तिथि विवरण:
दशमी तिथि समाप्त: 5 जून 2025, देर रात 2:17 बजे
एकादशी तिथि प्रारंभ: 5 जून 2025, देर रात 2:17 बजे से
एकादशी तिथि समाप्त: 6 जून 2025, सुबह 4:49 बजे
शास्त्रीय निर्णय:
द्वादशी की वृद्धि के कारण शास्त्रों और आचार्यों (माधव, नारद, हेमाद्रि मत) के अनुसार, एकादशी का व्रत उस दिन करना चाहिए जब सूर्योदय से पूर्व द्वादशी की घड़ी पूर्ण हो। तदनुसार:
गृहस्थों (स्मार्त) के लिए व्रत: 6 जून 2025, शुक्रवार
वैष्णवों (संन्यासी, ISKCON अनुयायी, दीक्षित, ब्रह्मचारी) के लिए व्रत: 7 जून 2025, शनिवार
निर्जला एकादशी का महत्व:
निर्जला एकादशी सभी 24 एकादशियों में सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। जो लोग वर्षभर एकादशी व्रत नहीं कर पाते, वे केवल इस एक दिन का व्रत करके सभी एकादशियों का फल प्राप्त कर सकते हैं। इस व्रत में जल तक ग्रहण नहीं किया जाता, इसलिए इसे निर्जला एकादशी कहा जाता है। यह व्रत पापों का नाश कर वैकुंठ प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है।
कथा का सार:
महाभारत और पद्मपुराण में वर्णित इस व्रत की कथा पांडवों के बलशाली भाई भीमसेन से जुड़ी है। भीम, जो भोजनप्रिय थे, के लिए हर माह एकादशी व्रत करना कठिन था। उन्होंने महर्षि व्यास से उपाय पूछा। व्यासजी ने कहा, "हे भीम! ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी को निर्जल व्रत करो। यह कठिन है, परंतु इसके फलस्वरूप सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त होगा और पाप नष्ट होंगे।" भीम ने इस व्रत को स्वीकार किया, जिससे यह भीमसेनी एकादशी के नाम से भी प्रसिद्ध हुई।
व्रत के फल:
सभी एकादशियों का पुण्य प्राप्त होता है।
पापों का नाश और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
यह व्रत दान, जप, तप और संयम का प्रतीक है।
पूजन विधि:
व्रत से एक दिन पूर्व सात्विक भोजन करें।
प्रातः स्नान कर भगवान विष्णु की पूजा करें।
पूरे दिन जल और अन्न का त्याग करें (शारीरिक सामर्थ्य अनुसार)।
संध्या में तुलसी पत्र से भगवान विष्णु को अर्पण करें।
अगले दिन उचित समय पर पारण करें।
आचार्य अनुज - गृहस्थों के लिए 6 जून 2025 और वैष्णवों के लिए 7 जून 2025 को यह पवित्र व्रत करें। भगवान विष्णु की कृपा से जीवन में सुख, शांति और मोक्ष की प्राप्ति हो।