गाँव की एक बुजुर्ग महिला, जिनकी उम्र लगभग 70 वर्ष है, ने बताया, "पहले के समय में भी तपस्या होती थी, लेकिन आज का समय बदल गया है। पहले मेहनत ज्यादा थी, पानी दूर से लाना पड़ता था, गोबर-डांगरे का काम होता था। आजकल सब कुछ आसान है, फिर भी सुख-शांति सबसे बड़ी तपस्या है।" उन्होंने साध्वी शालिनी नन्द जी महाराज की इस ‘सात धूणा तपस्या’ की प्रशंसा करते हुए कहा कि गाँव वाले पूरे उत्साह से इस पुण्य कार्य में सहयोग कर रहे हैं।
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मुन्नी देवी, जो गाँव की बेटी हैं, ने कहा, "हम साध्वी जी की परिक्रमा और सेवा में जुटे हैं। उनकी ‘सात धूणा तपस्या’ से हमें प्रेरणा मिलती है। भजन-कीर्तन से मन को शांति मिलती है, और हमारी कामना है कि हमारे घरों में सुख-शांति बनी रहे।" गाँव वाले बताते हैं कि यह तपस्या न केवल आध्यात्मिक उन्नति के लिए है, बल्कि परिवार और समाज में शांति व समृद्धि के लिए भी की जा रही है।
एक अन्य बुजुर्ग ने हँसते हुए कहा, "हम तो राम के नाम में मस्त हैं। बहू-बेटे सब अपने हैं, बस सुख-शांति चाहिए। पहले का समय और था, अब तो ऐश है, फिर भी साध्वी जी की तपस्या और भजन-कीर्तन से मन को सुकून मिलता है।" गाँव में सुबह-शाम आरती और भजन का आयोजन हो रहा है, जिसमें पूरा गाँव बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रहा है।
गाँववाले यह भी कहते हैं कि साध्वी शालिनी नन्द जी महाराज की ‘सात धूणा तपस्या’ और भजन-कीर्तन से गाँव में सकारात्मक माहौल बना है, और परिवारों में आपसी प्रेम और शांति बढ़ी है। एक बुजुर्ग ने भावुक होते हुए कहा, "सुख-शांति ही सबसे बड़ी दौलत है। पैसा तो आता-जाता रहता है, लेकिन घर में शांति हो, तो सब कुछ है।"
उचाना खुर्द के लोग इस तपस्या और भक्ति के माहौल में एकजुट होकर सहयोग कर रहे हैं। गाँव की दादी, चाची, ताई और बहनें सभी इस पुण्य कार्य में शामिल हैं।