है, जिसमें भारत को कूटनीतिक और आर्थिक संबंधों को मजबूत करना पड़ेगा।
इसलिए, अमेरिका के साथ व्यापारिक रिश्ते में किसी भी बदलाव के बाद भारत के लिए नए बाजारों में अपनी पैठ बनाना और उन बाजारों में मजबूती से खड़ा होना एक लंबी और चुनौतीपूर्ण यात्रा हो सकती है।

अमेरिका पर टैरिफ युद्ध का प्रभाव :


अमेरिका की अर्थव्यवस्था बहुत बड़ी और विविधीकृत है, लेकिन भारत से आयातित सामान और सेवाओं पर टैरिफ बढ़ने से उसे भी कुछ नुकसान हो सकता है।
• आयात की लागत में वृद्धि : अमेरिका भारत से विभिन्न प्रकार के उत्पाद आयात करता है, जैसे वस्त्र, फार्मास्युटिकल्स, इंजीनियरिंग उत्पाद, और आईटी सेवाएँ। अगर इन पर 10%-25% टैरिफ लगते हैं, तो अमेरिकी उपभोक्ताओं और व्यवसायों के लिए इन उत्पादों की लागत में वृद्धि हो सकती है।
• फार्मास्युटिकल्स और वस्त्र : अमेरिका को इन उत्पादों के आयात पर उच्च शुल्क देना होगा, जो उसे महंगा पड़ेगा।
• सेवा क्षेत्र पर प्रभाव : भारत का आईटी और बीपीओ क्षेत्र अमेरिका के लिए एक महत्वपूर्ण सेवा है। अगर भारत की सेवाओं पर शुल्क बढ़ता है, तो अमेरिकी कंपनियों को महंगा पड़ेगा। हालांकि, आईटी सेवाएँ पहले से भारत के लिए मुख्य निर्यात उत्पाद हैं, और अमेरिकी कंपनियाँ यह महसूस कर सकती हैं कि भारत में काम करना अधिक किफायती है।

रुपया डॉलर पर प्रभाव और भारत की मुद्रा संकट :


टैरिफ युद्ध का सबसे बड़ा प्रभाव भारतीय रुपया पर पड़ सकता है। यदि अमेरिका से कम निर्यात होने के कारण भारत का व्यापार घाटा बढ़ता है, तो रुपया का अवमूल्यन हो सकता है। इसके अलावा, भारत के आयात शुल्क में वृद्धि के कारण महंगाई भी बढ़ सकती है। इससे भारतीय उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति घट सकती है और जीवन यापन की लागत में वृद्धि हो सकती है।

आयात में कमी :


यदि अमेरिका भारत से आयातित वस्त्र, फार्मास्युटिकल्स, आईटी सेवाएं, या अन्य उत्पादों पर शुल्क बढ़ा देता है (टैरिफ युद्ध के संदर्भ में), तो अमेरिका में इन भारतीय उत्पादों की मांग में कमी हो सकती है। इसका मतलब यह है कि अमेरिका के उपभोक्ता या उद्योग भारतीय उत्पादों का कम आयात करेंगे, क्योंकि इन पर लगने वाले शुल्क से कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे अमेरिकी बाजार में इन उत्पादों की प्रतिस्पर्धिता कम हो जाएगी।

घरेलू उत्पादन में वृद्धि :


अमेरिका अपनी घरेलू उत्पादन क्षमता को बढ़ा सकता है, ताकि आयात पर निर्भरता कम हो और उसे व्यापारिक असंतुलन (trade deficit) से निपटने में मदद मिल सके। उदाहरण के लिए, अमेरिका अपनी कार निर्माण, फार्मास्युटिकल्स, और टेक्नोलॉजी सेक्टर में उत्पादन बढ़ाने की कोशिश कर सकता है। इसके लिए, अमेरिका अपनी कंपनियों को प्रेरित कर सकता है कि वे अधिक उत्पादन करें या खुद के माल की आपूर्ति करने के लिए नए निवेश को आकर्षित करें।
इस प्रकार, जब अमेरिका अपनी आयात में कमी लाता है और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देता है, तो इसका उद्देश्य यह होगा कि अमेरिका को विदेशी देशों से आयात कम करने का मौका मिले और वह अपने आंतरिक उद्योगों को प्रोत्साहित कर सके। इससे अमेरिका का व्यापार घाटा घट सकता है और वह अपने घरेलू उत्पादन में आत्मनिर्भर हो सकता है।

भारत के संदर्भ में इसका प्रभाव :


अगर अमेरिका अपने घरेलू उत्पादन को बढ़ाता है और भारत से आयात कम करता है, तो भारत के लिए यह चुनौतीपूर्ण हो सकता है क्योंकि वह अमेरिकी बाजार में अपनी उपस्थिति और निर्यात को खो सकता है। ऐसे में, भारत को अन्य देशों के साथ अपने व्यापारिक रिश्ते मजबूत करने और नए बाजारों में अपनी उपस्थिति बढ़ाने की जरूरत होगी, जैसा कि पहले चर्चा की गई है।

भारत के लिए विशेष आर्थिक चुनौतियाँ :


• रक्षा खरीद और अंतर्राष्ट्रीय रणनीति :
भारत की रक्षा खरीद भी इस युद्ध से प्रभावित हो सकती है। अमेरिका पर रक्षा उत्पादों की आयात निर्भरता के कारण, टैरिफ बढ़ने से भारत को अधिक खर्च उठाना पड़ सकता है। इसके अलावा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी भारत के साथ सहयोग में रुकावटें आ सकती हैं, जो ISRO के अंतरिक्ष कार्यक्रमों पर असर डाल सकता है।

• स्वर्ण (सोने) की कीमतों पर असर :
यदि टैरिफ युद्ध बढ़ता है, तो भारत में स्वर्ण कीमतों में उतार-चढ़ाव हो सकता है। रुपये का अवमूल्यन स्वर्ण को अधिक महंगा बना सकता है, जिससे निवेशकों के लिए स्वर्ण का आकर्षण बढ़ सकता है।

अमेरिका और भारत के औसत आय में अंतर :


अमेरिका और भारत के बीच औसत आय में अंतर बहुत बड़ा है, और यह अंतर टैरिफ युद्ध के प्रभाव को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आइए इसे विस्तार से समझें:

अमेरिका में औसत प्रति व्यक्ति आय लगभग 85,000 डॉलर के आसपास है (2025 के अनुमान के अनुसार)। यह भारत की प्रति व्यक्ति आय से लगभग 34 गुना अधिक है। इसका मतलब है कि अमेरिकी उपभोक्ताओं के पास अपने खर्चों और महंगाई को सहन करने की अधिक क्षमता है।

भारत में औसत प्रति व्यक्ति आय लगभग 2,500 डॉलर के आसपास है (2025 के अनुमान के अनुसार)। यह संख्या अमेरिका के मुकाबले बहुत कम है, और इसका मतलब है कि भारतीयों के पास अमेरिका के मुकाबले कम आर्थिक लचीलापन है। जब कीमतें बढ़ती हैं, तो भारतीय उपभोक्ता इसे सहन करने में अधिक कठिनाई महसूस करते हैं।

कौन अधिक प्रभावित होगा?


भारत में टैरिफ युद्ध का असर अधिक गहरा होगा क्योंकि:
• कम आय और अधिक महंगाई : भारत में जहां पहले से ही औसत आय कम है, वहीं आयातित वस्त्र, तेल, फार्मास्युटिकल्स, और अन्य उच्च तकनीकी उत्पादों के महंगे होने से भारतीयों पर दबाव और बढ़ेगा।
• मध्यम और निम्न आय वर्ग : भारत के गरीब और मध्यम वर्ग के लोग टैरिफ युद्ध से सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। उनकी जीवनशैली पर इसका सीधा असर पड़ेगा क्योंकि उनकी खरीद शक्ति बहुत सीमित है।
• भारत के व्यवसायों पर दबाव : भारत के व्यवसाय जो अमेरिका से आयातित उत्पादों पर निर्भर करते हैं, उन्हें भी महंगाई और आपूर्ति श्रृंखला में विघटन का सामना करना पड़ेगा।

सामाजिक प्रभाव और व्यवसायों पर असर :


• व्यवसायों पर दबाव :
भारत के व्यवसाय, खासतौर पर सेवा क्षेत्र (जैसे आईटी और फार्मास्युटिकल्स) और विनिर्माण क्षेत्र में अमेरिकी बाजार पर निर्भर हैं। अगर अमेरिका ने अपनी आयात नीतियों को कड़ा कर लिया तो भारतीय कंपनियों के लिए इन क्षेत्रों में व्यापार में गिरावट आ सकती है। यह न केवल भारतीय कंपनियों को आर्थिक रूप से प्रभावित करेगा, बल्कि इससे लाखों नौकरियां भी प्रभावित हो सकती हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहां अमेरिकी कंपनियों का निवेश और व्यापारिक रिश्ते गहरे हैं।

नौकरियों पर असर :


आईटी और टेक सेक्टर :
भारतीय आईटी सेक्टर, जो मुख्य रूप से अमेरिकी कंपनियों के लिए काम करता है, इस युद्ध से प्रभावित हो सकता है। भारतीय कंपनियाँ जो अमेरिकी कंपनियों के साथ अनुबंध करती हैं, उन्हें लागत बढ़ने का सामना करना पड़ सकता है। इसके परिणामस्वरूप भारत में उच्च-स्तरीय आईटी नौकरियों में कमी आ सकती है।

फार्मास्युटिकल्स :
भारत फार्मास्युटिकल्स का एक प्रमुख निर्यातक है, और अगर टैरिफ युद्ध बढ़ता है, तो अमेरिकी बाजार में भारतीय दवाओं की कीमतों में वृद्धि हो सकती है। प्रतिस्पर्धी देशों की दवाइयां अधिक बिकेंगी और इसका असर भारतीय कंपनियों के मुनाफे पर पड़ेगा और असर के रूप में इस क्षेत्र में नौकरियों के सृजन में कमी हो सकती है।

वस्त्र उद्योग :
भारत का वस्त्र उद्योग भी अमेरिकी बाजार पर निर्भर है। अगर अमेरिकी टैरिफ बढ़ाते हैं, तो भारत का निर्यात घटेगा और इसमें लगे श्रमिकों को प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

भारत के लिए अवसर और चुनौतियां :


वैश्विक व्यापार में बदलाव :
टैरिफ युद्ध के कारण, भारत को अन्य देशों के साथ अपने व्यापारिक रिश्ते बढ़ाने का अवसर मिल सकता है। खासतौर पर, भारत अपने वस्त्र, फार्मास्युटिकल्स और आईटी सेवाओं के निर्यात को बढ़ा सकता है, लेकिन यह वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा बढ़ा देगा।

उभरते बाजार :
भारत को उन देशों के साथ व्यापार बढ़ाने की आवश्यकता होगी जो अमेरिका के साथ टैरिफ युद्ध का हिस्सा नहीं हैं, जैसे कि यूरोपीय संघ, अफ्रीकी देश, और एशिया के अन्य उभरते हुए बाजार।

चीनी प्रतिस्थापन :
यदि चीन से अमेरिकी कंपनियाँ अपना उत्पादन स्थानांतरित करती हैं, तो भारत को इसका लाभ हो सकता है, लेकिन यह केवल तभी संभव होगा जब भारत अपनी मैन्युफैक्चरिंग क्षमता को मजबूत करे और अधिक प्रतिस्पर्धी बने।

भारत और अन्य देशों की स्थिति :


भारत को अन्य देशों से प्रतिस्पर्धा का भी सामना करना पड़ सकता है जो अमेरिका के साथ व्यापारिक रिश्ते में समान परिस्थितियों का सामना कर रहे हैं।

• कुछ देश जो अमेरिकी नीतियों का अनुसरण करते हैं :
चीन, रूस, और यूरोपीय संघ जैसे देश, जो अमेरिका के व्यापारिक निर्णयों से प्रभावित हो सकते हैं, भारत के प्रतिस्पर्धी बन सकते हैं। यह भारत के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकता है, क्योंकि इन देशों की अपनी मजबूत घरेलू नीतियां और वैश्विक बाजार में प्रभावशाली स्थिति है।

• भारत और इज़राइल के रिश्ते :
भारत और इज़राइल के बीच ऐतिहासिक और रणनीतिक रिश्ते हैं, खासकर रक्षा और तकनीकी क्षेत्रों में। इज़राइल भारत का एक महत्वपूर्ण भागीदार है, और इस युद्ध का असर इस रिश्ते पर भी पड़ सकता है:

भारतीय अर्थव्यवस्था :


भारत और अमेरिका के बीच टैरिफ युद्ध की स्थिति में, भारतीय समाज और अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ेगा। विशेषकर निम्न और मध्यवर्गीय परिवारों को बढ़ी हुई महंगाई का सामना करना पड़ेगा, और व्यवसायों के लिए एक आर्थिक दबाव पैदा होगा। वहीं, अगर भारत अपनी वैश्विक व्यापार नीति में सुधार करता है और नए बाजारों की ओर अग्रसर होता है, तो यह एक अवसर भी हो सकता है। लेकिन इसमें समय लगेगा और बहुत सी चुनौतियाँ होंगी, जिनका समाधान रणनीतिक दृष्टिकोण से किया जाना होगा।

वैश्विक परिपेक्ष्य :


• यूरोपीय संघ (EU) :
यूरोपीय संघ अमेरिका का एक प्रमुख व्यापारिक भागीदार है और यूरोपीय देशों के लिए अमेरिकी व्यापारिक नीतियों का पालन करना अनिवार्य हो सकता है। अगर अमेरिका और भारत के बीच व्यापार युद्ध बढ़ता है, तो यूरोपीय संघ भी अमेरिका के साथ समन्वय करने के लिए भारत के साथ व्यापार में कटौती कर सकता है, विशेष रूप से यदि भारत के साथ व्यापार बढ़ाने से यह असंतुलन और बढ़ता है। यूरोपीय देशों को यह भी देखना होगा कि अमेरिका के साथ व्यापारिक असंतुलन को कैसे संभालें, और अगर भारत के साथ व्यापार बढ़ाने से यह असंतुलन और बढ़ता है, तो वे भारत के साथ अपने व्यापारिक रिश्तों को प्रभावित कर सकते हैं।

• चीन :
चीन और अमेरिका के बीच पहले से ही एक व्यापारिक युद्ध जारी है, और अगर भारत और अमेरिका के बीच टैरिफ युद्ध बढ़ता है, तो चीन को भारत के लिए एक प्रतिस्पर्धी बाजार के रूप में अवसर मिल सकता है। हालांकि, अगर व्यापार युद्ध के दौरान भारत और चीन के बीच व्यापार में वृद्धि होती है, तो इसका सीधा लाभ चीन को हो सकता है, क्योंकि चीन का विशाल निर्माण और आपूर्ति श्रृंखला नेटवर्क पहले से ही वैश्विक व्यापार में प्रमुख भूमिका निभा रहा है। जबकि भारत के पास सस्ता श्रम है, फिर भी उत्पादन, तकनीकी क्षमताओं, और आपूर्ति श्रृंखला में चीन की स्थिति मजबूत है। ऐसे में, यदि भारत अमेरिका से अपना व्यापार घटाता है और चीन के साथ व्यापार बढ़ाता है, तो चीन इससे अधिक लाभान्वित हो सकता है। विशेष रूप से, चीन को भारत के साथ अपनी निर्माण और निर्यात क्षमता को और बढ़ाने का मौका मिल सकता है, जबकि भारत को अपेक्षाकृत कम लाभ हो सकता है, क्योंकि भारत का उद्योग अधिकतर कच्चे माल और कम-तकनीकी उत्पादों पर आधारित है, और चीनी उत्पाद पहले से ही भारतीय बाजार में प्रतिस्पर्धी हैं।

•जापान :
जापान अमेरिका का रणनीतिक साझेदार है और उसकी नीतियाँ अमेरिका के अनुकूल हो सकती हैं। हालांकि जापान भारत के साथ व्यापार में सक्रिय है, लेकिन यदि भारत और अमेरिका के बीच व्यापार युद्ध बढ़ता है, तो जापान अपने रिश्ते को पुनः परिभाषित कर सकता है। जापान को यह देखना होगा कि कहीं अमेरिकी नीतियाँ और दवाब भारत के साथ जापान के रिश्तों को भी प्रभावित ना करें, जिससे जापान भारत के साथ अपने कारोबार को सीमित करने पर विचार कर सकता है। विशेष रूप से ऑटोमोबाइल और तकनीकी क्षेत्र में यह प्रभाव अधिक महसूस हो सकता है, जहां जापान को अमेरिका से प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ सकता है।

• कनाडा :
कनाडा और अमेरिका के रिश्ते अत्यधिक घनिष्ठ हैं, और कनाडा अमेरिका की नीतियों को प्राथमिकता देता है। पहले से भी भारत और कनाडा के रिश्तों में खटास चलती आ रही है। यदि अमेरिका और भारत के बीच व्यापारिक संघर्ष बढ़ता है, तो कनाडा भी भारत से अपने व्यापारिक रिश्ते को घटा सकता है, खासतौर पर ऐसे समय में जब उसे अमेरिका के साथ अपने कारोबारी रिश्ते को प्राथमिकता देनी होगी। हालांकि कनाडा भारत के लिए एक महत्वपूर्ण भागीदार है, लेकिन अमेरिकी दबाव में वह भारतीय बाजार से अपनी निर्भरता घटा सकता है।

• ऑस्ट्रेलिया :
ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के बीच सामरिक और व्यापारिक रिश्ते मजबूत हैं, और जब अमेरिका के साथ व्यापारिक असंतुलन बढ़ेगा, तो ऑस्ट्रेलिया भी भारत के साथ अपने व्यापारिक रिश्तों में कटौती कर सकता है। विशेषकर कृषि, खनिज और ऊर्जा उत्पादों के क्षेत्र में ऑस्ट्रेलिया की प्राथमिकता अमेरिका के प्रति हो सकती है, और भारत से संबंधों में उतनी सक्रियता नहीं हो सकती।

• सऊदी अरब और अन्य खाड़ी देश :
सऊदी अरब और अन्य खाड़ी देशों के साथ भारत के रिश्ते काफी मजबूत हैं, खासकर ऊर्जा और श्रमिकों के संदर्भ में। लेकिन यदि अमेरिका और भारत के बीच व्यापार युद्ध बढ़ता है और भारत के साथ व्यापार में समस्याएँ उत्पन्न होती हैं, तो सऊदी अरब और अन्य खाड़ी देश जो अमेरिकी नीतियों के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़े हैं, वे भारत से अपने व्यापारिक रिश्ते में कटौती कर सकते हैं। यह विशेष रूप से पेट्रोलियम उत्पादों, तेल और गैस की खरीद पर असर डाल सकता है, क्योंकि सऊदी अरब और खाड़ी देशों के साथ भारत का व्यापार महत्वपूर्ण है।

• ब्राजील :
ब्राजील और भारत के बीच कृषि उत्पादों, खनिजों और अन्य वस्त्रों का व्यापार काफी सक्रिय है, लेकिन अगर भारत और अमेरिका के बीच व्यापार युद्ध बढ़ता है, तो ब्राजील को अपनी प्राथमिकताएँ तय करनी होंगी। अगर अमेरिका भारत पर आर्थिक दबाव डालता है, तो ब्राजील भी अपनी नीति में बदलाव कर सकता है, खासतौर पर अगर वह अपने आर्थिक रिश्ते अमेरिका के साथ मजबूत करना चाहता है।

• वियतनाम और अन्य एशियाई देश :
एशिया में भारत के लिए कुछ महत्वपूर्ण व्यापारिक साझेदार हैं, जैसे वियतनाम, थाईलैंड, और मलेशिया। हालांकि ये देश भारत के साथ व्यापार बढ़ाने के इच्छुक हो सकते हैं, लेकिन अमेरिका के साथ उनके अपने रिश्ते और व्यापारिक नीतियाँ उन्हें भारत से दूरी बनाने पर मजबूर कर सकती हैं, विशेष रूप से यदि अमेरिकी नीतियाँ उन्हें भारत के साथ रिश्ते में सुधार करने से रोकती हैं।

भारत पर इसके सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव :


• भारत के व्यापारिक रिश्तों में कमी :: अमेरिका और अन्य देशों के साथ टैरिफ युद्ध बढ़ने से भारत को वैश्विक व्यापारिक नेटवर्क में अपनी स्थिति को फिर से परिभाषित करना होगा। अन्य देशों का भारत से व्यापार में कमी आने से भारतीय निर्यातकों और उत्पादकों पर वित्तीय दबाव पड़ेगा।
• रोजगार संकट :: इससे भारत में रोजगार संकट बढ़ सकता है, खासतौर पर उन क्षेत्रों में जहां विदेशों से आयात पर निर्भरता अधिक है। आईटी, फार्मास्युटिकल्स, वस्त्र उद्योग और ऑटोमोटिव उद्योग में बड़े पैमाने पर नौकरियों पर असर पड़ सकता है।
• भारत के राजनैतिक रिश्ते : व्यापारिक रिश्तों में कमी आने के कारण भारत को वैश्विक राजनीति में एक कठिन स्थिति का सामना करना पड़ सकता है। साथ ही, अन्य देशों के साथ अपने राजनैतिक और रक्षा रिश्तों को नया स्वरूप देने की आवश्यकता हो सकती है, जैसे इज़राइल और रूस के साथ भारत के रिश्ते। अमेरिका और भारत के बीच व्यापार युद्ध बढ़ने से न केवल दोनों देशों के आर्थिक रिश्तों पर असर पड़ेगा, बल्कि यह वैश्विक स्तर पर भी प्रभाव डाल सकता है। अमेरिका के दबाव में कुछ देश भारत से अपने व्यापारिक रिश्ते घटा सकते हैं, जिससे भारत को अपनी वैश्विक स्थिति और व्यापारिक रणनीति को फिर से परिभाषित करना होगा। यह चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन भारत के लिए यह समय है कि वह नई रणनीतियों के साथ वैश्विक व्यापार में अपने स्थान को पुनः मजबूत करने की दिशा में कदम बढ़ाए।

संजय सक्सैना के अनुसार आगे क्या हो सकता है :


अमेरिका और भारत के बीच टैरिफ युद्ध का असर दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर गहरा पड़ेगा, लेकिन भारत के लिए यह अत्यधिक चुनौतीपूर्ण हो सकता है। भारत के निर्यात-निर्भर उद्योगों और सेवा क्षेत्र पर इसका गहरा असर पड़ेगा, जबकि अमेरिका को आयात पर बढ़े हुए शुल्क और सेवा क्षेत्र से कुछ नुकसान होगा। अमेरिका का तेल नीति और रूस से भारत के तेल आयात के मुद्दे ने इस युद्ध को और जटिल बना दिया है।
भारत को व्यापार में असंतुलन, आयात-निर्भरता, और रूस से तेल आयात जैसे मुद्दों के कारण अधिक नुकसान हो सकता है। हालाँकि, दोनों देशों के लिए यह एक अवसर में भी परिवर्तित हो सकता है अगर वे इसे अपनी व्यापार नीति में सुधार करने, घरेलू उत्पादन बढ़ाने और वैश्विक व्यापारिक साझेदारियों को सुदृढ़ करने के रूप में देखें।

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