बिहार में अक्टूबर-नवंबर में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए कांग्रेस ने अपनी तैयारियां जोर-शोर से शुरू कर दी हैं। पार्टी ने हाल ही में संगठन में बड़े बदलाव किए हैं, जिसमें नए प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति और जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं को सक्रिय करना शामिल है। राहुल गांधी ने 7 अप्रैल को बेगूसराय में ‘पलायन रोको, नौकरी दो’ यात्रा में हिस्सा लिया और पटना में संविधान सुरक्षा सम्मेलन को संबोधित किया। उनकी इस यात्रा ने युवाओं और कार्यकर्ताओं में नया जोश भरा। इसके बाद सचिन पायलट ने भी 11 अप्रैल को कन्हैया कुमार की इस यात्रा के समापन में शिरकत की और पटना में मुख्यमंत्री आवास के घेराव के दौरान युवाओं के मुद्दों को जोरदार तरीके से उठाया।
अब मल्लिकार्जुन खरगे की बारी है। 19 अप्रैल को बक्सर में होने वाली रैली में खरगे पार्टी कार्यकर्ताओं को जीत का मंत्र देंगे और बिहार में कांग्रेस की नीतियों को जनता तक पहुंचाएंगे। अगले दिन, 20 अप्रैल को वे पटना में एक और बड़ी सभा को संबोधित करेंगे। इन रैलियों के दौरान खरगे न केवल बेरोजगारी, पलायन और शिक्षा जैसे ज्वलंत मुद्दों पर सरकार को घेरने की योजना बना रहे हैं, बल्कि पार्टी नेताओं के साथ बैठक कर चुनावी रणनीति को भी अंतिम रूप देंगे।
कांग्रेस इस बार बिहार में अपनी पुरानी साख को वापस लाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती। पार्टी ने साफ कर दिया है कि वह किसी की ‘बी-टीम’ बनकर नहीं रहेगी और अपनी स्वतंत्र रणनीति के साथ मैदान में उतरेगी। सचिन पायलट ने हाल ही में कहा था कि बिहार में युवाओं के साथ धोखा हुआ है और कांग्रेस उनके हक की लड़ाई लड़ेगी। वहीं, राहुल गांधी ने बिहार के युवाओं और समाज के हर वर्ग को साथ लेकर चलने का संकल्प दोहराया है। खरगे की रैलियां भी इसी संदेश को और मजबूत करेंगी।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक, खरगे की रैलियों का मकसद न केवल कार्यकर्ताओं में जोश भरना है, बल्कि उन क्षेत्रों में भी कांग्रेस की मौजूदगी दर्ज कराना है, जहां उसका प्रभाव कमजोर रहा है। बक्सर और पटना जैसे महत्वपूर्ण जिलों में रैलियां कर कांग्रेस ग्रामीण और शहरी दोनों मतदाताओं को साधने की कोशिश कर रही है। इन सभाओं में बिहार सरकार की कथित नाकामियों, खासकर बेरोजगारी और पलायन जैसे मुद्दों को प्रमुखता से उठाया जाएगा।
हालांकि, कांग्रेस के सामने चुनौतियां भी कम नहीं हैं। महागठबंधन के सहयोगियों के साथ तालमेल और सीट बंटवारे को लेकर अभी भी कुछ अनिश्चितताएं बनी हुई हैं। इसके बावजूद, कांग्रेस ने यह साफ कर दिया है कि वह बिहार में अपनी अलग पहचान बनाएगी। खरगे का दौरा इस दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
बिहार की सियासत में इस समय सभी दल अपनी-अपनी रणनीति को अमलीजामा पहनाने में जुटे हैं। कांग्रेस की इस आक्रामक रणनीति से चुनावी माहौल और गर्माने की उम्मीद है। अब यह देखना होगा कि खरगे की रैलियां कितना असर दिखाती हैं और क्या कांग्रेस बिहार में अपनी खोई जमीन को वापस हासिल कर पाती है।