क्या है विवाद का कारण?
देशमुख ने अपने पत्र में स्पष्ट किया है कि प्राथमिक शिक्षा में मातृभाषा आधारित शिक्षण सबसे प्रभावी होता है, और इस स्तर पर तीसरी भाषा जोड़ने से बच्चों की भाषा अधिगम क्षमता प्रभावित होगी। उन्होंने कहा,
“प्राथमिक स्तर पर त्रि-भाषा नीति लागू करना शिक्षकों और छात्रों दोनों पर संज्ञानात्मक बोझ डालेगा। मराठी और अंग्रेजी पहले से ही पढ़ाई जाती हैं, ऐसे में एक और भाषा जोड़ना अव्यवहारिक है।”
देशमुख ने यह भी लिखा कि राज्य के अधिकांश स्कूलों में शिक्षकों की भारी कमी है, और इस नीति से न केवल शिक्षा की गुणवत्ता प्रभावित होगी, बल्कि मराठी शिक्षकों की नौकरियां भी खतरे में आ सकती हैं अगर हिंदीभाषी शिक्षकों की नियुक्ति वरीयता के आधार पर की जाती है।
कमेटी ने सर्वसम्मति से जताई आपत्ति
The Hindu और TOI की रिपोर्ट के अनुसार, भाषा परामर्श समिति के सभी सदस्यों ने सर्वसम्मति से इस नीति का विरोध किया है। समिति का मत है कि हिंदी को अनिवार्य करने की आवश्यकता नहीं थी क्योंकि
“कक्षा 6 से 10 तक हिंदी पहले से ही अनिवार्य है, और प्राथमिक स्तर पर इसे लागू करने का कोई शैक्षिक औचित्य नहीं है।”
शिक्षकों की कमी और गिरती गुणवत्ता पर चिंता
समिति ने इस निर्णय से जुड़े व्यावहारिक पहलुओं पर भी सवाल उठाए हैं।
रिपोर्ट में बताया गया है कि अधिकांश प्राथमिक स्कूलों में एक या दो शिक्षक ही कार्यरत हैं, जो पहले से ही मराठी और अंग्रेजी पढ़ा रहे हैं।
अगर तीसरी भाषा भी जोड़ दी जाती है, तो प्रत्येक भाषा की गुणवत्ता प्रभावित होगी, जिससे छात्रों की आधारभूत साक्षरता कमजोर होगी।
ASER (Annual Status of Education Report) 2022 के अनुसार:
कक्षा 8 के 31% छात्र अपनी मातृभाषा में भी पाठ नहीं पढ़ पाते,
जबकि 53.3% छात्र अंग्रेजी में कठिनाई का सामना कर रहे हैं।
यह महाराष्ट्र समेत देशभर में समान रूप से चिंताजनक स्थिति को दर्शाता है।
मुख्यमंत्री ने दी स्पष्टीकरण और लचीलापन देने का संकेत
बढ़ते विरोध के बीच मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने TOI से बातचीत में कहा कि सरकार छात्रों को हिंदी के अलावा किसी अन्य भारतीय भाषा को तीसरी भाषा के रूप में चुनने की अनुमति देने पर विचार कर रही है।
“हम किसी पर भाषा नहीं थोप रहे। मराठी अभी भी अनिवार्य है। छात्रों को विकल्प मिलेगा कि वे हिंदी के बजाय तमिल, कन्नड़, तेलुगु या अन्य भारतीय भाषा भी चुन सकें — यदि छात्रों की संख्या 20 से अधिक है, तो शिक्षक नियुक्त किया जाएगा, अन्यथा ऑनलाइन शिक्षा उपलब्ध कराई जाएगी।”
उन्होंने कहा कि यह विकल्प विशेष रूप से सीमावर्ती क्षेत्रों में लागू किया जा सकता है, जहां बहुभाषिक संस्कृति पहले से मौजूद है। उदाहरणस्वरूप,
कर्नाटक से सटे गांवों में कन्नड़,
तेलंगाना सीमा पर तेलुगु भाषा का उपयोग सामान्य है।
निष्कर्ष: भाषा नीति पर बहस जरूरी
महाराष्ट्र सरकार द्वारा लिए गए इस निर्णय ने एक बार फिर भाषा आधारित शिक्षा नीतियों पर राष्ट्रव्यापी बहस को जन्म दिया है।
तमिलनाडु के बाद अब महाराष्ट्र दूसरा बड़ा राज्य है, जहां NEP के तहत त्रि-भाषा नीति के कार्यान्वयन को लेकर तीव्र विरोध सामने आया है।
देशमुख और उनकी समिति का यह रुख केवल शैक्षणिक नहीं, बल्कि भाषाई विविधता, व्यावहारिकता और सांस्कृतिक पहचान से भी जुड़ा मुद्दा है।
अब देखना यह है कि महाराष्ट्र सरकार इस प्रतिक्रिया के बाद अपनी नीति में बदलाव करती है या इसे चरणबद्ध ढंग से लागू करने का प्रयास करती है।