सुप्रीम कोर्ट ने 28 जुलाई 2025 को दिल्ली में आवारा कुत्तों के काटने से बच्चों और बुजुर्गों में रेबीज के बढ़ते मामलों पर स्वतः संज्ञान लिया था। यह कार्रवाई टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के आधार पर शुरू हुई थी, जिसमें दिल्ली-एनसीआर में कुत्तों के हमलों और रेबीज से होने वाली मौतों को "बेहद गंभीर" बताया गया था। 11 अगस्त को जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की दो सदस्यीय पीठ ने आदेश दिया था कि दिल्ली-एनसीआर के सभी आवारा कुत्तों को तुरंत पकड़कर शेल्टर होम में स्थानांतरित किया जाए और उन्हें दोबारा सड़कों पर न छोड़ा जाए। इस आदेश में यह भी कहा गया था कि कोई भी व्यक्ति या संगठन कुत्तों को पकड़ने में बाधा डालता है तो उसके खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
लाइव लॉ के अनुसार, इस आदेश की पशु कल्याण संगठनों और कार्यकर्ताओं ने तीखी आलोचना की थी। उन्होंने इसे "अवैज्ञानिक" और "अमानवीय" करार देते हुए कहा कि दिल्ली में अनुमानित 10 लाख आवारा कुत्तों के लिए पर्याप्त शेल्टर होम उपलब्ध नहीं हैं। पशु जन्म नियंत्रण (एबीसी) नियम, 2023 के तहत, नसबंदी और टीकाकरण के बाद कुत्तों को उनके मूल क्षेत्रों में छोड़ना अनिवार्य है, जिसका उल्लंघन यह आदेश करता था।
22 अगस्त 2025 को सुनवाई के दौरान, जस्टिस विक्रम नाथ की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने 11 अगस्त के आदेश को संशोधित करते हुए कहा कि यह "कठोर" था और इसे फिलहाल स्थगित रखा जाता है। कोर्ट ने निम्नलिखित निर्देश जारी किए:
1. नसबंदी और टीकाकरण : सभी पकड़े गए आवारा कुत्तों की नसबंदी और टीकाकरण (विशेष रूप से रेबीज के खिलाफ) किया जाएगा। इसके बाद, उन्हें उसी क्षेत्र में छोड़ा जाएगा जहां से उन्हें पकड़ा गया था। यह नियम रेबीज से संक्रमित या आक्रामक व्यवहार वाले कुत्तों पर लागू नहीं होगा। ऐसे कुत्तों को शेल्टर होम में रखा जाएगा।
2. सार्वजनिक भोजन पर रोक : कोर्ट ने सार्वजनिक स्थानों पर आवारा कुत्तों को खाना देने पर प्रतिबंध लगा दिया। इसके लिए नगर निगम को प्रत्येक वार्ड में विशेष भोजन क्षेत्र (फीडिंग जोन) बनाने का निर्देश दिया गया है। इन क्षेत्रों के पास नोटिस बोर्ड लगाए जाएंगे, जिसमें स्पष्ट किया जाएगा कि कुत्तों को केवल इन निर्धारित स्थानों पर ही खाना दिया जा सकता है। सड़कों पर खाना देने वालों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
3. एबीसी नियमों का पालन : कोर्ट ने पशु जन्म नियंत्रण (एबीसी) नियम, 2023 का पालन करने का निर्देश दिया, जिसमें कहा गया है कि नसबंदी और टीकाकरण के बाद कुत्तों को उनके मूल क्षेत्रों में छोड़ा जाना चाहिए। यह नियम रेबीज नियंत्रण और कुत्तों की आबादी को नियंत्रित करने के लिए वैज्ञानिक रूप से सिद्ध माना जाता है।
4. राष्ट्रीय स्तर पर मामला विस्तार : कोर्ट ने इस मामले का दायरा पूरे भारत तक बढ़ा दिया है। सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को इसमें पक्षकार बनाया गया है। विभिन्न उच्च न्यायालयों में लंबित आवारा कुत्तों से संबंधित याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित कर लिया गया है। अगली सुनवाई आठ सप्ताह बाद होगी।
5. शेल्टर और गोद लेने की नीति : कोर्ट ने कहा कि नगर निगम को शेल्टर होम की व्यवस्था करनी होगी, विशेष रूप से रेबीज से संक्रमित या आक्रामक कुत्तों के लिए। साथ ही, पशु प्रेमियों को शेल्टर से कुत्तों को गोद लेने के लिए नगर निगम से संपर्क करने की अनुमति दी गई है।
लाइव लॉ के अनुसार, 11 अगस्त के आदेश के बाद पशु कल्याण संगठनों जैसे पीईटीए इंडिया और फेडरेशन ऑफ इंडियन एनिमल प्रोटेक्शन ऑर्गनाइजेशन (एफआईएपीओ) ने इसे अव्यवहारिक और अमानवीय बताया था। पीईटीए की वरिष्ठ निदेशक डॉ. मिनी अरविंदन ने कहा था कि दिल्ली के लगभग 10 लाख आवारा कुत्तों को शेल्टर में रखना संभव नहीं है और इससे कुत्तों को तनाव, बीमारी और मृत्यु का खतरा बढ़ेगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और विश्व पशु स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूओएएच) की सिफारिशों के अनुसार, नसबंदी और टीकाकरण के बाद कुत्तों को उनके क्षेत्रों में छोड़ना रेबीज नियंत्रण का सबसे प्रभावी तरीका है।
13 अगस्त को मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने इस मामले को दो जजों की पीठ से तीन जजों की पीठ को सौंपा था, क्योंकि यह आदेश पहले के कई फैसलों और एबीसी नियमों के खिलाफ था। सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी ने तर्क दिया कि शेल्टर होम की कमी और एबीसी नियमों का उल्लंघन इस आदेश को लागू करने में बाधा है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि भारत में प्रतिवर्ष 37 लाख कुत्तों के काटने के मामले दर्ज होते हैं, जिनमें से कई बच्चों की मौत का कारण बनते हैं।
22 अगस्त के आदेश का पशु कल्याण संगठनों और कार्यकर्ताओं ने स्वागत किया है। पीईटीए इंडिया ने इसे "हर कुत्ते का दिन" बताते हुए कहा कि यह आदेश कुत्तों और समुदायों दोनों के लिए राहत लेकर आया है। दिल्ली के मेयर राजा इकबाल सिंह ने कहा कि यह एक संतुलित फैसला है और नगर निगम इसे पूरी तरह लागू करेगा। पूर्व केंद्रीय मंत्री और पशु अधिकार कार्यकर्ता मेनका गांधी ने इस फैसले को "वैज्ञानिक" और "उचित" बताया, लेकिन यह भी कहा कि "आक्रामक कुत्ते" की परिभाषा को स्पष्ट करने की आवश्यकता है।[
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई आठ सप्ताह बाद निर्धारित की है। तब तक नगर निगम को निर्दिष्ट भोजन क्षेत्र स्थापित करने और शेल्टर होम की व्यवस्था करने का निर्देश दिया गया है। कोर्ट ने यह भी कहा कि वह आवारा कुत्तों के मुद्दे पर एक राष्ट्रीय नीति तैयार करने पर विचार करेगा।
यह संशोधित आदेश पशु कल्याण और सार्वजनिक सुरक्षा के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास करता है। लाइव लॉ के अनुसार, यह फैसला भारत के आवारा कुत्तों की समस्या को वैज्ञानिक और मानवीय तरीके से हल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है, बशर्ते इसे प्रभावी ढंग से लागू किया जाए।