राज्यपाल ने कहा, "पर्यावरण की समस्या कोई नैसर्गिक नहीं, बल्कि मानवीय लापरवाही का परिणाम है। यदि हम सभी मिलकर प्रयास करें तो इसका समाधान संभव है।" उन्होंने वृक्षारोपण को सबसे कारगर उपाय बताते हुए ऐसे पेड़ लगाने की अपील की, जो दिन-रात ऑक्सीजन दें और घनी छांव प्रदान करें, जैसे बरगद और पीपल।
उन्होंने कहा कि, "जिन इलाकों में घने पेड़ होंगे, वहां भूमि और वायुमंडल गर्म नहीं होंगे, जिससे पर्यावरण स्वच्छ और संतुलित रहेगा।" इस मौके पर राज्यपाल ने पर्यावरण के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान देने वाले लोगों को सम्मानित भी किया।
जल, जंगल और जमीन बचाने की अपील
राज्यपाल श्री बागडे ने जल संरक्षण पर बल देते हुए कहा कि वर्षा का जल बहने न दें, उसे रोककर भूमिगत जल का स्तर सुधारा जा सकता है। उन्होंने कहा, "पानी रुकेगा तभी जलयुक्त गांव बन सकेंगे। महाराष्ट्र में इस दिशा में सराहनीय कार्य हुआ है।"
राज्यपाल ने बताया कि उन्होंने विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में खाली पड़ी ज़मीनों पर वृक्षारोपण के लिए पत्र लिखा है। उन्होंने आमजन से अपील की कि वे सार्वजनिक स्थलों और कार्यालयों में प्रेरणा से पेड़ लगाएं और संख्या के बजाय गुणवत्ता पर ध्यान दें। ऐसे पेड़ लगाएं जो बड़े होकर पर्यावरण को स्थायी लाभ दें।
युवाओं को आगे आने की जरूरत: नगरीय विकास मंत्री
कार्यक्रम में नगरीय विकास मंत्री श्री झाबरमल खर्रा ने भी युवाओं और किशोरों से पर्यावरण संरक्षण में सक्रिय भागीदारी की अपील की। उन्होंने कहा कि "नई पीढ़ी को पर्यावरण के प्रति जागरूक करना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है। भविष्य उन्हीं के हाथों में है।"
जल संरक्षण में ग्रामीण भागीदारी की मिसाल
पद्मश्री लक्ष्मण सिंह ने अपने अनुभव साझा करते हुए बताया कि लापोड़िया गांव में किस तरह देव सागर, अन्न सागर जैसे तालाबों का निर्माण सामूहिक भागीदारी से संभव हुआ। उन्होंने गोचर संस्कृति और वृक्षारोपण की परंपरा को फिर से जीवित करने की बात कही।
भविष्य में जल संकट की चेतावनी
पशुपालन विभाग के शासन सचिव डॉ. समित शर्मा ने गिरते भूजल स्तर और संभावित जल संकट पर प्रस्तुति दी। उन्होंने कहा कि यदि अभी प्रभावी कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले समय में हालात गंभीर हो सकते हैं। उन्होंने प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण के लिए ठोस रणनीति और तत्परता से काम करने की आवश्यकता बताई।
समिट का संदेश स्पष्ट था — पर्यावरण संरक्षण व्यक्तिगत नहीं, सामूहिक जिम्मेदारी है। अब वक्त है कि हम सभी मिलकर प्रकृति के साथ अपने रिश्ते को फिर से संतुलित करें।