सात दल, सात चेहरे: आधिकारिक ऐलान
प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) द्वारा 11 मई को जारी आधिकारिक प्रेस विज्ञप्ति में कहा गया:
"ऑपरेशन सिंदूर और सीमापार आतंकवाद के संदर्भ में भारत सरकार की ज़ीरो टॉलरेंस नीति को अंतरराष्ट्रीय समुदाय के समक्ष रखने के उद्देश्य से सात सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडलों का गठन किया गया है। ये दल अमेरिका, फ्रांस, रूस, यूएई, इंडोनेशिया, केन्या, और ब्राज़ील जैसे महत्वपूर्ण देशों की यात्रा करेंगे।"
इन प्रतिनिधिमंडलों की अध्यक्षता निम्नलिखित सांसद करेंगे:
डॉ. शशि थरूर (कांग्रेस)
रविशंकर प्रसाद (भाजपा)
बैजयंत जय पांडा (भाजपा)
कनिमोझी करुणानिधि (DMK)
संजय कुमार झा (जदयू)
सुप्रिया सुले (NCP-शरद पवार)
श्रीकांत शिंदे (शिवसेना-शिंदे गुट)
(स्रोत: PIB Release, ANI)
कांग्रेस का एतराज़: 'हमने शशि थरूर का नाम नहीं दिया'
प्रतिनिधिमंडलों की सूची सार्वजनिक होने के कुछ घंटों के भीतर ही कांग्रेस ने यह कहते हुए विवाद खड़ा कर दिया कि उन्होंने शशि थरूर का नाम सरकार को भेजा ही नहीं था।
कांग्रेस के संचार प्रमुख जयराम रमेश ने एक्स (Twitter) पर लिखा:
“10 मई की सुबह संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और विपक्ष के नेता राहुल गांधी से संपर्क कर चार सांसदों के नाम मांगे थे। पार्टी ने उसी दिन दोपहर तक चार नाम भेजे:
आनंद शर्मा
गौरव गोगोई
डॉ. सैयद नासिर हुसैन
राजा बरार
इनमें शशि थरूर का नाम नहीं था।”
शशि थरूर की प्रतिक्रिया: 'राष्ट्रीय हित सर्वोपरि'
तिरुवनंतपुरम से सांसद डॉ. शशि थरूर, जो संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि रह चुके हैं और विदेश नीति पर पुस्तकें लिख चुके हैं, ने इस विवाद पर संयमित प्रतिक्रिया दी। उन्होंने एक्स पर लिखा:
"भारत सरकार द्वारा मुझे इस मिशन के लिए चुने जाने को मैं सम्मान की दृष्टि से देखता हूँ। जब भी राष्ट्रीय हित की बात होगी और मेरी सेवाओं की आवश्यकता होगी, मैं पीछे नहीं हटूंगा।"
बीजेपी का हमला: 'कांग्रेस नेतृत्व में अंतर्विरोध'
कांग्रेस की प्रतिक्रिया के बाद बीजेपी नेताओं ने राहुल गांधी और कांग्रेस नेतृत्व पर तीखा प्रहार किया।
बीजेपी आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने लिखा:
"शशि थरूर की वाकपटुता, कूटनीतिक अनुभव और वैश्विक समझ निर्विवाद है। फिर कांग्रेस और खासकर राहुल गांधी ने उनका नाम खुद क्यों नहीं दिया? क्या यह राजनीतिक असुरक्षा, ईर्ष्या या पार्टी हाईकमान से बेहतर दिखने वालों के प्रति असहिष्णुता है?"
हिमंता बिस्वा सरमा का निशाना: 'राष्ट्रीय सुरक्षा पर राजनीति नहीं'
असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने भी इस मामले में प्रतिक्रिया दी और बिना नाम लिए कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई पर तंज कसा। उन्होंने लिखा:
“कांग्रेस की ओर से नामित एक सांसद वह हैं जिन्होंने कथित तौर पर पाकिस्तान में दो हफ्ते रहने को खारिज नहीं किया। ऐसे लोगों को क्या हम राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों पर प्रतिनिधि बना सकते हैं?”
सरमा ने विपक्ष के नेता राहुल गांधी से आग्रह किया कि वे पार्टी राजनीति से ऊपर उठकर देशहित में जिम्मेदार चयन करें।
विश्लेषण: मुद्दा प्रतिनिधित्व का या मान्यता का?
यह विवाद महज नामांकन से जुड़ा नहीं है बल्कि इससे कहीं ज़्यादा आंतरिक राजनीतिक असंतुलन और रणनीतिक संदेश जुड़ा हुआ है।
कांग्रेस यदि खुद शशि थरूर जैसा अनुभवी सांसद नहीं भेज रही है, तो यह उसकी आंतरिक प्राथमिकताओं और नेतृत्व शैली पर सवाल खड़े करता है। वहीं, केंद्र सरकार यदि विपक्ष के 'अनौपचारिक' नाम को प्रतिनिधिमंडल में शामिल कर रही है, तो यह रणनीतिक संतुलन और वैश्विक मंच पर भारत की आवाज को प्रभावशाली बनाने की योजना भी हो सकती है।
डॉ. शशि थरूर का नाम सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल में शामिल किया जाना, जहां भारत के ज़ीरो टॉलरेंस रुख को वैश्विक मंचों पर रखने की कोशिश है, वहीं यह राजनीतिक दलों के बीच गहराते विश्वास संकट और नेतृत्व में असहमति का भी संकेत देता है।
यह घटनाक्रम भारतीय लोकतंत्र की जटिलता को दर्शाता है, जहां राष्ट्रीय मुद्दों पर भी राजनीति की छाया पड़ती है