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Udaipur
/September 19, 2025
भारतीय वैज्ञानिकों ने एक बड़ी तकनीकी छलांग लगाते हुए अगली पीढ़ी की ऑप्टोइलेक्ट्रॉनिक तकनीकों की राह आसान कर दी है। नैनो और मृदु पदार्थ विज्ञान केंद्र (CeNS), बेंगलुरु के शोधकर्ताओं ने यह पता लगाया है कि "चिरल पेरोव्स्काइट फिल्में" कैसे चरण-शुद्ध और विशेष दिशा में क्रिस्टलीकृत होती हैं। यह खोज वृत्ताकार ध्रुवीकृत प्रकाश डिटेक्टरों (CPL डिटेक्टर), स्पिनट्रॉनिक्स और फोटोनिक सिनेप्स जैसे हाईटेक उपकरणों के निर्माण में क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है।
"वैज्ञानिकों ने चिरैलिटी की ताकत से खोला अगली पीढ़ी की ऑप्टोइलेक्ट्रॉनिक्स का रास्ता" | Photo Source : PIB
विज्ञान
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वैज्ञानिकों ने चिरैलिटी की ताकत से खोला अगली पीढ़ी की ऑप्टोइलेक्ट्रॉनिक्स का रास्ता
क्या है चिरैलिटी और क्यों है यह महत्वपूर्ण?
चिरैलिटी – यानी किसी वस्तु का अपने दर्पण प्रतिबिंब पर अध्यारोपित न हो पाना – प्रकृति में हर जगह मौजूद है, चाहे वो DNA की सर्पिल संरचना हो या आकाशगंगाओं की घुमावदार बनावट। लेकिन अब यह अवधारणा केवल बायोलॉजी तक सीमित नहीं रही – यह मटेरियल साइंस और क्वांटम टेक्नोलॉजी में भी अपनी जगह बना रही है।
चिरल पदार्थ प्रकाश और इलेक्ट्रॉनों के साथ ऐसी अंतःक्रियाएं कर सकते हैं जो सामान्य सामग्री नहीं कर पाती। यही गुण इन्हें भविष्य की स्पिन आधारित कंप्यूटिंग, सेंसिंग डिवाइसेज़ और क्वांटम ऑप्टोइलेक्ट्रॉनिक्स में बेहद खास बनाते हैं।
परंपरागत चिरल सामग्री बनाम नई खोज
अब तक, ज़्यादातर चिरल सामग्री कार्बनिक रही हैं – जो कि खराब चार्ज ट्रांसपोर्ट के चलते ऑप्टोइलेक्ट्रॉनिक डिवाइसों में सीमित उपयोगी रही हैं। लेकिन भारतीय वैज्ञानिकों ने हैलाइड पेरोव्स्काइट्स – जो कि एक खास तरह के क्रिस्टलीय पदार्थ हैं – को चिरल अणुओं के साथ मिलाकर बेहतर प्रदर्शन वाली चिरल पेरोव्स्काइट फिल्में तैयार की हैं।
कैसे हुआ यह क्रांतिकारी विकास?
शोधकर्ताओं ने (R/S-MBA)₂CuBr₄ नामक पदार्थ की पतली फिल्मों का अध्ययन किया और पाया कि:
_क्रिस्टलीकरण प्रक्रिया वायु-फिल्म इंटरफेस से शुरू होती है और नीचे की ओर फैलती है।
_यदि प्रोसेसिंग के दौरान विलायक (solvent) को ठीक से नियंत्रित न किया जाए, तो अवांछित 1D अशुद्ध चरण (impurity phases) बन सकते हैं, जिससे डिवाइस की गुणवत्ता घट सकती है।
_टीम ने यह भी दिखाया कि वैक्यूम तकनीक और सही सॉल्वेंट का चयन इन अशुद्धियों को रोका जा सकता है।
उन्होंने दो सप्ताह तक फिल्म के क्रिस्टल विकास की निगरानी की और यह समझा कि कैसे छोटे-छोटे कण व्यवस्थित होकर उच्च गुणवत्ता की फिल्मों में बदलते हैं।
आगे का रास्ता: भारत को मिलेगी तकनीकी बढ़त?
इस रिसर्च ने चिरल पेरोव्स्काइट फिल्मों को सटीक तरीके से बनाने की एक व्यवस्थित रणनीति दे दी है। अब CeNS की टीम इन्हीं फिल्मों पर आधारित फोटोडिटेक्टर बनाने पर काम कर रही है।
यह खोज न केवल भारत की वैज्ञानिक क्षमता को दर्शाती है, बल्कि देश के अर्धचालक निर्माण और क्वांटम ऑप्टोइलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर भी एक मजबूत कदम है।