राज्य सरकार की संकल्पना: 2030 तक बाल श्रम मुक्त राजस्थान
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए डॉ. बाघमार ने कहा कि राज्य सरकार बाल श्रम के खिलाफ पूरी प्रतिबद्धता के साथ कार्य कर रही है और 2030 तक राजस्थान को बाल श्रम मुक्त बनाने की दिशा में ठोस कदम उठाए जा रहे हैं। उन्होंने बाल श्रम की जड़ों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि माता-पिता की बीमारी, गरीबी और अशिक्षा जैसे कारण बच्चों को मज़बूरी में श्रम के लिए धकेलते हैं।
राज्यमंत्री ने सुझाव दिया कि बाल श्रमिक बच्चों को रेस्क्यू कर उनकी प्रभावी काउंसलिंग की जानी चाहिए, ताकि वे शिक्षा की ओर लौट सकें। उन्होंने कहा, "संस्कारों और शिक्षा के माध्यम से ही बच्चों के उज्ज्वल भविष्य का निर्माण संभव है।"
‘बाल श्रम मुक्त राजस्थान’ पोस्टर विमोचन और शपथ
इस मौके पर डॉ. बाघमार ने ‘बाल श्रम मुक्त राजस्थान’ पोस्टर का लोकार्पण किया और उपस्थित सभी प्रतिभागियों को बाल श्रम उन्मूलन की शपथ दिलाई। उन्होंने आह्वान किया कि समाज का प्रत्येक व्यक्ति इस दिशा में सौ प्रतिशत प्रयास करे और यह सुनिश्चित करे कि हर बच्चा शिक्षा का अधिकार प्राप्त करे।
उन्होंने कहा, “यदि सड़क किनारे कोई गरीब व्यक्ति सामान बेचता हो, तो उससे सामान खरीदें, जिससे उसकी आजीविका बनी रहे और उसके बच्चों को मजदूरी के लिए मजबूर न होना पड़े।”
प्रशासनिक अधिकारियों के विचार
कार्यक्रम में अतिरिक्त मुख्य सचिव, बाल अधिकारिता विभाग, श्री कुलदीप रांका ने कहा कि “बच्चे हमारा अतीत भी हैं और भविष्य भी। यदि कोई बच्चा पारिवारिक व्यवसाय या चाइल्ड आर्टिस्ट की श्रेणी से बाहर जाकर काम करता है, तो वह बाल श्रम के अंतर्गत आता है।” उन्होंने बताया कि प्रत्येक जिले में जिला टास्क फोर्स का गठन किया गया है, जो बाल श्रमिकों की पहचान, रेस्क्यू, पुनर्वास और शिक्षा सुनिश्चित करने का कार्य कर रही है।
बाल अधिकारिता आयुक्त श्री बचनेश अग्रवाल ने कहा कि संविधान बाल श्रम पर स्पष्ट रोक लगाता है। उन्होंने कहा कि “बच्चों को शिक्षा से वंचित करने का मतलब है उनके पूरे जीवन को गरीबी के दुष्चक्र में झोंक देना।”
नुक्कड़ नाटक और जन-जागरूकता
कार्यशाला में टाबर संस्था के कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किए गए नुक्कड़ नाटक ने दर्शकों को झकझोर दिया। “हम भी पढ़ना चाहते हैं” संदेश के साथ प्रस्तुत इस नाटक ने लोगों को 1098 पर कॉल कर बाल श्रम की जानकारी देने के लिए प्रेरित किया।
संयुक्त राष्ट्र व स्वयंसेवी संस्थाओं की भागीदारी
यूनिसेफ के चाइल्ड प्रोटेक्शन विशेषज्ञ श्री संजय निराला और सेव द चिल्ड्रन के निदेशक श्री संजय शर्मा ने भी कार्यशाला को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि उपभोक्ताओं की ज़िम्मेदारी बनती है कि बाज़ार में सामान खरीदते समय यह अवश्य पूछें कि क्या वह बाल श्रमिकों द्वारा तो नहीं बनाया गया। इससे बाल श्रम उन्मूलन की दिशा में समाज में जागरूकता और जवाबदेही का वातावरण बनेगा।